Friday, September 20, 2024
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चीन की टेंशन बढ़ा रही ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी,’ खाका नरसिम्हा राव सरकार ने किया तैयार, मोदी सरकार कर रही लागू

पीएम नरेंद्र मोदी के पहले ब्रूनेई और फिर सिंगापुर दौरे से चीन के लिए टेंशन बढ़ गई है. यूं तो प्रधानमंत्री के सिंगापुर दौरे पर दोनों देशों के बीच कई ऐसे अहम समझौते हुए हैं जो दोनों देशों के बीच के रिश्ते को मजबूत करेंगे, जिनमें स्किल डेवलेपमेंट, डिजिटल तकनीक, सेमीकंडक्टर, एआई सहयोग शामिल हैं, लेकिन पीएम मोदी का इस दौरे पर यह कहना कि ‘भारत की एक्ट ईस्ट नीति के लिए भी सिंगापुर अहम देश है’, चीन की नींदें उड़ा देने के लिए काफी है.

दक्षिण चीन सागर में एक छोटा लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्वीप है ब्रूनेई और भारत की एक्ट ईस्ट नीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लुक ईस्ट पॉलिसी को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने 1992 में शुरू किया था जिसका एक्सपेंशन एक्ट ईस्ट पॉलिसी के रूप में पीएम मोदी ने किया. भारत ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत नवंबर 2014 में 12वें आसियान-भारत शिखर समिट के दौरान की थी.

लुक ईस्ट पॉलिसी का जब शुरू की गई तब यह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ आर्थिक रूप से मजबूती पैदा करने पर फोकस्ड थी, जबकि अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी का फोकस आर्थिक और सुरक्षा सहयोग पर है. दरअसल यह लुक ईस्ट नीति का ही विस्तार है, जिसमें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को गहरा, बेहतर और प्रोग्रेसिव रखने पर जोर दिया जाता है. लुक ईस्ट पॉलिसी का फ़ोकस क्षेत्र केवल दक्षिण-पूर्व एशिया तक था, जबकि एक्ट ईस्ट पॉलिसी का फ़ोकस क्षेत्र दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ-साथ पूर्वी एशिया तक भी बढ़ा है.

पिछले 10 वर्षों में आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है. भारत ने रूस के फार ईस्ट में कई तरह के विकास कार्यों के लिए 1 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट की घोषणा भी की थी.

भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी चीन के लिए कई तरह से चुनौतीपूर्ण है. चीन, साउथ चाइना-सी में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है. एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला कर रहा है और इसमें सिंगापुर से मजबूत संबंध अहम साबित होंगे. अरुणाचल प्रदेश को चीन ‘दक्षिणी तिब्बत’ कहता रहा है.

चीन का दावा है कि अरुणाचल प्रदेश पारंपरिक रूप से दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है. चीन ने अरुणाचल प्रदेश की कई जगहों के नाम बदले और वह अपनी हरकतों से बाज भी नहीं आ रहा, भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश जाने पर भी वह आपत्ति जताता है. चीन ने 2009 में पीएम मनमोहन सिंह और 2014 में पीएम मोदी के दौरे पर आपत्ति जताई थी.

अरुणाचल प्रदेश को नॉर्थ ईस्टर्न फ्रंटियर एजेंसी कहा जाता था और बाद में इसे अरुणाचल प्रदेश नाम मिला. ब्रिटिश राज वाले भारत में अंग्रेजो और तिब्बत के बीच संधि में अरुणाचल भारत में शामिल हुआ गया और मैकमोहन रेखा खींची गई. मगर चीन ने इस संधि को खारिज कर दिया और कहा कि तिब्बत भी तो उसी का हिस्सा है, इसलिए संधि मान्य नहीं है.

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