कृषि विधेयक बिल,भारत के आत्मा पर प्रहार, किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का नारा लगाने वाले,कृषि क्षेत्र को पूंजीपतियों पर निर्भर कर किसानों को गुलाम बनाने की चाल को वापस लें – हरीश कवासी

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रिपोर्टर-रफीक खांन

सुकमा – जिला पंचायत अध्यक्ष सुकमा कवासी हरीश ने कृषि विधेयक बिल को अन्नदाता विरोधी कहा है । भूपेश बघेल सरकार ने जब किसानों के धान का समर्थन दर 2500रु क्विं. के दाम पर खरीदा,तब मोदी,भाजपा सरकार ने धान खरीदी में आपत्ति की । धान खरीदी में नियम,शर्तें थोपकर अड़ंगा लगाया । संघीय व्यवस्थाओं को दरकिनार कर, सेंट्रल पुल में चावल लेने से इंकार किया था। उस मोदी सरकार का किसानों की आय दोगुनी करने का दावा भी अच्छे दिन आएंगे के नारे की तरह ही है । जिसका इंतजार बीते छः साल से देश की एक अरब तैंतीस करोड़ जनता आज तक कर रही है ।

कवासी हरीश ने कहा कि मोदी,भाजपा सरकार असल मायने में देश के किसान को पूंजीपतियों के सामने झुकने के लिए मजबूर बना रही है।किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का नारा लगाने वाले,कृषि क्षेत्र को पूंजीपतियों पर निर्भर कर किसानों को गुलाम बनाने की चाल चल रहे हैं। नए कृषि विधेयक बिल से अब किसान पूंजीपतियों पर आश्रित होंगे । पूंजीपति चाहेंगे तो किसानों की फसल को खरीदेंगे पूंजीपति नहीं चाहेंगे तो किसानों की फसल खड़े-खड़े वहीं पर खराब हो जाएगी। कुल मिलाकर तो बर्बादी के अलावा इस बिल में कोई ऐसा लाभ किसानों को नहीं दिखता है। मोदी सरकार किसानों से किए वादे को पूरा करने में असफल सिद्ध हुई है । और अब अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। किसानों के साथ धोखा,छल,कपट किया जा रहा है। कृषि विधेयक बिल भारत की आत्मा पर प्रहार है।

अतीत में जहाँ भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लागू हुई उसका नतीजा अच्छा नहीं रहा है।किसानों के हित के साथ समझौता नही होना चाहिए।कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कम्पनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं । लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कम्पनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं । और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर, रिजेक्ट कर दिया जाता है। जो देश के अन्नदाताओं,किसानों के हितों पर गहरा कुंठाराघात है। इस बिल के क़ानून बनने के बाद खेती पूंजीपतियो के फॉर्म हाउस संस्कृति में समा जाएगी। देश मे 80 प्रतिशत किसान लघु सीमांत श्रेणी के है। इन्हें काफी परेशानिया उठाना पड़ेगा। फसल की कीमत किसान नही खरीददार तय करेगा। किसान केवल फसल उगाने वाला बनकर रह जायेगा। केन्द्र सरकार से मांग करते है कि किसान विरोधी कृषि विधेयक बिल को तत्काल किसानों के हित ने वापस लिया जाए ।