चांद की ओर अब और तेजी से जाएगा , चंद्रयान-2 की यात्रा के दिन इसरो ने किए कम | 6 सितंबर को ही चांद पर पहुंचेगा चंद्रयान-2 |

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो का दूसरा मून मिशन चंद्रयान -2 आज यानी 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया जाएगा | इसके बाद चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने के लिए चंद्रयान-2 की 48 दिन की यात्रा शुरू हो जाएगी | करीब 16.23 मिनट बाद चंद्रयान-2 पृथ्वी से करीब 182 किमी की ऊंचाई पर जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट से अलग होकर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाएगा | इसरो वैज्ञानिकों ने 15 जुलाई की लॉन्चिंग की तुलना में आज होने वाली लॉन्चिंग में कुछ बदलाव किए हैं |  
अगर 15 जुलाई को चंद्रयान-2 सफलतापूर्वक लॉन्च होता तो वह 6 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करता | लेकिन आज की लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-2 को चांद पर पहुंचने में 48 दिन ही लगेंगे | यानी चंद्रयान-2 चांद पर 6 सितंबर को ही पहुंचेगा | इसरो वैज्ञानिक इसके लिए चंद्रयान-2 को पृथ्वी के चारों तरफ लगने वाले चक्कर में कटौती होगी | संभवतः अब चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ 5 के बजाय 4 चक्कर ही लगाए |

चंद्रयान-2 की वेलोसिटी में 1.12 मीटर प्रति सेकंड का इजाफा किया गया  

चंद्रयान-2 आज यानी 22 जुलाई को लॉन्च होने के बाद अब चांद की ओर ज्यादा तेजी से जाएगा | अब अंतरिक्ष में इसकी गति 10305.78 मीटर प्रति सेकंड होगी | जबकि, 15 जुलाई को लॉन्च होता तो यह 10,304.66 मीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की तरफ जाता | यानी इसकी गति में 1.12 मीटर प्रति सेकंड का इजाफा किया गया है |

 चंद्रयान-2 अंतरिक्ष यान 22 जुलाई से लेकर 13 अगस्त तक पृथ्वी के चारों तरफ चक्कर लगाएगा | इसके बाद 13 अगस्त से 19 अगस्त तक चांद की तरफ जाने वाली लंबी कक्षा में यात्रा करेगा | 19 अगस्त को ही यह चांद की कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद 13 दिन यानी 31 अगस्त तक वह चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा | फिर 1 सितंबर को विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जाएगा और चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ यात्रा शुरू करेगा | 5 दिन की यात्रा के बाद 6 सितंबर को विक्रम लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा | लैंडिंग के करीब 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान लैंडर से निकलकर चांद की सतह पर विभिन्न प्रयोग करने के लिए उतरेगा |

इसरो के लिए क्यों अहम है चंद्रयान-2 मिशन, पांच बड़े कारण वैज्ञानिक क्षमता दिखाना – जब रूस ने मना किया तो इसरो वैज्ञानिकों ने खुद बनाया लैंडर-रोवर

नवंबर 2007 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था कि वह इस प्रोजेक्ट में साथ काम करेगा | वह इसरो को लैंडर देगा. 2008 में इस मिशन को सरकार से अनुमति मिली | 2009 में चंद्रयान-2 का डिजाइन तैयार कर लिया गया | जनवरी 2013 में लॉन्चिंग तय थी, लेकिन रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रॉसकॉसमॉस लैंडर नहीं दे पाई | इसरो ने चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग मार्च 2018 तय की | लेकिन कुछ टेस्ट के लिए लॉन्चिंग को अप्रैल 2018 और फिर अक्टूबर 2018 तक टाला गया | इस बीच, जून 2018 में इसरो ने फैसला लिया कि कुछ बदलाव करके चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग जनवरी 2019 में की जाएगी | फिर लॉन्च डेट बढ़ाकर फरवरी 2019 किया गया | अप्रैल 2019 में भी लॉन्चिंग की खबर आई थी | इस मिशन की सफलता से यह साफ हो जाएगा कि हमारे वैज्ञानिक किसी के मोहताज नहीं हैं | वे कोई भी मिशन पूरा कर सकते हैं |


चांद पर इसरो का चंद्रयान-2 ऐसा क्या खोजेगा जो दुनिया को हैरान कर दे

चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं | वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है | रोवर चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा | तापमान और वातावरण में आद्रता (Humidity) है कि नहीं | चंद्रमा की सतह पर पानी होने के सबूत तो चंद्रयान 1 ने खोज लिए थे लेकिन चंद्रयान 2 से यह पता लगाया जा सकेगा कि चांद की सतह और उपसतह के कितने भाग में पानी है |


इसरो का छोटा सा कदम, भारत की छवि बनाने की लंबी छलांग

अपने दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 के साथ ISRO अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में हो सकता है कि छोटा कदम रख रहा हो, लेकिन यह भारत की छवि बनाने के लिए एक लंबी छलांग साबित हो सकती है | क्योंकि अभी तक दुनिया के पांच देश ही चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करा पाए हैं | ये देश हैं – अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान | इसके बाद भारत ऐसा करने वाला छठा देश होगा | हालांकि, रोवर उतारने के मामले में चौथा देश है | इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन चांद पर लैंडर और रोवर उतार चुके हैं |

कठिन जगह का चुनावः चांद पर जगह वह चुनी, जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है

इसरो के अनुसार चंद्रयान 2 भारतीय मून मिशन है जो पूरी हिम्‍मत से चाँद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है ,यानी कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र | इसका मकसद, चंद्रमा के प्रति जानकारी जुटाना | ऐसी खोज करना जिनसे भारत के साथ ही पूरी मानवता को फायदा होगा | इन परीक्षणों और अनुभवों के आधार पर ही भावी चंद्र अभियानों की तैयारी में जरूरी बड़े बदलाव लाए जाएंगे | ताकि आने वाले दौर के चंद्र अभियानों में अपनाई जाने वाली नई टेक्नोलॉजी को बनाने और उन्हें तय करने में मदद मिले |

सबसे ताकतवर रॉकेट GSLV Mk-III का उपयोग हो रहा है चंद्रयान-2 मिशन में

GSLV Mk-III भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली लॉन्चर है | इसे पूरी तरह से देश में ही बनाया गया है | तीन स्टेज का यह रॉकेट 4 हजार किलो के उपग्रह को 35,786 किमी से लेकर 42,164 किमी की ऊंचाई पर स्थित जियोसिनक्रोनस ऑर्बिट में पहुंचा सकता है या फिर, 10 हजार किलो के उपग्रह को 160 से 2000 किमी की लो अर्थ ऑर्बिट में पंहुचा सकता है | इस रॉकेट के जरिए 5 जून 2017 को जीसेट-19 और 14 नवंबर 2018 को जीसेट-29 का सफल प्रक्षेपण किया जा चुका है | ऐसी उम्मीद भी है कि इसरो के मानव मिशन गगनयान को इसी रॉकेट के अत्याधुनिक अवतार से भेजा जाएगा |