रायपुर : राजधानी रायपुर एक समय में बाड़ों के शहर नाम से (city of enclosure raipur) मशहूर हुआ करता था. इन बाड़ों का निर्माण यहां मालगुजार, जमींदार और राजाओं ने कराया था. समय के साथ-साथ बाड़ों के नाम से मशहूर शहर रायपुर आज अपनी पहचान खो चुका है. राजधानी के अलग-अलग हिस्सों में कई बाड़े मौजूद थे, जिसमें मालगुजार राजा और जमींदार निवास करते थे. लेकिन राजधानी रायपुर के कई बाड़े आज समय के साथ-साथ अपनी पहचान खो चुके हैं.
रायपुर में बाड़े को लेकर इतिहासकार डॉ रमेन्द्रनाथ मिश्र ने बताया कि रायपुर राज्य के कलचुरी राजाओं ने रायपुर को अपनी राजधानी बनाई थी. शुरुआती दिनों में इनका किला खारून नदी के किनारे था. बाद में राजधानी के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में इन्होंने अपना किला बनवाया. साल 1741 में मराठों के आक्रमण के बाद 1853 तक यहां मराठा शासक नागपुर के भोंसले राजाओं का प्रभाव रहा. फिर साल 1854 से 1947 तक अंग्रेजों का प्रभाव रहा. अंग्रेजों ने बिलासपुर जिले के रतनपुर से अपनी राजधानी हटाकर रायपुर में बनाई थी. तभी से रायपुर पूरे छत्तीसगढ़ का केंद्र बिंदु बन गया था.
राजा, जमींदार और मालगुजारों ने अपने साथ-साथ परिवार को रखने के लिए निवास स्थान के रूप में बाड़े का निर्माण कराया था. उस जमाने में जितना सुरक्षित एक किला था, उतना ही सुरक्षित उनका यह निवास स्थान भी था. सुरक्षा के लिहाज से इनके चारों ओर लंबी और ऊंची दीवारें बना दी गई थीं. इन्हीं दीवारों को बाड़ा कहा जाता था. ये बाड़े सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से अपने आप में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे.
इतिहासकार रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि रायपुर में जमींदार, राजा और मालगुजार के बनाए बाड़े का नाम बस्तर बाड़ा, छुईखदान बाड़ा, खैरागढ़ बाड़ा, कांकेर बाड़ा, फिंगेश्वर बाड़ा, कोमाखान बाड़ा, धनेली बाड़ा और शास्त्री वाड़ा जैसे दर्जनों बाड़े का निर्माण कराया था. जब इन बाड़ों में जमींदार, मालगुजार और राजाओं ने रहना छोड़ दिया तो कुछ लोगों ने ये बाड़े बेच दिये. इस कारण कई बाड़े आज बदहाल हैं. जो बचे हैं, वह भी जीर्ण-शीर्ण हैं. अब तो कई जगह ईंट और क्रांकीट के दर्जनों आलीशान मकान वहां बस गए हैं, जहां कभी ये बाड़े हुआ करते थे.