चंडीगढ़:- पंजाब में विधान सभा चुनावों की वोटिंग में 24 घंटे से कम का वक्त बचा है. इस बार पहला मौका है जब दो दलों या गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला होने के बजाय पंजाब कि सियासी लड़ाई पांच ध्रुवीय हो कर बहुआयामी बन चुकी है. यानी साल 1969 के चुनाव की ही तरह इस बार भी पंजाब की सियासी तस्वीर साफ नहीं दिख रही है. ऐसे में पंजाब के सियासी पंडितों का मानना है कि क्या 53 साल पुराना इतिहास पंजाब दोहराएगा?
दरअसल, पंजाब की सियासी लड़ाई अभी तक कांग्रेस और अकाली दल-बीजेपी गठबंधन के बीच होती रही है. इन्हीं दोनों में से कोई न कोई पंजाब की सत्ता पर काबिज रहा है. हालांकि 2017 के चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) ने किस्मत आजमाई और पंजाब की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया. पर इस बार बीजेपी और अकाली दल अलग खेमे में हैं तो पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग होकर बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं. वहीं इस बार तो किसान आंदोलन से निकली पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा भी चुनावी मैदान में है.
एक ओर पंजाब में CM चन्नी के अगुवाई में कांग्रेस अपना किला बचाए रखने की जद्दोजहद कर रही है तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी सत्ता में आने को बेताब है. केजरीवाल ने 2017 की हार से सबक लेते हुए भगवंत मान सिंह को अपना CM कैंडिडेट घोषित किया है. वहीं कांग्रेस से नाता तोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ पार्टी के लिए भले की कोई खास कमाल करते न दिख रहे हों, लेकिन बीजेपी के साथ मिलकर उसे संजीवनी जरूर दे चुके हैं.
पंजाब चुनाव में 5 दलों की सियासी ताकत लगाए जाने से विधान सभा की सभी 117 सीटों में से ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष दिख रहा है. लिहाजा ऐसे में पंजाब विधान सभा चुनावों के नतीजे लोगों को हैरान कर सकते हैं. चुनावी हवा किस तरफ बह रही है कहना मुश्किल है. क्योंकि मामला किसी भी सीट पर एकतरफा नहीं कहा जा सकता है. दरअसल पंजाब में पांच ध्रुवी लड़ाई दिख रही है और प्रचार के आखिर दिनों में जिस तरह से समीकरण देख रहे हैं. ऐसे में त्रिशंकु चुनावी नतीजे भी आ सकते हैं.
पंजाब से हरियाणा के अलग होने के बाद सिर्फ दो बार ऐसा हुआ है जब किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. 1967 में चुनाव के बाद गैर-कांग्रेसी दलों ने पीपल्स युनाइटेड फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया गया और अकाली दल के नेता गुरनाम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन 9 महीने से पहले ही उनकी सरकार गिर गई. लछमन सिंह गिल के अलग होने से उनकी सरकार अल्पमत में आ गई. उसके बाद लछमन सिंह गिल कांग्रेस के समर्थन से CM बने, लेकिन वो भी ज्यादा दिनों तक सरकार नहीं चला सके. तब 1969 में दोबारा चुनाव करना पड़ा.
1969 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद पांचवी विधानसभा अस्तित्व में आई. इस बार भी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. शिरोमणी अकाली दल को 48 सीटों पर जीत मिली, जबकि 38 सीटें कांग्रेस ने जीतीं और 8 सीटों पर भारतीय जन संघ के प्रत्याशी जीते. युनाइटेड फ्रंट की मिलीजुली सरकार में अकाली दल नेता गुरनाम सिंह दूसरी बार 17 फरवरी 1969 को राज्य के मुख्यमंत्री बने. इस बार उनकी सरकार 1 साल 38 दिन चली. उनके बाद शिरोमणी अकाली दल के ही प्रकाश सिंह बादल भारतीय जन संघ के समर्थन से मुख्यमंत्री बने.
पंजाब में आतंकवाद के मामले बढ़ने के चलते 1987 से 1992 तक राष्ट्रपति शासन रहा. 1992 में चुनाव में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई. इसके बाद 1997 में चुनाव में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा और स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आई. हालांकि, पांच साल के बाद 2002 के चुनाव में कांग्रेस प्रचंड बहुमत के साथ सरकार में आई, लेकिन 2007 के चुनाव में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन ने वापसी की. यानी अकाली दल-बीजेपी गठबंधन दस साल तक सत्ता में रहा.