स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट मामले में फैसला सुनाना बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस गनेदीवाला को पड़ा भारी, सुप्रीम कोर्ट ने रोका कंफर्मेशन, इस वजह से कोर्ट कॉलेजियम ने लिया ये फैसला

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नई दिल्ली / एक के बाद एक बाल यौन अपराधों से संबंधित विवादास्पद फैसलों से चर्चा में आई बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को झटका लगा है। पिछले कुछ दिनों में कई विवादास्पद फैसलों के चलते सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने निर्णय लिया है कि वो जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला को हाई कोर्ट की स्थायी न्यायाधीश बनाने की केंद्र को की गई सिफारिश वापस लेगा। दरअसल न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने 19 जनवरी को एक सत्र न्यायालय के आदेश को संशोधित किया था। इसमें उन्होंने पॉक्सो अधिनियम के तहत 39 साल के एक व्यक्ति को बरी कर दिया था। व्यक्ति पर 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने का आरोप लगा था। अदालत ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया था कि उनके बीच त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं बना था।

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ‘किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके स्तन को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता।’ उन्होंने अपने एक अन्य फैसले में एक व्यक्ति को यह कहते हुए राहत दी थी कि पांच साल की नाबालिग का हाथ पकड़ना और उसके सामने पैंट की जिप खोलना पोक्सो के तहत यौन हमले के समान नहीं है बल्कि IPC की धारा 354 के तहत है। सर्वोच्च न्यायालय ने उनके इस फैसले पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने बंबई उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति गनेदीवाला की सिफारिश की थी, लेकिन बाद में इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया।

न्यायमूर्ति गनेदीवाला के त्वचा से त्वचा का संपर्क वाले आदेश के खिलाफ उनकी सार्वजनिक आलोचना शुरू हो गई थी। लोगों का कहना था कि यह यौन उत्पीड़न के मामले में बच्ची के प्रति जज की असंवेदनशीलता दिखाता है। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड ने बंद दरवाजों के पीछे गनेदीवाल को उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाने के खिलाफ अपनी राय रखी थी। दोनों ने फरवरी 2019 में उन्हें बंबई उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाने का भी विरोध किया था।

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