
रायपुर: छत्तीसगढ़ में सरकारी जमीनों पर बेजा कब्जे के लगातार सामने आ रहे मामलों को लेकर कोहराम मचा है। रायपुर के अमलीडीह इलाके में एक निजी हाउसिंग प्रोजेक्ट पर प्रशासन की मेहरबानी सुर्ख़ियों में है। अदालती दस्तावेजों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक लाविस्टा नामक प्रोजेक्ट में बड़े पैमाने पर सरकारी जमीनों की भी रजिस्टरी करवा दी गई है।

शिकायत के मुताबिक भू-माफियाओं को प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी का संरक्षण होने के चलते वैधानिक कार्यवाही को लेकर जिला प्रशासन का दम निकल रहा है। राज्य सरकार की ओर से अदालत को सौंपे गए शपथ पत्र में साफ किया गया है कि सरकारी जमीन पर से कब्ज़ा हटा लिया गया है।

अतिक्रमण कार्यों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही भी सुनिश्चित की गई है। सरकारी जमीन और नाले को अतिक्रमण मुक्त किये जाने का यह शपथ पत्र व्यक्तिगत स्तर पर राज्य के मुख्य सचिव ने अदालत को सौंपा था। लेकिन जमीन स्तर पर हकीकत बयां हो रही है, ना तो सदियों पुराना नाला अस्तित्व में आया है ? और ना ही बेशकीमती जमीन को भी अतिक्रमण मुक्त किया गया है। जबकि कलेक्टर रायपुर की जांच रिपोर्ट में अतिक्रमित जमीन और नाले में अवैध कब्जे की पुष्टि की गई है।

यही नहीं इस रिपोर्ट में ला-विस्टा प्रोजेक्ट में स्वीकृत नक़्शे के विपरीत निर्माण कार्य को लेकर गंभीर आपत्ति भी दर्ज की गई है। यही नहीं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा कर दस्तावेजों में हेरफेर करने वाले बिल्डरों के खिलाफ पुलिसियाँ कार्यवाही नहीं होने से छत्तीसगढ़ शासन की ओर से दाखिल शपथ पत्र अदालत की दहलीज में झूठ का पुलिंदा साबित हो रहा है। बेशकीमती सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करने वालों के हिमायती चीफ सेक्रेटरी के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच की मांग की जा रही है।

जनहित के मद्देनजर रायपुर के अमलीडीह इलाके में गहमा-गहमी देखी जा रही है। इलाके की एक बड़ी आबादी जल भराव और हादसों का सामना कर रही है। शिकायतकर्ताओं के मुताबिक बारिश के मौसम में एक बार फिर उनके घरों में जलभराव की नौबत आ गई है, हालिया बारिश में ही इलाके की सड़के डूब रही है, आवगमन अवरुद्ध हो रहा है। पीड़ित चिंता जाहिर कर रहे है कि अतिक्रमणकारी निजी हाउसिंग प्रोजेक्ट के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही नहीं होने से जलभराव से प्रभावित घर परिवारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

उनके मुताबिक इस इलाके में सालों पुराने नाले को बिल्डरों ने पाट दिया। उसके इर्द-गिर्द की सरकारी जमीने भी हथिया ली। पीड़ित तस्दीक करते है कि लोक महत्व की सरकारी जमीनों पर बिल्डरों के कब्जे से शहर का यह बड़ा इलाका जलभराव और डुबान की हालातों का सामना कर रहा है।

पीड़ितों की दलील है कि शासन-प्रशासन के संरक्षण में ही इस निजी हाउसिंग प्रोजेक्ट में स्वीकृत नक़्शे के विपरीत निर्माण कार्य कराया गया था। इसके चलते पूरे इलाके में जल निकासी ठप हो गई है। सरकारी नाले को पाट दिए जाने से सामान्य बारिश के दौरान ही सड़के डूबने लगी है, इससे आये दिन हादसे हो रहे है।

पीड़ित तस्दीक करते है कि बिलासपुर हाईकोर्ट में विचाराधीन अतिक्रमण हटाने के इस मामले में मुख्य सचिव की ओर से दाखिल झूठा शपथ पत्र जनता पर भारी पड़ा है। उनके मुताबिक मुख्य सचिव के अनुचित दबाव-प्रभाव के कारण जिला प्रशासन भी बिल्डरों के आगे नतमस्तक नजर आ रहा है।


वे बताते है कि मुख्य सचिव के अदालत में दाखिल जवाब और कलेक्टर की रिपोर्ट में जमीन-आसमान का फर्क है। उनके मुताबिक मुख्य सचिव ने बिल्डरों से सांठगांठ कर झूठा शपथ पत्र दाखिल किया है, मौके पर इसका अवलोकन भी किया जा सकता है। बेशकीमती सरकारी जमीन पर भू माफियाओं के कब्जे से जुड़ी याचिका पर अदालत ने मुख्य सचिव को व्यक्तिगत स्तर पर शपथ पत्र सौपने के निर्देश दिए थे। अदालत में मुख्य सचिव ने शपथ पत्र तो सौंपा, लेकिन जनहित और कलेक्टर की रिपोर्ट को दरकिनार कर झूठे तथ्य प्रस्तुत किये गए। अदालती गलियारों में भी मुख्य सचिव के शपथ पत्र को बिल्डरों को अनुचित फायदा पहुंचाने के मामले से जोड़ कर देखा जा रहा है।


कानून के जानकारों के मुताबिक भू-माफियाओं को लाभ पहुंचाने से जुड़े इस मामले में जिम्मेदार सरकारी अधिकारी अदालत की आँखों में धूल झोंकने में भी पीछे नहीं है। सूत्रों द्वारा यह भी दावा किया जा रहा है कि मुख्य सचिव ने अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए कलेक्टर रायपुर की रिपोर्ट को दरकिनार कर झूठा शपथ पत्र दाखिल किया था। उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्य जन आकांक्षाओं पर खरे नही उतर रहे है। रायपुर में निजी बिल्डरों को सरकारी जमीन-नाले का बड़ा हिस्सा सौंपे जाने के मामले में मुख्य सचिव की भूमिका संदिग्ध करार दी जा रही है। पक्षकारों ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की गुहार लगाई है।


छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती भूपे सरकार के कार्यकाल में आवंटित पट्टों और जमीनों के अवैध आवंटन पर बीजेपी ने एतराज जताया था। वरिष्ठ बीजेपी नेता धरमलाल कौशिक ने सरकारी जमीनों को कब्जा मुक्त किये जाने और अवैध आवंटन पर रोक लगाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की थी।

लेकिन प्रदेश में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद भी आम लोगों की चिंता जस की तस बनी हुई है। सरकारी जमीनों की खरीद-फरोख्त के खिलाफ प्रभावी कदम उठाये नहीं उठ रहे है। सत्ताधारी दल ही नहीं सरकार की नाक के नीचे शीर्ष नौकरशाही का रवैया नए-नए विवादों को जन्म दे रहा है।