Saturday, September 21, 2024
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छत्तीसगढ़ में अब कोर्ट कचहरी का भी राजनीतिकरण, मुख्यमंत्री बघेल के बयान कालीचरण की गिरफ्तारी से बीजेपी नेता ‘‘खुश या दुःखी’’ पर गौर फरमाये अदालत, क्या काग्रेंस के अरमानो की पूर्ति के लिए कोर्ट में पेश किया गया कालीचरण को..? दो दिनों तक के लिए मांगी गयी पुलिस रिमांड आखिर क्यो चंद घंटो मे सिमट गयी…? जूनियर अफसरों की तानाशाही से छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के बीच खिची तलवार…

रायपुर: छत्तीसगढ़ में संत कालीचरण की गिरफ्तारी को लेकर राज्य सरकार की मंशा और जूनियर आईपीएस की कार्यप्रणाली से कोर्ट कचहरी भी प्रभावित होती नजर आ रही है। इस प्रकरण से साफ हो रहा है कि कोर्ट कचहरी का प्रदेश में राजनैतिक इस्तेमाल भी शुरू हो गया है। महात्मा गाँधी पर अर्नगल टिप्पणियों को लेकर विवाद मे घिरे कालीचरण के मामले में कानून के दुरूपयोग ही नहीं बल्कि कोर्ट को गुमराह करने की घटना भी सामने आई है। राज्य सरकार और उनके अफसरों ने पहले तो संघीय ढाँचे और रूल ऑफ लाॅ को रद्दी की टोकरी मे डालते हुए बगैर मध्यप्रदेश पुलिस को सूचित किये खजुराहो से कालीचरण की गिरफ्तारी की थी। इसके बाद आनन-फानन ने उन्हें रायपुर कोर्ट मे पेश कर दो दिनों की पुलिस रिमांड मांगी गयी। इसके लिए कोर्ट को घटना की पूछताछ का ब्यौरा भी दिया गया। दो दिनों तक कालीचरण से ऐसी कौन सी पूछताछ की जानी थी इसे तो पुलिस ही जाने। लेकिन कोर्ट में पुलिस ने रिमांड के लिए जो तथ्य पेश किये उस पर भरोसा कर कोर्ट ने कालीचरण की दो दिनों तक पुलिस रिमांड स्वीकृत की थी। इस बीच ऐसा क्या हुआ कि चंद घंटो के भीतर ही पुलिस ने पूछताछ खत्म कर दी।

आखिर कोर्ट से मांगी गई अवधि से काफी पहले उन्हें पुलिस हिरासत से न्यायिक रिमांड पर क्यों भेज दिया गया है? कालीचरण को पुलिस रिमांड मे भेजने के लिए मंजूर करायी गयी रिमांड अवधि से पूर्व अदालत मे न्यायिक रिमांड के लिए अचानक पेश किए जाने का मामला चर्चा में है। हालांकि इस कवायत के बाद कोर्ट ने कालीचरण को 13 जनवरी तक न्यायिक हिरासत मे जेल भेज दिया है। उनकी जमानत को लेकर 3 जनवरी को सुनवाई के आसार हैं। राज्य सरकार की ओर से घटना की गम्भीरता बया करते हुए पहले कोर्ट से 2 दिनों तक पुलिस रिमांड मांगना फिर अचानक यू टर्न लेकर आरोपी को न्यायिक हिरासत मे जेल भेजे जाने पर जोर देने का मामला काफी संगीन बताया जा रहा है। कानून के जानकारों के मुताबिक यह मामला कोर्ट कचहरी के राजनैतिक इस्तेमाल से भी जोड़कर देखा जाने लगा है। इस मामले में मुख्यमंत्री का बयान कोर्ट के राजनैतिकरण से जुड़ा प्रतीत हो रहा है।

अब मुख्यमंत्री भुपेश बघेल के उस बयान पर भी गौर फरमाया जाए जब उन्होंने कालीचरण की गिरफ्तारी के दौरान बीजेपी पर तंज कसते हुए किया था। बघेल ने कहा था कि बीजेपी के नेता यह स्पष्ट करे कि आरोपी की गिरफ्तारी से वे ‘‘खुश है या दुखी’’। उनके इस बयान को कोर्ट के राजनैतिक इस्तेमाल से जोड़कर देखा जाने लगा है। कानून के जानकार अब पूछ रहे है कि अपने कांग्रेसी समर्थको की खुशी और अपने विरोधियों को दुखी करने के लिए क्या कालीचरण की गिरफ्तारी की गयी? यही नही 2 दिनों तक उनकी पुलिस रिमांड स्वीकृत कराकर अचानक समय पूर्व उन्हें अदालत में पेश कर दिया गया। यह कोर्ट कचहरी का राजनैतिक इस्तेमाल नहीं तो और क्या है? उनके मुताबिक अदालत को मुख्यमंत्री के इस बयान का संज्ञान लेना चाहिए। दरअसल महात्मा गाँधी पर अर्नगल टिप्पणी राजनीति के अखाडे़ में पहली बार नहीं की गयी है। इसके पूर्व भी इस तरह के कई मामले सुर्खियों मे रहे है। यही नहीं यू-ट्यूब और अन्य सोशल मीडिया में महात्मा गाँधी को लेकर जानकारियों और पुष्ट-अपुष्ट घटनाओं का काफी ब्यौरा उपलब्ध है।

कालीचरण का धर्म संसद मे दिया गया बयान भी इस प्लेटफार्म पर मौजूद है। ऐसे मे उनके खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही सवालों के घेरे में है। हालाकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि सार्वजनिक मंचो से गाँधी के खिलाफ अर्नगल टिप्पणी करने की किसी को भी छूट मिले। लेकिन कानून का डंडा एक जैसा उन पर भी चलना चाहिए जो संविधान द्वारा प्रदत्त बोलने की आजादी के अधिकार की मर्यादा भंग कर रहे हैं। विरोधियों की दलील है कि इस मामले मे सरकार के पैरोकारो को गौर करना होगा कि मुख्यमंत्री के पिता नंद कुमार बघेल के भगवान राम और ब्राह्मणों पर दिये गये बयान भी देशद्रोह के दायरे मे आ रहे है या नहीं। हालांकि इस मामले को लेकर विपक्ष और ब्राह्मण समाज अपनी आवाज उठा रहा है। लेकिन सरकार को सिर्फ महात्मा गाँधी पर की गयी कालीचरण की टिप्पणी ही सुनाई दे रही है। उधर कालीचरण की दो दिनों तक मांगी गई पुलिस रिमांड को लेकर सरकार का यूटर्न भी चर्चा में है।

बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश समेत आधा दर्जन राज्यों में होने वाले विधान सभा चुनाव में ब्राह्मण समुदाय और सन्त समाज दोनो की ही नाराजगी कांग्रेस को झेलनी पड़ सकती है। लिहाजा कालीचरण की गिरफ्तारी को लेकर कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व पसोपेश में है। उसे अब इस मामले में जोखिम नजर आने लगा है। सूत्रो के मुताबिक कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस गिरफ्तारी से नाराज बताये जा रहे हैं। उनके मुताबिक कांगे्रस के लोगो द्वारा आयोजित धर्म संसद में गोड़से का गुणगान और महात्मा गाँधी के अपमान के लिए कांग्रेस को जिम्मेदारी तय करनी चाहिए।

आयोजको के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय मेहमान बनकर आये कालीचरण के खिलाफ की गयी कार्यवाही को ये नेता गैर जरूरी बता रहे हैं। सूत्रो द्वारा बताया जा रहा है कि जल्द ही यह मामला कांग्रेस आलाकमान के संज्ञान में लाया जायेगा। यह भी बताया गया कि छत्तीसगढ़ में इस मामले को लेकर कांग्रेस की हो रही फजीहत के चलते ही कालीचरण की पुलिस रिमांड में कटौती करनी पड़ी है। सूत्रो के मुताबिक अब इस मामले को ठंडा करने के लिए कांगेसियों को निर्देशित भी किया गया है।

जूनियर अफसरों की तानाशाही से छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के बीच खिंची तलवार…
कालीचरण की गिरफ्तारी के तौर तरीके को लेकर पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश ने नाराजगी जाहिर की है। राज्य के डीजीपी ने इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ के डीजीपी को पत्र भी लिखा है। मध्यप्रदेश सरकार ने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने संघीय ढ़ाँचे का उल्लंघन किया है। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा है कि प्रदेश की पुलिस को जानकारी दिये बगैर छत्तीसगढ़ पुलिस ने खजुराहो में आखिर कैसे दाखिल होकर अभियान चलाया। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे गिरफ्तारी का नहीं बल्कि गिरफ्तारी के तौर तरीके का विरोध कर रहे हैं। जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के जूनियर आईपीएस अधिकारियों द्वारा संघीय ढांचे के उल्लंघन के मामले से केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भी अवगत कराया जा रहा है। यही नही छत्तीसगढ़ के डीजीपी के उत्तर मिलने के बाद जरूरी हुआ तो राज्य सरकार आईपीएस अधिकारियों के अपने पद और अधिकारों के दुरूपयोग को लेकर सीबीआई जाँच पर भी विचार कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देंशो को भी छत्तीसगढ़ सरकार के जूनियर अफसरो ने डाला रद्दी की टोकरी मे: सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न राज्यों के हाईकोर्ट ने साफ किया है कि गिरफ्तारी अन्तिम विकल्प होना चाहिए, गैर जरूरी गिरफ्तारी मानवधिकार का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने जोगेन्द्र सिंह केस में राष्ट्रीय पुलिस आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि रूटीन गिरफ्तारी पुलिस में भ्रष्टाचार का स्त्रोत है। रिपोर्ट कहती है कि 60 फीसदी गिरफ्तारी गैर जरूरी और अनुचित होती है। जिस पर 43.2 फीसदी जेल संसाधनो का खर्च हो जाता है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी रूटीन गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट की मंशा से सरकारी एजेंसियों को अवगत कराया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि वैकक्तिक स्वतंत्रता बहुत ही महत्वपूर्ण मूल अधिकार है, बहुत जरूरी होने पर ही इसमे कटौती की जा सकती है। गिरफ्तारी से व्यक्ति के सम्मान को ठेस पहुचती है इसलिए अनावश्यक गिरफ्तारी से बचना चाहिए।

कोरोना काल मे सुको ने एक अन्य आदेश जारी कर पुलिस को निर्देशित किया था कि जरूरी मामलो मे ही आरोपियो की गिरफ्तारी की जाए। खासतौर पर जिन अपराधो मे 7 साल से कम सजा का प्रावधान है। यही नहीं सिविल और अपराधिक मामलो में नोटिस जारी किये जाने का भी प्रावधान है। लेकिन छत्तीसगढ़ में इन दिशा निर्देशों का पालन जरूरी नहीं समझा जाता है। जूनियर अफसर अपने पद और अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए कांग्रेसी नेताओ के इशारे पर शासन प्रशासन संचालित कर रहे हैं। इस दौरान वे संवैधानिक प्रावधानों को दरकिनार कर अपनी डपली अपना राग अलाप रहे हैं। नतीजतन यह राज्य संवैधानिक संकट के दौर से गुजर रहा है।

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