आदिवासियों के साथ भी छलावा और वादाखिलाफी के आरोपों के बीच गणतंत्र दिवस पर बस्तर में झण्डा फहराएंगे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पूर्व सीएस निर्मला बुच के बाद जस्टिस पटनायक कमेटी की सिफारिशें अधर में, नक्सली मामलो में जेलों में बंद हज़ारों आदिवासियों को आज भी रिहाई का इंतज़ार…

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दिल्ली/रायपुर:– छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गए वादों को लेकर दो-चार होना पड़ रहा है. वहीं पार्टी भी अब अपने वादों को लेकर यू-टर्न मार रही है. प्रदेश में शराब बंदी के वादे से पीछे हटने के बाद बेरोजगार नौजवानों को 2500 रुपए प्रतिमाह भत्ता देने के मामले में भी पार्टी मुकरने लगी है. विपक्ष प्रत्येक बेरोजगारों को तीन साल का भत्ता एक मुश्त लगभग 1 लाख रुपए की अदायगी की मांग कर रहा है. वही कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने साफ़ कर दिया है कि, ऐसा कोई वादा नौजवानों से नहीं किया गया है. चाहे तो पार्टी घोषणा पत्र देख लें. विपक्ष सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाकर घेराबंदी करने में जुटा है. नया मामला सालों से जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई का है. प्रदेश की विभिन्न जेलों में आज भी हज़ारों आदिवासी अपनी रिहाई की बाट जोह रहे हैं.

कांग्रेस सरकार ने पार्टी घोषणा पत्र में उनकी रिहाई का वादा किया था. लेकिन सत्ता में तीन साल बीत जाने भी उन आदिवासियों की रिहाई अधर में लटकी हुई है. जो थोड़े बहुत आरोपी जेलों से रिहा हुए हैं वे सामान्य अपराधों में निरुद्ध हुए थे. बुच कमेटी के बाद पटनायक कमेटी की सिफारिशें भी गति नहीं पकड पाई है. लिहाज़ा ऐसे आदिवासियों की रिहाई कब होगी, इसे लेकर सरकार और कांग्रेस पार्टी चुप्पी साधे हुए है. इस मामले को आदिवासियों के साथ भी वादाखिलाफी से जोड़कर देखा जा रहा है. मुख्यमंत्री बघेल 26 जनवरी को बस्तर में झण्डारोहण करेंगे. इस दौरान इन आदिवासियों की रिहाई लेकर उनके वक्तव्यों का इंतज़ार किया जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि आदिवासियों की रिहाई मामले में सरकार यू-टर्न नहीं लेगी.

दरअसल वर्ष 2015 में सुकमा के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के नक्सलियों द्वारा अपहरण और उनकी रिहाई के बाद तत्कालीन रमन सरकार ने आदिवासियों के खिलाफ चल रहे मामलों को निपटाने के लिए 3 सदस्यीय कमेटी बनाई थी. मध्यप्रदेश की पूर्व चीफ सेक्रेटरी निर्मला बुच इसकी अध्यक्ष थीं.कमेटी ने 7 बैठकों में 189 मामलों में जमानत पर रिहाई की अनुशंसा की थी. इनमें से 66 मामलों में आदिवासी जमानत पर रिहा हुए, 48 में दोष मुक्त हुए और 13 मामलों में कोर्ट से सजा हुई थी. बाकि के मामले ठंडे बस्ते में चले गए.

21 अप्रैल 2012 को माओवादियों ने सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण कर लिया था. एलेक्स पॉल के मामले में माओवादियों ने सरकार से बातचीत के लिए डॉक्टर ब्रह्मदेव शर्मा और प्रोफेसर हरगोपाल को मध्यस्थ बनाया था. सरकार ने मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव एसके मिश्रा को बातचीत के लिए अधिकृत किया था. 4 मई 2012 को जब प्रोफेसर हरगोपाल और ब्रह्मदेव शर्मा की पहल पर कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन की रिहाई की गई, उसके कुछ ही घंटों बाद निर्मला बुच की अध्यक्षता वाली कमेटी का गठन किया गया था. इस कमेटी ने तत्काल काम करना शुरू कर दिया था.

इस कमेटी ने आदिवासियों की रिहाई और उन पर लगे मामलों की जांच के लिए 3 वर्ग तय किए थे. इसमें छोटे अपराध जिसमे में चोरी, लिमिट से ज्यादा शराब रखने जैसे केस शामिल किए गए. बड़े अपराध में हत्या, दुष्कर्म और मारपीट जैसे केस और नक्सल से जुड़े मामले इस तरह से इसे 2 वर्ग में बांटा गया। इसमें आरोपियों द्वारा पहले खुद हथियार उठाने के मामले और दूसरा जो भीड़ में शामिल रहने को पृथक किया गया था. बुच कमेटी की कुल दस बैठक हुई थी, लेकिन आदिवासियों की रिहाई की दिशा में बड़ा बदलाव नहीं आ पाया. बुच कमेटी ने 300 मामलों की समीक्षा की थी. 81 मामलों में आदिवासियों की जमानत का विरोध नहीं करने का सुझाव दिया था. प्रदेश की जेल में बंद कैदियों में सात फीसद नक्सली और नक्सल मामलों से जुड़े हैं. बुच कमेटी ने नक्सली और गैर नक्सली सभी मामलों में सुनवाई की थी.

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में इस मुद्दे को शामिल किया था, उसने वादा किया था कि जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा किया जायेगा. सरकार बनने के बाद इस पर सुप्रीम कोर्ट से रिटायर न्यायाधीश पटनायक कमेटी बना दी गई थी. बुच कमेटी की तर्ज़ पर पटनायक कमेटी ने भी एकरूपता,समानता दिखाते हुए प्रदेश में आबकारी मामलों में जेलों में बंद आदिवासियों को छोड़ने के लिए सिफारिश किया था. लेकिन असल मुद्दा नक्सली मामलों में जो निर्दोष आदिवासी जेलों में बंद है,उन्हें छोड़ने को लेकर कोई ठोस पहल नहीं हुई. बस्तर की जेलों में कई ऐसे आदिवासी 17-18 साल से बंद है जिन पर नक्सलियों की मदद या स्लीपर सेल के रूप में काम करने के आरोप है. हालात अब भी जस के तस हैं. हजारों आदिवासियों को अपनी रिहाई का इंतज़ार है.

जानकारी के मुताबिक़ मई 2021 की स्थिति में 718 मामलों में 944 आदिवासियों को दोषमुक्त किया गया है. इनमें 124 सामान्य नक्सली मामलों में 218 अभियुक्तों को दोषमुक्त किया गया था. इस पर प्रतिक्रिया ज़ाहिर करते हुए सीपीएम नेता संजय पराते की दलील है कि जिस उद्देश्य से इस कमिटी के गठन किया गया था, वह इसे पूरा करने में असफल रही है. अधिकांश मामले और इसमें बरी किये गए लोग ऎसे हैं,जिनका नक्सल मामलों से कोई संबंध नहीं है. उनके मुताबिक़ न तो सरकार ने और न ही इस कमिटी ने इस तथ्य को सार्वजनिक किया है कि कितने आदिवासियों पर कितने नक्सली मामले चल रहे हैं. इस तथ्य को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस कमिटी के गठन के बाद जितने नक्सल मामलों में आदिवासियों को बरी किया गया है, इस अवधि में उससे अधिक मामलों में बड़ी संख्या में आदिवासियों को आरोपित किया गया है. अभी तक इन मामलों पर कमिटी ने कोई विचार भी नहीं किया है. वामदलों ने आरोप लगाया है कि प्रदेश की जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई के नाम पर सरकार छलावा कर रही है. वामदलों का कहना है कि कमेटी की रफ्तार धीमी है, इतने लोगों को तो बहुत पहले ही न्याय मिल जाना चाहिए था.

नक्सल मामलों में बंद आदिवासियों की रिहाई के लिए काम कर रही जगदलपुर लीगल एड ग्रुप की शालिनी गेरा ने बताया कि बस्तर की जेलों में नक्सल मामलों में करीब डेढ़ हजार आदिवासी बंद हैं. दंतेवाड़ा में नक्सल मामले के करीब पांच सौ कैदी हैं. सुकमा और बीजापुर में भी अधिकांश आदिवासी नक्सल मामले में ही बंद हैं. जगदलपुर में करीब छह सौ आदिवासी नक्सल मामले में बंद हैं कांकेर में भी 50 से ज्यादा ऐसे मामले हैं. उन्होंने कहा कि, प्रदेश में कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब वह यह मुद्दा उठाती रही कि नक्सल प्रभावित अंचलों में आदिवासियों को झूठे नक्सल मामलों में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है ग्रामीणों को फर्जी तरीके से नक्सली बताकर उनकी हत्या की जा रही है.

सीपीआई नेता मनीष कुंजाम ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार सिर्फ छलावा कर रही है. जेल में बंद आदिवासियों के मामलों में पहले से ही लंबे समय से सुनवाई नहीं हो रही है. उनके मुताबिक़ आदिवासियों के मामले की एक दिन में पड़ताल करने की जगह लगातार सुनवाई करने की जरूरत है. कमेटी को आदिवासियों के मामलों पर रिपोर्ट जनप्रतिनिधियों, सरपंचों और अन्य संस्थाओं से मंगानी चाहिए.

एक जानकारी के मुताबिक़ सरकारी अधिकारियों द्वारा बस्तर की तीनों जेल से आयोग को 160 लोगों के नाम भेजे जा चुके हैं. 2012 में 33 और 2013 में 127 बंदियों के नाम भेजे गए थे. अधिकारियों के मुताबिक़ समय समय पर जेलों में निरुद्ध आदिवासी बंदियों की सूची कमेटी को भेजी जाती है. बंदियों को कानूनी सलाह देने प्रति सप्ताह सदस्य पहुंचते हैं। उन्हें निःशुल्क विधिक सहायता दी जाती है.