रायपुर / छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग में बीते दो सालों में सरकारी तिजोरी पर करोड़ों का चूना लगाया जा रहा है। प्रचार – प्रसार के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई चंद न्यूज़ मेकर और उनके संस्थानों पर लुटाई जा रही है। बताया जा रहा है कि ज्यादातर अख़बारों और पत्र -पत्रिकाओं की प्रसार संख्या नगण्य है। कोरोना काल में तो अख़बारों समेत ज्यादातर पत्रिकाओं के पाठक ही नदारत हो गए है। जबकि कागजों में उनकी प्रसार संख्या हज़ारों – लाखों में बताई जा रही है। प्रसार संख्या का कई सालों से ऑडिट भी नहीं हुआ है। जानकरी के मुताबिक ज्यादातर अख़बार – पत्र पत्रिकाएं सौ – पचास प्रति ही छपती है। ताकि ऑफिस कॉपी के नाम पर उसकी खानापूर्ति की जा सके।
यही नहीं कई संस्थान तो सिर्फ विज्ञापनों के जारी होने वाले दिन ही पत्र – पत्रिकाएं छाप रहे है। इनकी प्रसार संख्या और पाठक दोनों ही नदारत होने से ऐसे संस्थानों के पास ना तो स्टाफ है और ना ही अख़बार बांटने वालों का समूह। बावजूद इसके ऐसे संस्थानों पर जनसंपर्क विभाग हर माह धड़ल्ले से लाखों रुपये व्यय कर रहा है। बताया जाता है कि कोरोना काल का हवाला देकर कई संस्थान तो सिर्फ कॉपी पेस्ट कर ई -अख़बार छापने का दावा कर रहे है। हकीकत में ऐसे अखबारों और पत्र – पत्रिकाओं के भी ना तो कोई पाठक है और ना ही उनके पास भी कोई स्टाफ।
बताया जाता है कि कोरोना काल में तो कई अख़बार और पत्र – पत्रिकाओं का प्रकाशन ही ठप्प पड़ा है। बावजूद इसके जनसंपर्क संचालनालय द्वारा कागजों में चल रहे संस्थानों पर प्रति माह लाखों रुपये लुटाये जा रहे है। RTI कार्यकर्ताओं ने राज्य शासन और वरिष्ठ अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करते हुए कागजों में चल रहे संस्थानों पर कार्यवाही की मांग की है। उनकी दलील है कि जनसंपर्क की गलत नीतियों के चलते राज्य में पत्रकारिता का युग समाप्ति पर है। उसके स्थान पर न्यूज़ मेकर और न्यूज़ सेंडर्स की फौज खड़ी हो गई है। RTI कार्यकर्ताओं ने कहा कि ज्यादातर संस्थान सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी के मौकों पर ही विज्ञापन के लिए प्रकाशन करते है।