छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार का ‘हनीमून खत्म’, अब वादा निभाने का आया वक्त, पार्टी घोषणा पत्र से पल्ला झाड़ रही कांग्रेस की रक्षा के लिए पुलिस को सड़क पर उतारने की रणनीति, प्रदर्शनकरियों को काबू में करने के लिए पुलिस प्रशिक्षण शुरू…

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रायपुर:- छत्तीसगढ़ में बीजेपी के सड़कों पर उतरने के साथ ही पुलिस की मुश्किल बढ़ गई है. अब उसे क़ानून व्यवस्था का पालन करने के लिए कड़ी कवायद करनी पड़ रही है. दरअसल अब भूपेश बघेल सरकार का हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है. तीन साल का कार्यकाल ख़त्म होने के बाद ‘क्या खोया क्या पाया’ की तर्ज पर सरकार के कामकाज का चिठ्ठा भी सामने आने लगा है. सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी तेजी से बढ़ रही है. मुख्यमंत्री बघेल का ग्राफ भी नीचे आ गया है. उनके तीन साल के कार्यकाल को बीजेपी काला चिठ्ठा करार दे रही है. तो कांग्रेस खुद ब खुद अपनी पीठ थपथपा कर तीन साल की उपलब्धि गिना रही है.

यही नहीं मुद्दों की असलियत का सामना होते ही कांग्रेस, पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के पंद्रह सालों के कामकाज का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ने में पीछे नहीं है. किसी भी मुद्दे पर अपने बचाव में वह बीजेपी पर ठीकरा फोड़ रही है. जबकि बीजेपी को उसकी करनी का फल जनता दे चुकी है. ऐसे में हर किसी मामले पर बीजेपी पर दोषारोपण कर कांग्रेस का बच निकलना जनता की निगाहों में है. राज्य की पुलिस भी इस नज़ारे को देखकर हैरत में है. लिहाज़ा उसने कांग्रेस सरकार की रक्षा के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी है.

पुलिस को लगने लगा है कि साल भर बाद विपक्षियों का सड़क पर उतरना और प्रदर्शन करना आम हो जाएगा. ऐसे में क़ानून व्यवस्था से निपटना उसके लिए बड़ी चुनौती साबित होगा. लिहाज़ा पुलिस ने अभी से प्रदर्शनकारियों को काबू में करने की योजना को अमल में लाना शुरू कर दिया है. इसकी शुरुआत एक साथ रायपुर और जगदलपुर से हुई है. जगदलपुर में शहर बंद कराने में जुटे बीजेपी के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने सुबह से ही धर लिया ताकि उनका आंदोलन अंजाम तक ना पहुंच सके. शहर के एक सैकड़ा से ज़्यादा नेताओं को हिरासत में लेकर पुलिस ने बीजेपी के आंदोलन की कमर तोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. हालांकि पुलिसिया कहर के बावजूद कई लोगों ने अपनी दुकाने बंद रख बीजेपी का समर्थन किया.

इधर रायपुर में पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए पुलिस-प्रशासन ने भी मॉकड्रील की. इसमें प्रदर्शनकारियों पर वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल किया गया. प्रदर्शकारियों को काबू में करने के लिए लाठी भी भांजी गई. इससे पहले मैदान छोड़ने के लिए उन्हें चेतावनी भी दी गई. इसके बाद पुलिस ने अपना रंग दिखाया. बल प्रयोग कर प्रदर्शनकारियों को खदेड़ा गया.मॉकड्रील में पुलिस अधीक्षक प्रशांत अग्रवाल और कलेक्टर सौरभ कुमार मौजूद रहे. इस दौरान जनता के आक्रोश को दबाने के लिए हर तरकीब का उन्होंने आंकलन किया.

मॉकड्रील की कामयाबी के बाद एसएसपी प्रशांत अग्रवाल ने कहा कि यह रूटीन प्रक्रिया है. पुलिस बल को किसी भी स्थिति से निपटने के लिए ऐसी मॉकड्रील कराई जाती है. उन्होंने कहा कि यह पुलिस की रूटीन एक्सरसाइज़ है. उधर प्रशासन और राजनीति के जानकार बताते हैं कि बीते तीन सालों में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से गिरा है. प्रदेश की पहचान विकास के बजाए ‘गोबर प्रदेश’ की हो गई है. इसमें भी व्यापक भ्रष्टाचार है. कांग्रेस अपने घोषणा पत्र से ही मुकर गई है. शराब बंदी का वादा कर गाँव गाँव में वैध-अवैध शराब की नदियां बहाई जा रही है.

नौजवानो को ढाई हज़ार रुपए मासिक भत्ता देने का वादा कर कांग्रेस मुकर गई है. कोयला, सीमेंट, रेत् और खनिज कारोबारियों से मोटी रकम उगाही जा रही है. बीजेपी सरकार के कार्यकाल में राज्य पर पैतीस हज़ार करोड़ का कर्ज था जो महज तीन वर्ष में 65 हज़ार करोड़ तक पहुंच गया है. जबकि विकास कार्य ठप है. जाहिर है राज्य में प्रशासनिक अफरा तफरी का माहौल है.

जानकार बताते है कि प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ बन रहे माहौल से पुलिस भी वाकिफ है. लिहाज़ा पुलिस ने अपनी तैयारी अभी से शुरू कर दी है. अभी तो सिर्फ बीजेपी ही सड़कों पर निकली है, प्रदेश भर में किसान भी सड़कों पर उतरने की कवायद में जुटे है. नवा रायपुर के किसानों ने तो इसका आगाज भी कर दिया है. वादा खिलाफी से नाराज़ नौजवान बेरोजगार और कर्मचारी संगठन भी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन की चेतावनी दे रहे है.

बस्तर से लेकर सरगुजा तक आदिवासी और उनके संगठन आंदोलन की रूपरेखा तय कर रहे है. ऐसे में क़ानून व्यवस्था को भी मजबूत किया जाना ज़रूरी माना जा रहा है. जानकारों के मुताबिक़ कांग्रेस समर्थित अफसरों के निर्देश पर राज्य की भूपेश बघेल सरकार के बचाव के लिए अब पुलिस को रणनीतिक तौर पर मैदान में उतारने की कवायत जोरो पर है.