लावारिस शवों की वारिस: जिनका कोई नहीं, उनके लिए हैं शालू सैनी, 500 शवों का कर चुकी हैं अंतिम संस्कार

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मुजफ्फरनगर: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद में एक महिला ऐसी भी है, जिसने पहले कोरोना काल से लेकर अब तक 500 से भी ज्यादा लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर एक बड़ा उदाहरण समाज के सामने रखा है. मुजफ्फरनगर की निवासी क्रांतिकारी शालू सैनी साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट नाम की एक संस्था चलाती हैं, जिसकी वह राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. शालू सैनी अपनी संस्था के चलते सामाजिक कार्यों से हमेशा जुड़ी रहती हैं.

दरअसल, शालू सैनी उस समय पहली बार सुर्खियों में आई थीं, जब पहले कोरोना काल में लगातार लोगों की मौतें हो रही थीं, जिसके चलते जहां अपने ही अपनों का साथ छोड़ते दिखाई दे रहे थे. उस समय शालू सैनी ने अपनी संस्था के 4 सदस्यों के साथ मिलकर कोरोना से मरने वाले लोगों का पूरी विधि विधान से अंतिम संस्कार करना शुरू किया था. शालू सैनी की मानें तो कोरोना काल में उन्होंने कोरोना से मरने वाले तकरीबन 150 से 200 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया था. इन लोगों द्वारा लावारिस शवों के अंतिम संस्कार का ये सिलसिला अभी भी जारी.

शालू सैनी का दावा है कि वह अभी तक लगभग 500 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं. अंतिम संस्कार ही नहीं, बाकायदा शालू सैनी अपनी संस्था के सदस्यों के साथ लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने के बाद पूरी विधि विधान से उनकी अस्थियों को जनपद में शुक्रताल स्थित गंगा में अर्पण करती हैं. शालू की मानें तो लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के इस कदम को देखते हुए अब पुलिस प्रशासन भी उनकी मदद लेता है. जनपद में अब जो भी लावारिस शव मिलता है, उसके अंतिम संस्कार के लिए पुलिस शालू सैनी से संपर्क करती है. शालू सैनी के इस काम के चलते इनका नाम इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका है और अब गिनीज बुक की बारी है.

शालू सैनी ने आगे कहा कि अब हम लोग थानों की सूचना पर अंतिम संस्कार करते हैं. प्रशासन के सपोर्ट से करते हैं. अंतिम संस्कार के लिए महिलाओं को लेकर समाज की सोच पर उन्होंने कहा कि वैसे तो कहीं लिखा नहीं है कि महिलाएं हिंदू धर्म में श्मशान घाट में नहीं जा सकती, ना ही किसी ग्रंथ में लिखा है. मैं ऐसी घटिया बातों को मानती हूं. जो एक पुरुष कर सकता है, वह एक महिला भी कर सकती है. कोरोना काल में जब अपने ही अपनों का अंतिम संस्कार नहीं कर रहे थे, तब हमने यह काम किया.

उन्होंने आगे कहा कि वैसे तो हमारी टीम बहुत है, लेकिन इस काम को हम 5 लोग करते हैं. अंतिम संस्कार में जो खर्चा होता है, वह आपस में मिल बांटकर हम करते हैं. मेरा नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ है. उसका अवार्ड भी मुझे मिला है. मेरा नाम गिनीज अवार्ड बुक में भी चुन लिया गया है, अभी तक अवार्ड नहीं मिला है. इस काम को करते हुए 3 साल हो चुके हैं और भगवान की अगर इच्छा रही तो मेरे मरने तक मैं इसी काम को करती रहूंगी.

शालू कहती हैं कि जो लोग लावारिस हैं, जिनका कोई अपना नहीं है, मुझे उनका अंतिम संस्कार करने में अच्छा लगता है और मुझे ऐसा लगता है कि मेरा उनसे कोई पुनर्जन्म में रिश्ता रहा होगा. मैं उनका अंतिम संस्कार अपने परिवार का सदस्य समझकर करती हूं. हमारे यहां हिंदू धर्म में अस्थियों का विसर्जन का बहुत महत्व माना गया है. मृतक को तभी मुक्ति मिलती है, जब अस्थियों का विसर्जन हो जाता है. मैं तीसरे दिन यहां पर आती हूं और श्मशान घाट से सारी अस्थियों को चुन कर ले जाती हूं और शुक्रताल जाकर अस्थियों का विसर्जन करती हूं फिर उसके बाद आत्मा की शांति के लिए हवन भी करती हूं.