छत्तीसगढ़ के किसानों को बेरहमी से चूना लगा रहे एग्रीकल्चर माफिया, कंगाल हो गए हज़ारों किसान, गैर अधिसूचित बीजों की सप्लाई से उत्पादन ठप, बड़ा फर्जीवाड़ा, दर्जनों जिले के कलेक्टर ने घटिया सब्जी मिनी किट बटवाने से किया इंकार, कृषि मंत्री बेखबर…..    

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में कृषि उत्पादन जिस तेजी से ऊपरी ओर रिकॉर्ड दर्ज कर रहा है, उसी गति से एग्रीकल्चर माफिया भी सक्रीय हो गए है। वे सरकारी योजनाओं के तहत खरीदी जाने वाली कृषि सामग्री, ग्रीन हाउस, विभिन्न किस्म के बीजों और सब्जी मिनी किट के प्रदाय में 70 फीसदी तक कमीशन देकर किसानों को चूना लगा रहे है। इन योजनाओं में भारी भरकम भ्रष्टाचार उजागर हुआ है। हाल ही में शेड हाउस और ग्रीन हाउस घोटाले में सिर्फ 95 करोड़ की GST चोरी भी पकड़ी गई है।

इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि गरीब किसानों के खेत – खलियानों पर सरकारी योजनाओं के नाम पर किस बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की फसल लह-लहा रही है। उधर घटिया बीजों की बुआई से कई किसान दिनों – दिन कंगाल हो रहे है। वो भी तब जब राज्य में किसानों की मुलभुत समस्याओं के निराकरण का दावा कर राज्य में बीजेपी सत्ता में आई है। ऐसे दौर में एग्रीकल्चर माफियाओं की नाक में नकेल डालना राज्य की विष्णुदेव साय सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।

पीड़ित किसानों की दलील है कि सरकारी योजनाओं में बेजा लाभ कमाने वाले एग्रीकल्चर माफियाओं के काले कारनामों से शायद कृषि मंत्री राम विचार नेताम वाकिफ नहीं है, तभी तो बेकाबू माफिया यहाँ दिन दुगनी – रात चौगुनी प्रगति कर रहे है, उनके अच्छे दिनों से कोई शिकायत नहीं, लेकिन हमें तो एग्रीकल्चर के माफियाओं से मुक्ति दिलाओं, ताकि सरकारी योजनाओं का सही तौर पर लाभ सुनिश्चित हो सके। दरअसल मामला घटिया बीजों की सरकारी आपूर्ति से जुड़ा है। उन बीजों की बुआई कर हज़ारों किसानों के अरमानों पर पानी फिर गया है। हालत ये है कि दर्जनभर से ज्यादा जिलों के कलेक्टर ने घटिया मिनी सब्जी मिनी किट स्वीकारने तक से इंकार कर दिया है।

उनका मानना है कि गैर अधिसूचित प्रजाति के बीजों से उत्पादन ना होने से सरकार की छवि धूमिल होना लाजिमी है। बावजूद इसके एग्रीकल्चर माफियाओं ने बड़े पैमाने पर अपनी सामग्री खपा दी है। दरअसल छत्तीसगढ़ में बीज निगम ने भारत सरकार द्वारा गैर अधिसूचित बीजों की बड़े पैमाने पर खरीदी कर उसका वितरण भी कर दिया। ऐसे में हज़ारों एकड़ खेती – किसानी की जमीनों में ना तो बीज अंकुरित हो पाए और ना ही उनका पौधा निकला। किसानों के मुताबिक समुचित ध्यान रखने के बावजूद जो बीज अंकुरित भी हुए तो हफ्ते भर में पौधे सूख गए। पीड़ित किसानों ने सरकारी सप्लाई पर भरोसा कर ऐसी कंपनियों का माल स्वीकार किया था। इसके लिए उन्हें योजना के तहत सब्सिडी भी मिली थी।

बताया जाता है कि कृषि विभाग और उद्यानिकी योजनाओं के तहत हज़ारों किसानों को प्रति वर्ष मुफ्त के भाव धान, मक्का और मिनी किट सब्जी बीज वितरित किये जाते है। जानकारों के मुताबिक भारत सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के वातावरण के अनुकूल बीज प्रजातियां अधिसूचित की है। लेकिन प्रभावशील आलाधिकारियों ने मोटे कमीशन 70 फीसदी को ध्यान में रखते हुए गैर अधिसूचित बीजों की सरकारी आपूर्ति कर दी। नतीजतन फसल बर्बाद हो गई। कई किसानों ने अपनी फसलों का बीमा तक नहीं कराया था। उन्हें उम्मीद थी कि राज्य में कांग्रेस की रवानगी के बाद एग्रीकल्चर माफियाओं के ख़राब दिन शुरू हो जायेंगे, बीजेपी के सत्ता में आने के बाद कमोवेश गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध होंगे। लेकिन इस वर्ष भी वैसा ही हुआ, जैसा कि पुरानी भूपे सरकार के राज में साल दर साल पूरे 5 वर्ष तक चलता रहा।

किसान कंगाल होते चले गए, जबकि कांग्रेस सरकार ने उनके खेतों का रुख तक नहीं किया। ना तो घटिया बीज के बदले गुणवत्ता वाले बीज मिले, और ना ही नष्ट हुई फसल का कोई मुआवजा। न्यूज़ टुडे नेटवर्क संवाददाताओं ने प्रदेश के विभिन्न जिलों का दौरा कर कृषि विभाग की योजनाओं का जायजा लिया। पत्रकारों की टीम ने कई खेत – खलियानों में किसानों की समस्याओं और योजनाओं के क्रियावन्यन पर भी चर्चा की।

किसानों ने बताया कि कृषि विभाग द्वारा लगातार 5 वर्षों से गैर अधिसूचित प्रजातियों के बीजों का वितरण किया जा रहा है। ये बीज प्रदेश के वातावरण के अनुकूल बिल्कुल नहीं है। भारत सरकार ने भी ऐसे बीजों को यहाँ वितरित करने योग्य नहीं माना है। उसने सर्कुलर जारी कर गैर अधिसूचित बीजों की प्रजातियों से किसानों को आगाह भी किया था। बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल उन बीजों को गैर क़ानूनी रूप से लाखों किसानों को वितरित करते रहे।

इसका पूरा ब्यौरा भी सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ की जमीन की उर्वरता और वातावरण के मद्देनजर उन बीजों को एप्रूव्ड ही नहीं किया है, जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्हें खेती – किसानी से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए गजट नोटिफिकेशन में भी कई किस्म के उन बीजों को अधिसूचित किया गया है, जिससे किसानों को अंकुरण और उत्पादन की गारंटी मिले। 

पीड़ित किसानों के मुताबिक, यहाँ की आबो – हवा में फिसड्डी और अनुत्पादक साबित हो रहे बीजों का वितरण मौजूदा बीजेपी सरकार के कार्यकाल में भी शुरू हो गया है। उस पर विराम नहीं लगने से वही कंपनियां फिर उन्हें चूना लगा रही है, जिसने भूपे राज में कंगाली में ला खड़ा किया था। पीड़ित किसानों ने बड़े पैमाने पर बरती गई धांधली की निष्पक्ष जांच की मांग भी की है। उनके मुताबिक तत्कालीन सरकार के जिम्मेदार अधिकारियों ने मोटे कमीशन के चक्कर में ऐसे बीजों घाटियां बीजों को किसानों को खपा दिया है।

फसल नष्ट होने से किसानों को आर्थिक संकटों के दौर से गुजरना पड़ रहा है। वे कभी कृषि और उद्यानिकी विभाग के चक्कर लगा रहे है तो कभी कृषि माफियाओं के आगे नुकसान की भरपाई और मुआवजे के लिए गिड़गिड़ा रहे है। बताया जाता है कि मंत्रालय स्तर, कृषि और उद्यानिकी विभाग में पदस्थ कई प्रभावशील आलाधिकारियों ने 70 फीसदी तक कमीशन लेकर घटिया और गुणवत्ताविहीन बीजों को इस वर्ष भी किसानों को थमा दिया है।

सरकारी स्तर पर ऐसी कई कंपनियों को सप्लाई का काम सौंपा है, जो भारत सरकार द्वारा अधिकृत RND और DSR के बगैर ही प्रदेश में कृषि सामग्री की सरकारी सप्लाई कर रहे है। उनके पास कृषि योजनाओं की सप्लाई हेतु भारत सरकार द्वारा जारी होने वाला अधिकृत प्राधिकार पत्र भी नहीं है। बताते है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ऐसी दर्जनों कंपनियों की प्रदेश में एंट्री हुई थी, जो सत्ता बदलते अब नए नाम और ब्रांड से किसानों को छल रही है।

उनका कारोबार पूरी तरह से सरकारी खरीद – फरोख्त पर निर्भर बताया जाता है। इन्ही में से एक डेल्टा सीड कंपनी और खजुराहो सीड का नाम सुर्ख़ियों में है। ये कंपनियां बीते 5 सालों में मोटा कमीशन बांटकर कई जिलों में गांव – कस्बों के खेत खलियानों तक अपना कारोबार फैला चुकी है। बताते है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे बघेल और उनके कार्यालय के हस्तक्षेप और संरक्षण से कृषि विभाग में उनका दबदबा कायम हो गया है।

भ्रष्टाचार की मजबूत जड़े जमी होने के चलते मौजूदा शासन काल में भी वे किसानों के गले पड़ गई है। सूत्रों के मुताबिक खजुराहों सीड नामक कंपनी के पास सरकारी सप्लाई की कोई वैधानिक पात्रता तक नहीं है, वो यहाँ सालाना करोड़ो का कारोबार कर रही है। इस कंपनी ने हैदराबाद की एटर्ना सीड कंपनी से गैर क़ानूनी करार कर रखा है। उस कंपनी के लाइसेंस का यहाँ इस्तेमाल कर किसानों के साथ – साथ राज्य सरकार की आँखों में धूल झोंका जा रहा है। जानकार बताते है कि सरकारी खरीदी में उन्ही कंपनियों को अवसर प्राप्त होते है, जिनके पास भारत सरकार का साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग द्वारा जारी होने वाला RND यूनिट सर्टिफिकेट होता है।

सूत्र यह भी तस्दीक करते है कि खजुराहों सीड के पास स्वयं का कोई RND यूनिट लाइसेंस नहीं है। उसके लाभ में सरकारी मशीनरी पूरी तरह से लिप्त बताई जाती है। यह भी बताया जा रहा है कि इस वर्ष भी घटिया सब्जी मिनी किट वितरित होने से किसान हैरत में है। दरअसल, बीजों की प्रजाति का नियमानुसार जेनेटिक डीएनए टेस्ट कराया जाना अनिवार्य है, लेकिन प्रदेश में एग्रीकल्चर माफिया सरकार पर इस कदर हावी है कि बगैर डीएनए टेस्ट के वे सरकारी सप्लाई भी कर रहे है, और अफसर स्वयं भी नियमों का उल्लंघन कर उनका भुगतान तत्काल स्वीकृत भी कर रहे है।

सूत्रों के मुताबिक बगैर किसी वैधानिक दस्तावेजों RND यूनिट लाइसेंस के बगैर ही दागी कंपनियों को कृषि और हार्टिकल्चर विभाग ने सेल लाइसेंस अर्थात विक्रय अनुज्ञा पत्र जारी किया है। किसानों को हैरानी इस तथ्य को लेकर हो रही है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस राज की तर्ज पर मौजूदा बीजेपी सरकार के कार्यकाल में भी ऐसे घटिया बीजों की सप्लाई जोरो पर है। किसानों के मुताबिक बीजेपी सरकार की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसी कई कंपनियां ने अब नाम बदलकर खेत – खलियानों का रुख किया है। उनके प्रतिनिधि कृषि विभाग के अधिकारियों से साठ – गांठ कर किसानों को गैर अधिसूचित बीजों की सप्लाई सुनिश्चित कर रहे है। किसानों के लाख इंकार करने के बावजूद उन्हें घटिया बीजों का थैला थमाया जा रहा है।

फ़िलहाल गैर अधिसूचित बीजों की सप्लाई से छत्तीसगढ़ में कृषि उपजो को उत्पादन पर विपरीत असर पड़ रहा है। इसका लाभ जहाँ एग्रीकल्चर माफिया उठा रहे है वही किसानों कों न्याय की उम्मीद दूर – दूर तक नजर नहीं आ रही है। न्यूज़ टुडे नेटवर्क ने मामले की आधिकारिक जानकारी के लिए कृषि और हॉटीकल्चर विभाग के जिम्मेदार अधिकारीयों से भी संपर्क किया। लेकिन दागी कंपनियों की वैधानिक जांच के मामले में वे चुप्पी साधे रहे।कुछ अफसरों ने मामले को सीधे कृषि मंत्री के संज्ञान में लाने की नसीहत तक दे डाली। माना जा रहा है कि राज्य सरकार जल्द ही किसानों की समस्याओं को संज्ञान में लेगी।