नई दिल्ली| शादी को यादगार बनाने लिए लोग लाखों- करोड़ों रुपये खर्च कर देते हैं. महंगे कपड़ों, बैंड बाजा से लेकर तमाम चीजों के लिए पैसे खर्च किए जाते हैं. लेकिन अपने देश में ही एक जगह ऐसी है, जहां दूल्हा नंगे पैर केवल बनियान पहन कर दुल्हन को लेने जाता है. केवल इतना ही नहीं यहां पूरा शहर बाराती बनता है. इसे शादियों का ओलंपिक कहा जाता है.
300 साल से चली आ रही है परंपरा
दरअसल हम बात कर रहे हैं राजस्थान के बीकानेर शहर के पुष्करण समाज की. पुष्करण समाज की ये अनोखी परंपरा है. इस परंपरा के अनुसार दूल्हा नंगे पैर बारात लेकर ससुराल जाता हैं. दुल्हा केवल बनियान पहने होता है. पुष्करण समाज ये परंपरा 300 साल से निभाते आ रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस बार भी बीकानेर में 18 फरवरी को पुष्करणा सावा में सैकड़ों शादियां इसी तरह से हुई.
दूल्हा को विष्णु और दुल्हन को लक्ष्मी माना जाता है
कहा जाता है कि पुष्करण समाज की इस परंपरा में दूल्हा को विष्णु और दुल्हन को लक्ष्मी का रूप माना जाता है. यहां शादियों में बैंड-बाजा की जगह शंख की ध्वनि और मांगलिक गीत गूंजते हैं. सावा देखने के लिए देश भर से समाज के लोग बीकानेर आते हैं. पुष्करणा सावे में मांगलिक रस्म ‘खिरोड़ा’ होती है, जिसमें पापड़ पढ़े जाते है. महिलाएं शुभ मुहूर्त में बड़ पापड़ तैयार करती हैं. इनको कुमकुम से चित्रकारी से सजाती भी है. विवाह की रस्मों में वधू पक्ष की ओर से खिरोड़ा वर पक्ष के यहां पहुंचाया जाता है. खिरोड़ा सामग्री में शामिल बड़ पापड़ को वर-वधू पक्ष के लोग पारम्परिक दोहो का गायन कर पापड़ बांचते हैं.
राज्य सरकार भी करती है सहयोग
यहां पुष्करणा समाज एक ही डेट पर शादी के योग्य हो चुके अपने बच्चों की शादियां कर देता हैं. इसके पीछे समाज की एक बहुत अच्छी सोच है. सभी घरों में शादी होगी तो किसी एक घर में ज्यादा मेहमान नहीं पहुंचेंगे. कम बाराती पहुंचेंगे, तो बेटी के बाप पर ज्यादा खर्च नहीं आएगा. राज्य सरकार भी इस परंपरा में अपना योगदान देती है. राज्य सरकार परकोटे को एक छत घोषित करते हुए शादियों के लिए अनुदान देती है. वहीं जो दूल्हा सबसे पहले बारात लेकर पहले चौक से निकलता है, उसे इनाम दिया जाता है.
शादियों में नहीं होता कोई लेनदेन
वहीं इन शादियों में किसी प्रकार का लेनदेन नहीं होता है. इतना ही नहीं बड़ी संख्या में गरीब परिवारों को विवाह सामग्री के साथ नगदी भी पहुंचाई जाती है और जो सहायता देता है उसका नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है.