छत्तीसगढ़ में जल -जीवन मिशन योजना में बड़ा भ्रष्टाचार ,चम्बल के डकैतों को भी पीछे छोड़ा PHE के इंजीनयरों ने,चेक कटने से पहले 20 फीसदी कमीशन, सरकार की छवि ऐसे ख़राब कर रहे अफसर

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रायपुर /दिल्ली : छत्तीसगढ़ में जल-जीवन मिशन योजना भ्रष्टाचार के चलते अपने मार्ग से तेजी से भटक रही है | इस मामले में PHE विभाग के कई इंजिनियर कांग्रेस सरकार की साख पर बट्टा लगा रहे है | ताजा जानकारी के मुताबिक ठेकेदारों को भुगतान और नई योजनाओ की प्रगति के लिए केंद्र से मिलने वाले प्रस्ताव की मंजूरी के मामले में PHE विभाग लगभग 10 माह पिछड़ गया है |केंद्र सरकार के अफसर जल-जीवन मिशन योजना के विस्तार के प्रस्ताव को लेकर कई महीनो तक राह तकते रहे ,लेकिन राज्य के PHE विभाग से प्रस्ताव मिलते-मिलते कई महीने बीत गए |

सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि राज्य की ओर से प्रस्ताव प्राप्ति में हुई लेट-लतीफी की जब केंद्रीय अफसरों ने पड़ताल की ,तो उन्हें हैरानी हुई | पता पड़ा कि पिछले वित्तीय वर्ष की बड़ी रकम अनावश्यक रूप से एक निजी बैंक में पड़ी रही | उधर इस योजना के क्रियान्वयन में जुटा अमला और ठेकेदार कई महीनो तक भुगतान को लेकर विभाग का चक्कर काटते रहे|अफसरों के हस्तक्षेप से जब भुगतान सुनिंश्चित करने और जल्द प्रस्ताव भेजने का दबाव पड़ा तो PHE विभाग में खलबली मच गई | फौरी तौर पर केंद्र को प्रस्ताव भेजकर राज्य के अफसरों ने ठेकेदारों को पूर्ववर्ती कार्यो का भुगतान करना शुरू किया|इसके साथ ही विभाग में भ्रष्टाचार का सुनिश्चित खेल शुरू हो गया |

जानकारी के मुताबिक जल-जीवन मिशन को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री बघेल ने कई बार कड़े निर्देश दिए है | समीक्षा बैठक में बघेल ने विभागीय अफसरों को इसके लिए चेताया भी था |लेकिन इस बैठक के बाद अफसरों ने नियमानुसार कार्य करने के बजाय अपनी मनमर्जी शुरू कर दी | कई इलाको में जनप्रतिनिधियो ने उन पर लगाम लगाने की कोशिस भी की लेकिन कोई असर नहीं हुआ | 

बताया जाता है कि विभिन्न संभागो में जिलों में पदस्थ कुछ एग्जीक्यूटिव इंजिनियर ने “पहले आओ पहले पाओ” की तर्ज़ पर भुगतान के लिए कमीशन की रकम 18 से 20 फीसदी तक बढ़ा दी है | हाल ही के महीनो में इस भुगतान को पाने और नए प्रस्ताव के तहत योजनाओ के क्रियान्वयन के लिए काम सौंपने को लेकर इंजीनियरों ने बड़े पैमाने पर अफरा-तफरी शुरू कर दी है| कई इंजिनियर तो अपने नाते-रिश्तेदारों को ठेकेदारी में उतार कर टेंडर मैनेज करने में जुटे है|

राज्य शासन ने यदि जल्द ही इस ओर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले वर्षो में उसे ,उन इलाको में ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है ,जहाँ की आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है | दरअसल ,इस महती का उद्देश्य नागरिको को निस्तार और पीने के लिए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति कराना है | इस योजना का वित्तीय भार केंद्र और राज्य सरकार दोनों के हिस्से में लगभग बराबरी का है | राज्यों से समय पर विधिवत प्रस्ताव प्राप्त होने पर केंद्र की ओर से अपना वित्तीय अंश विभागों को सौंपा जा रहा है |

लेकिन छत्तीसगढ़ में PHE विभाग के अफसरों की कार्यप्रणाली के चलते यह योजना लगातार पिछड़ रही है | जमीनी हकीकत यह है कि,मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश के बावजूद मैदानी इलाको में पदस्थ इंजिनियर सरकार की मंशा पर पानी फेर रहे है | कार्यो की गुणवत्ता पर समझौते के साथ 18 से 20 फीसदी कमीशन की मांग से ठेकेदार भी हैरत में है  सुरते हाल यह है कि जोर – जबरदस्ती वसूले जा रहे कमींशन को लेकर पीड़ित जुमले कसने लगे है कि यहाँ के इंजिनियर चम्बल के डकैतो से ज्यादा खतरनाक है|

बताया जाता है कि विभागीय मंत्री से कई बार शिकायते किए जाने और ठेकेदारों की हड़ताल के बावजूद PHE विभाग की कार्यप्रणाली में कोई सुधार नहीं आया है | सूत्रों द्वारा बताया जाता है कि जिलों में पदस्थ जो कुछ एग्जीक्यूटिव इंजिनियर कमीशन खोरी और गुणवत्ताविहीन कार्यो पर जोर दे रहे है, वे सभी मंत्री जी के ख़ास है | नतीजतन मुख्यमंत्री बघेल के तमाम निर्देश ये अफसर रद्दी की टोकरी में डाल रहे है | 

छत्तीसगढ़ में नल-जल मिशन के कार्यो पर निगाह रखने वाले बताते है कि प्रदेश के सिर्फ आधा दर्जन जिलों में ही यह योजना पटरी पर चल रही है | शेष जिलों में काम के नाम पर खानापूर्ति और इंजीनियरों के नाते-रिश्तेदारों को ठेकेदारी सौंप दिए जाने से पेयजल आपूर्ति का हाल बेहाल है | पंचायतो से लेकर आम ग्रामीण PHE विभाग के इन अफसरों की कार्यप्रणाली से त्रस्त बताया जाता है | सबसे ख़राब हालत राजनांदगांव ,बस्तर और सरगुजा संभाग की है|

इन दोनों ही संभागो के कई गांव में गुणवत्ता विहीन कार्यो के चलते पंप हाउस और पाइपलाइन दोनों ही चंद महीनो में ठप्प हो गई | ग्रामीणों की शिकायतों का कई महीनो से कोई निराकरण नहीं हुआ | बताया जाता है कि सबसे ज्यादा शिकायते राजनांदगांव की है | ग्रामीण हो या ठेकेदार हर कोई यहाँ पदस्थ एग्जीक्यूटिव इंजिनियर समीर शर्मा की कार्यप्रणाली से त्रस्त है |

ठेकेदार खुला आरोप लगा रहे है कि उनके कार्यो की भुगतान के लिए कमीशन की रकम 18 से बढाकर 20 फीसदी कर दी गई है | चेक कटने से पूर्व नगद भुगतान के बाद ही उनके ठेके के कार्यो का सरकारी भुगतान होता है | नाम ना छापने की शर्त पर एक ठेकेदार ने बताया कि हाल ही में छत्तीसगढ़ शासन की ओर से लगभग 60 करोड़ राजनांदगांव भेजे गए थे | इसमें अपना भुगतान पाने के लिए उन्हें जमकर नाक रगड़ना पड़ा | आगे के कार्यो का ठेका पाने के लिए भी उन्हें मोटी रकम नगद भुगतान के रूप में पहले चुकानी पड़ रही है |

इसके बाद ही वर्कऑर्डर मिलने की संभावना बनी रहती है ,वर्ना ठेकेदारी से हाथ धोने की स्थिति निर्मित होने देर नहीं लगती | उनकी यह भी दलील है कि यहाँ भी विभागीय ठेकेदारों के बजाय अफसरों के नाते -रिश्तेदारों ने नए नवेले ठेकेदार के रूप में अपने पैर जमा लिए है| ठेकेदारों का साफ़ मानना है कि कसावट की कमी के चलते कई जिलों में एग्जीक्यूटिव इंजिनियर मनमानी में उतर आये है |

समीर शर्मा की कार्यप्रणाली को नाजायज ठहराते हुए उनकी दलील है कि वे विभागीय सचिव की अवहेलना कर अपने तरीके से काम करवाने पर जोर देते है | उनका यह भी कहना है कि दुर्ग में कई गड़बड़ियों की शिकायतों और वरिष्ठ अफसरों की अवहेलना के चलते समीर शर्मा को हटाया गया था | लेकिन राजनांदगांव में अपनी पोस्टिंग कराने में वो कामयाब रहे|

हालांकि यहाँ भी उनका काम – काज विवादों से घिरा हुआ है | वे अक्सर विभागीय मंत्री और सत्ताधारी दल के कुछ नेताओ का करीबी होने का दावा कर सरकार की मंशा पर पानी फेरने में जुटे है | उधर जल जीवन मिशन के कार्यो को लेकर ग्रामीण भी ऐतराज जता रहे है|उन्हें अंदेशा है कि अभी विधिवत कार्य नहीं शुरू किया गया तो राजनांदगावं की एक बड़ी आबादी एक बार फिर जल संकट से जूझेगी | ग्रामीण मांग  कर रहे  है कि लापरवाह अफसरों को यहाँ से हटाया जाये ताकि भविष्य में वे इस योजना से समय पर लाभान्वित हो सके |