
आत्महत्या रोकथाम में मीडिया की भूमिका विषय पर कार्यशाला आयोजित |
प्रेम प्रकाश शर्मा /
जशपुरनगर / स्वास्थ्य विभाग द्वारा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत् पुलिस अधीक्षक शंकरलाल बघेल के मुख्य आतिथ्य में मीडिया प्रतिनिधियों की कार्यशाला का आयोजन मुख्यचिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के प्रशिक्षण हॉल में हुआ। यह कार्यशाला आत्महत्या रोकथाम में मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित थी। कार्यशाला को संबोधित करते हुए पुलिस अधीक्षक ने कहा कि यह महत्वपूर्ण कार्यशाला है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की ऐसी मानसिक स्थिति बनती है कि वह आत्महत्या जैसी घातक कदम उठाता है। पुलिस आत्महत्या के कारणों का तथ्यों से एवं जांच पड़ताल से पता लगाने की कोशिश करती है। आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति क्या रही है। यह पता लगाना संभव नहीं है। उन्होंने कार्यशाला में उपस्थित मीडिया के प्रतिनिधियों से आग्रह कि वे आत्महत्या की खबरों को इस तरह से प्रस्तुत करें कि समाज में आत्महत्या के तरीके का प्रचार न हो, कि मरने वाले ने किस तरह से आत्महत्या की है। साथ ही यह भी जोड़े की आत्महत्या करने से उनसे जुड़े लोगों को किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इस अवसर पर मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी श्री एस.एस. पैंकरा, डॉ. खुसरों एवं सीएफएआर संस्था के विषय-विशेषज्ञ सुश्री आरती धर, अतीफ जैदी एवं नदीम अहमद ने मीडिया प्रतिनिधियों से विस्तार से चर्चा की।
कार्यशाला में उपस्थित सीएफएआर संस्था के विषय-विशेषज्ञ सुश्री आरतीधर ने कहा कि इंसान का कर्त्वय है कि वह एक दूसरे की मदद करें। उन्होंने आत्महत्या करने के विभिन्न कारणों की जानकारी देते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जहां आत्महत्या रोकथाम के लिए मीडिया प्रतिनिधियों का प्रशिक्षण प्रारंभ किया गया है। उन्होंनें बताया कि आत्महत्या करने में देश में छत्तीसगढ़ चौथे स्थान पर है। जिसमें 14 वर्ष से 23 वर्ष के युवा सबसे अधिक आत्महत्या करते है। जिसका कारण अधिक्तर पढ़ाई में फेल होना, अपनी इच्छा को पूरा न कर पाना, नौकरी नहीं मिल पाना, दिमाग में अधिक तनाव लेने के साथ ही इस तरह के विभिन्न कारणों की जानकारी दी।

सीएफएआर संस्था के विषय-विशेषज्ञ श्री नदीम अहमद ने कार्यशाला में बताया कि मीडिया को ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जो आत्महत्या को सनसनीखेज या फिर एक सामान्य सी बात बनाती हो या इसे समस्याओं के हल के तौर पर दिखाती हो। अक्सर देखा गया है कि लोगों का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से शीर्षक सनसनीखेज बनाए जाते हैं। अधिकांश रिपोर्टों के लिए ये न्यायोचित हो भी सकता है, लेकिन आत्महत्या पर रिपोर्ट लिखते समय ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि ये पाठक पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसलिए इस बात पर ध्यान देना भी जरूरी है कि शीर्षक सनसनीखेज न बनाए जाएं। शीर्षक में आत्महत्या शब्द को इस्तेमाल करने से बचा भी जा सकता है।
आत्महत्या की रिपोर्टों को पृष्ठ में मुख्य स्थान पर लगाने व उनके गैरजरूरी दोहराव से बचना जनहित के लिए एक अच्छा प्रयास हो सकता है। इसके साथ ही आत्महत्या या आत्महत्या की कोशिश में अपनाए गए तरीकों को विस्तार से बताने से बचें। उन्होंने आगे कहा कि जहां तक संभव हो तो रिपोर्ट में मृत व्यक्ति की फोटो का इस्तेमाल करने से बचें। रिपोर्ट को इस तरीके से लिखा जा सकता है कि उसमें इस्तेमाल किए गए तरीके के बारे में न बताया जाए और इसका खबर पर कोई प्रभाव भी न पड़े। पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री अमानुल्ला मलिक ने कहा कि आत्महत्या के खबरों में इस बात का उल्लेख किया जाना चाहिए कि जो व्यक्ति आत्महत्या करता हैं उस पर आश्रित लोग विशेषकर मां-पिता, पत्नी, बच्चें की स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे परिवार का सहारा छीन जाता है। साथ ही नईदुनिया के पत्रकार विश्वबंधु शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि अवसाध आत्महत्या का प्रमुख कारण है। उन्होनें मानसिक तनाव, अवसाध के संबंध पर विस्तृत रूप जानकारी दी और कहा कि मीडिया इस मामले में सकारत्मक भूमिका अदा करेगा। इसके अलावा कार्यशाला में उपस्थित इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया से जुड़े के सभी पत्रकारगणों के प्रश्नों एवं शंकाओं का समाधान भी किया गया।