
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है, जिसने प्रशासनिक व्यवस्था से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा तक पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिहार में आधार सैचुरेशन का जो आंकड़ा सामने आया है, वो बेहद हैरान करने वाला है—खासकर सीमावर्ती मुस्लिम बहुल जिलों में।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जहां पूरे बिहार की आधार सैचुरेशन दर औसतन 94% है, वहीं किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जैसे जिलों में यह दर 120% से अधिक पाई गई है। उदाहरण के तौर पर किशनगंज, जहां 68% आबादी मुस्लिम है, वहां सैचुरेशन 126% है। इसी तरह कटिहार में 123%, अररिया में 123% और पूर्णिया में 121% दर्ज किया गया है।
आधार सैचुरेशन दर दर्शाती है कि किसी जिले में कुल जनसंख्या की तुलना में कितने प्रतिशत आधार कार्ड जारी किए गए हैं। आमतौर पर यह आंकड़ा 100% के आसपास होता है, लेकिन इससे अधिक होना गंभीर सवाल खड़े करता है—क्या इतने अधिक आधार कार्ड फर्जी या बाहरी लोगों के नाम पर बनाए गए हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति अवैध घुसपैठ की ओर इशारा करती है, खासकर बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती क्षेत्रों में। बिहार में आधार सैचुरेशन का बढ़ा हुआ आंकड़ा कहीं वोटर लिस्ट में फर्जी नाम जुड़ने या सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग का माध्यम तो नहीं बन रहा?
अब यह चिंता और भी गहरी हो जाती है जब विपक्ष और वामपंथी लॉबी आधार को नागरिकता प्रमाण मानने की मांग करते हैं। यदि फर्जी आधार को नागरिकता का आधार बनाया गया, तो देश की सुरक्षा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया दोनों पर खतरा मंडरा सकता है।
इस रिपोर्ट के बाद पश्चिम बंगाल की स्थिति पर भी सवाल उठने लगे हैं, जहां पहले ही NRC और CAA को लेकर ममता सरकार विरोध में खड़ी है।