120 किलो सोने से चमक रहा बाबा विश्वनाथ का मंदिर, स्वर्णिम आभा के बीच भक्त कर रहे है दर्शन,आप भी देंखे तस्वीरें

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श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने साल 1780 में कराया था। इसके बाद साल 1853 में महाराजा रणजीत सिंह ने 22 मन शुद्ध सोने से इसके शिखरों को स्वर्ण मंडित कराया था। उसके बाद जाकर अब इस साल महाशिवरात्रि पर बाबा विश्वनाथ के दरबार को स्वर्ण पत्तर से सजा दिया गया है।  

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए एक भक्त ने 120 किलो सोने का गुप्त दान किया है। यह भक्त दक्षिण भारत का रहने वाला है। इस सोने से पिछले 10 दिन के अंदर गर्भगृह के अंदर स्वर्ण पत्तर लगाए जा चुके हैं। अब बाहर की दीवार पर लगाए जाएंगे यानी बाबा का पूरा मंदिर स्वर्ण जड़ित होगा।

रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब काशी विश्वनाथ में पूजा की तो पहली बार गर्भगृह स्वर्ण जड़ित होने की तस्वीरें सामने आई। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वर्ण मंडित गर्भगृह में पहली बार जलाभिषेक किया। वह खुद भी दीवारों और सीलिंग को देखकर चकित रह गए।

मंदिर से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि बाबा को भक्त ने करीब एक महीने पहले गुप्त दान किया है। हालांकि भक्त का नाम क्या है, इसकी जानकारी सामने नहीं आई है। 10 दिन पहले गर्भगृह को स्वर्ण जड़ित करने का काम शुरू हुआ था। अब गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाने का काम हो चुका है। महाशिवरात्रि यानी कल 1 मार्च को भक्तों को सोने के पत्तर देखने को मिलेंगे। इसके चलते बाबा विश्वनाथ के मंदिर की आभा और चमक देखने लायक बन रही है।


मंदिर की आंतरिक सुरक्षा CRPF के हवाले है। बाह्य सुरक्षा में यूपी पुलिस और PAC के जवान ड्यूटी पर 24 घंटे रहते हैं। इनकी ड्यूटी शिफ्ट में लगती है। जगह-जगह CCTV कैमरे भी लगे हैं। कोई भी भक्त सोने की परत को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। भक्तों को गर्भगृह में लगी स्टील की बैरिकेडिंग से बाहर निकाल दिया जाता है। अमूमन सावन और महाशिवरात्रि जैसे बड़े त्योहारों पर भक्तों के हुजूम के कारण उन्हें गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता है। झांकी दर्शन और वहीं से जलाभिषेक करने की व्यवस्था की जाती है।


इससे पहले 2012 में भी मंदिर के गर्भगृह को स्वर्ण जड़ित करने का प्लान तैयार किया गया था। लेकिन, तब IIT-BHU के सिविल इंजीनियरों ने गर्भगृह की दीवारों का परीक्षण किया था। इंजीनियरों का कहना था कि गर्भगृह के दीवारें इतना भार नहीं सहन कर सकतीं। जिसके बाद यह योजना आगे नहीं बढ़ सकीं। वहीं पिछले साल 13 दिसंबर को जब कॉरिडोर का निर्माण पूरा हो गया, तब गर्भगृह की दीवारों को मजबूती मिली। इसके बाद महाशिवरात्रि से पहले पूरे गर्भगृह को स्वर्ण मंडित करने का फैसला लिया गया।