दिल्ली में मोदी के राजपथ पर आरएसएस की गाय, कांग्रेस शासित राज्य भी आरएसएस के गुणगान में जुटे,गाय को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ की हड्डी माना, गणतंत्र दिवस पर “गाय गोबर और गांव” की परिकल्पना पर आधारित झांकी पेश करने की होड़, पश्चिम बंगाल समेत उत्तर भारत के कई राज्य बाहर…

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‘सुनील नामदेव’

नई दिल्ली:- 26 जनवरी गणतन्त्र दिवस के मौके पर दिल्ली के राजपथ पर ” गाय गोबर और गांव ” की परिकल्पना पर आधारित झांकी पेश करने की होड़ मची है. बीजेपी विरोधी कई राज्य भी गाय के गुणगान में शामिल हो गए है. अभी तक ये राज्य ” गाय गोबर और गांव ” की परिकल्पना पर आरएसएस की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते थे. लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत के देश के विभिन्न राज्यों में गाँव के विकास और सशक्तिकरण पर आधारित भाषणों और प्रयोगों को लेकर बताई गई बातों को सिर आँख पर ले रहे हैं. उन्हें अब जाकर समझ में आया कि गाँव का सम्पूर्ण विकास सिर्फ आधुनिकीकरण से नहीं बल्कि गाय आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करने से होगा. ये राज्य अब गाय के सम्मान और गुणगान के लिए राजपथ पर जुटेंगे.

गौरतलब है कि “गाय गोबर और गांव” की परिकल्पना मौजूदा दौर में कई राज्यों में ग्रामीणों को रोजगार दे रही है. मनारेगा की तुलना में यह योजना कही ज्यादा कारगर बताई जा रही है. नतीजतन कांग्रेस समेत बीजेपी विरोधी कई राज्य वैचारिक रूप से आरएसएस की इस परिकल्पना पर आधारित योजना को धरातल में उतारने में जुटे है. इस बार गणतंत्र दिवस में गाय पर आधारित झांकी प्रमुखता से नज़र आएगी.

गणतंत्र दिवस पर यह पहला मौक़ा होगा जब राजपथ पर आरएसएस की गाय पूरी शान शौकत के साथ नजर आएगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गाँव की अर्थव्यवस्था में गाय के महत्व को कई बार सांझा किया है. मन की बात हो या फिर उनके भाषण, गाय से ग्रामीण इलाकों में आने वाली खुशहाली की चर्चा वे कई बार कर चुके है. केंद्र सरकार ने भी अपनी विभिन्न योजनाओं में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए गाय को प्रमुखता के साथ शामिल कर राज्यों को प्रेरित किया है. इसके चलते कांग्रेस शासित राज्य भी इस मुहीम में शामिल हो गए है.

बीजेपी के धुर विरोधी ऐसे राज्य भी इस बार राजपथ गाय का गुणगान करने में पीछे नहीं हैं. इन राज्यों ने झांकी में गाय की एक झलक पर लाखों खर्च किए हैं. सूत्र बताते है कि, आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुश करने के लिए उनके पास इससे बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं था. लिहाज़ा केंद्र से संबध सुधारने की दिशा में “गाय” पुल का कार्य कर रही है.

आरएसएस मौजूदा दौर में नहीं बल्कि कई सालों से गौ संरक्षण पर आधारित योजनाओं की वकालत करता रहा है. उसने राजनीति से परे हटकर इस दिशा में कई कार्य किए हैं. इसकी प्रशंसा अर्थशास्त्री भी करते है. आरएसएस ने कई राज्यों को इस दिशा में योजनाएं बनाने और उसका क्रियान्व्यय सुनिश्चित करने के लिए सहायता भी की है.

गौ संरक्षण और गायों पर आधारित योजना बनाने में पहले सिर्फ बीजेपी शासित राज्य ही रूचि लेते थे लेकिन अब गैर बीजेपी शासित राज्य भी इसे हाथों हाथ ले रहे है. इन राज्यों ने ऐसी योजनाए बनाकर गावों में न कल रोजगार उपलब्ध कराया है बल्कि खेत खलिहानो को जैविक खाद भी उपलब्ध कराई है. अब गाँव में खेती किसानी के लिए पहले की तरह केमिकल का उपयोग नहीं होता बल्कि गाय के गोबर से बनने वाली खाद से फसले लहलहा रही हैं.

गणतंत्र दिवस पर प्रदर्शित होने वाली कई राज्यों की झाँकियो को इस बार परेड में स्थान नहीं मिला है.पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, केरल से भेजी गई झांकियों के प्रस्ताव को रक्षा मंत्रालय ने नामंजूर कर दिया है. दरअसल इन झांकियों की मंजूरी थीम पर आधारित होती है. जानकारी के मुताबिक़ थीम पर खरा नहीं उतरने के चलते इन राज्यों के प्रस्ताव खारिज होने की खबर है. इस पर अंतिम फैसला रक्षा मंत्रालय द्वारा लिया जाता है.

केरल ने समाज सुधारक नायायण गुरु और जटायु पार्क स्मारक विषय पर झांकी प्रस्तावित की थी. जबकि पश्चिम बंगाल ने सुभाष चन्द्र बोस के योगदान को लेकर झांकी का प्रस्ताव दिया था. हालाकि इस बार 23 जनवरी पराक्रम दिवस से ही गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुवात हो जाएगी. सुभाष चन्द्र बोस और उनके आईएनए के 125 वें वर्ष पर गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत काफी सुखद क्षण के रूप में याद किया जाएगा.

पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी. अभी तक 24 जनवरी को राजपथ पर फुल ड्रेस रिहर्सल के साथ गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत होती थी. 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट के साथ इसका समापन होता था. देश की राजधानी दिल्ली में पहली बार ”कांग्रेस शासित राज्यों का गौ प्रेम” देश को देखने मिलेगा. ऐसा मौका यूपीए और एनडीए नेताओं के अलावा देश के लिए भी यादगार साबित होगा.