26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान लागू किया गया था। भारतीय संविधान के निर्माण में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की मुख्य भूमिका थी। संविधान सभा में कुल 379 सदस्य थे। संविधान को तैयार करने में शामिल महिलाओं के बारे में लोग नहीं जानते हैं। भारतीय संविधान में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली इन मातृ शक्तियों के बारे में देश ही नहीं पूरी दुनिया को पता होना चाहिए। संविधान सभा में 15 महिलाएं शामिल थीं। गणतंत्र दिवस के मौके पर जानिए भारतीय संविधान निर्माण में अपना अमूल्य योगदान देने वाली इन 15 महिलाओं के बारे में।
अम्मू स्वामीनाथन: अम्मू स्वामीनाथन का जन्म केरल के पालघाट जिले के अनाकारा में हुआ था। वह 1946 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा का हिस्सा बनी थीं। 24 नवंबर 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करने के लिए अपने भाषण में अम्मू ने कहा था, ‘बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए हैं। अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं।
बेगम एजाज रसूल: संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला बेगम एजाज रसूल थीं। 1950 में जब भारत में मुस्लिम लीग भंग हुई तो बेगम एजाज कांग्रेस में शामिल हो गईं। इसके बाद 1952 में वह राज्यसभा के लिए चयनित हुईं और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य रहीं। 1967 से 1971 के बीच बेगम एजाज रसूल सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रहीं। उन्हें साल 2000 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।
दुर्गा बाई देशमुख: दुर्गा बाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई 1909 को हुआ था। 12 साल की उम्र से ही समाज सेवा के काम में जुट गई थीं। उन्होंने इतनी छोटी उम्र में गैर-सहभागिता आंदोलन में भाग लिया। साल 1936 में दुर्गाबाई ने आंध्र महिला सभा की स्थापना की। इसके बाद वह केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय शिक्षा परिषद और राष्ट्रीय समिति पर लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष भी रहीं। 1971 में भारत में साक्षरता के प्रचार प्रसार में दुर्गाबाई के उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें चौथे नेहरू साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बाद में 1975 में दुर्गाबाई देशमुख को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
दक्षिणानी वेलायुद्ध: दक्षिणानी वेलायुद्ध सविंधान सभा की एकमात्र दलित महिला थीं। कोच्चि के बोलगाटी द्वीप पर 4 जुलाई 1912 को दक्षिणानी वेलायुद्ध का जन्म हुआ था। वह समाज के शोषित वर्गों की नेता थीं। साल 1945 में दक्षिणानी को कोच्चि विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया। वहीं एक साल बाद 1946 में संविधान सभा के लिए पहली और एकमात्र दलित महिला का चयन हुआ।
कमला चौधरी: कमला चौधरी का उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में एक समृद्ध परिवार में जन्म हुआ था। 1930 में महात्मा गांधी के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने सक्रियता में हिस्सा लिया था। कमला चौधरी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की उपाध्यक्ष रहीं और लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गईं। कमला चौधरी एक प्रसिद्ध लेखिका भी थीं, जिनकी कहानियां महिलाओं पर आधारित होती थीं।
हंसा जिवराज मेहता: बड़ौदा में 3 जुलाई 1897 को हंसा जिवराज मेहता का जन्म हुआ था। उन्होंने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र की पढ़ाई की। बाद में भारत में सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम किया। वह एक शिक्षिका और लेखिका भी थीं। 1926 में हंसा को बॉम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुना गया। वहीं 1945-46 में हंसा अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं।
मालती चौधरी: मालती चौधरी 16 साल की उम्र में शांति निकेतन गई, जहां विश्व भारती में उनकी भर्ती हो गई। इसके बाद नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया। इस दौरान मालती चौधरी अपने पति संग कांग्रेस में शामिल हुईं और आंदोलन में भाग लेने लगीं।
राजकुमारी अमृत कौर: लखनऊ में 2 फरवरी 1889 को अमृत कौर का जन्म हुआ था। अमृत कौर कपूरथला के पूर्व महाराज के पुत्र हरनाम सिंह की बेटी थीं। अमृत कौर ने ट्यूबरकुलोसिस एसोसिएशन ऑफ इंडिया व सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की थी। लीड ऑफ रेड क्रॉस सोसाइटी के गवर्नर बोर्ड और सेंट जॉन एम्बुलेंस सोसाइटी की कार्यकारी समिति की अध्यक्षता में उपाध्यक्ष भी रहीं। बाद में साल 1964 में अमृत कौर के निधन के बाद द न्यूयॉर्क टाइम्स ने उन्हें देश की सेवा के लिए ‘राजकुमारी’ की उपाधि दी थी।
सरोजिनी नायडू: हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 को सरोजिनी नायडू का जन्म हुआ था। सरोजिनी नायडु को ‘नाइटिंगेंल आफ इंडिया’ भी कहा जाता है। सरोजिनी नायडु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। वहीं उन्हें भारतीय राज्य का गवर्नर भी नियुक्त किया गया था।
रेणुका: रेणुका ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से बीए की पढ़ाई पूरी की थी, जिसते बाद 1934 में कानूनी सचिव के रूप में कार्य किया। उन्होंने ‘भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता’ नामक एक दस्तावेज प्रस्तुत किया था। 1943 से 1946 तक रेणुका केंद्रीय विधान सभा, संविधान सभा और अनंतिम संसद की सदस्य रहीं। साल 1952 से 1957 में रेणुका पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के तौर पर कार्यरत रहीं।
लीला रॉय: 1900 में असम के गोलपाड़ा में लीला राॅय का जन्म हुआ था। उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। लीला साल 1937 में कांग्रेस में शामिल हुईं, जिसके बाद उन्होंने बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की। लीला राॅय सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिति की भी सदस्य बनीं। 1947 लीला राॅय ने पश्चिम बंगाल में एक महिला संगठन और भारतीय महिला संघती की स्थापना की थी।
पूर्णिमा बनर्जी: पुर्णिमा बनर्जी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण जेल गईं थीं। उन्हें इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया था। पूर्णिमा बनर्जी ने शहर समिति के सचिव के रूप में ट्रेड यूनियनों, किसान मीटिंग्स और अधिक ग्रामीण जुड़ाव की दिशा में काम किया था।
एनी मास्कारेन: केरल के तिरुवनंतपुरम में जन्मी एनी मास्कारेन एक लैटिन कैथोलिक परिवार से ताल्लुक रखती है। एनी त्रावणकोर राज्य से कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिला थीं। बाद में त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला भी एनी मास्कारेन बनीं। 1939 से साल 1977 कर कई बार उन्हें उनकी राजनीतिक सक्रियता के कारण जेल जाना पड़ा। इस दौरान 1951 में भारतीय आम चुनाव में पहली बार एनी लोकसभा के लिए चुनी गईं। वह केरल की पहली महिला सांसद भी थीं।
सुचेता कृपलानी: हरियाणा के अंबाला में साल 1908 में जन्मी सुचेता कृपलानी आजाद भारत में पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं। साल 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला विंग की स्थापना सुचेता कृपलानी ने की थी। 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में अहम भूमिका में रहीं। अपने राजनीतिक कार्यकाल में सुचेता कृपलानी नई दिल्ली से सांसद और उत्तर प्रदेश में श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री के रूप में कार्यरत रहीं।
विजया लक्ष्मी पंडित: विजया लक्ष्मी पंडित आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं। उनका जन्म इलाहाबाद में हुआ, जहां से उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत इलाहाबाज नगर निगम चुनाव से की। 1936 में विजया लक्ष्मी पंडित को संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुना गया। 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री का पद मिला। वह देश की महिला कैबिनेट मंत्री बनने वाली पहली भारतीय थीं।