बोतलबंद “सरकार की गांधीगिरी” , (लेख का छत्तीसगढ़ सरकार और राज्य की राजनीति से दूर दूर तक का कोई वास्ता नहीं है , कसम से , ये दास्तान उस राज्य की है , जहां यत्र – तत्र – सर्वत्र गांधी जी का बोलबाला है )
वर्धा के सेवाग्राम में जब शरमा गए गांधी जी
हाल ही में देश की एक सरकार के मुखिया समेत तमाम कारगर नुमाइंदों ने सेवाग्राम वर्धा का रुख किया था | गांधी दर्शन करने वालों में मुखिया जी की अग्रणी भूमिका रही | दिलचस्प बात ये है कि सरकार और उसकी टोली ने यहां गौशाला , गाय और गोबर को करीब से देखा | लेकिन जिस ओर रुख करना चाहिए था , वहां नजर तक नहीं दौड़ाई | नेताओं ने यहां श्रमदान कर खूब सुर्खियां भी बटोरी | गांधी जी की जीवनशैली से दल-बल परिचित भी हुआ | लेकिन असल में जो सबक लेना था , उस मसले पर सरकार ने मुंह मोड़ लिया | इस मामले में हर कोई बगले झांकता नजर आया | दरअसल जनता को उम्मीद थी कि सरकार गाँधी दर्शन के साथ साथ महात्मा गांधी के नशाखोरी को लेकर दिए गए संदेशों से भी रूबरू होगी | लेकिन दुर्भाग्यवश सरकार ने इस ओर रुख करना तक मुनासिब नहीं समझा | दरअसल नशाखोरी पर पाबंदी लगाने के लिए गाँधी जी का जीवन दर्शन आज भी प्रासंगिक माना गया है | इससे प्रभावित होकर कांग्रेस ने अपने एक राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान शराबबंदी का पार्टी घोषणा पत्र में वादा भी किया था | लेकिन सत्ता में काबिज होने के बाद इस मुद्दे को लेकर फ़िलहाल अपना पल्ला झाड़ लिया | इस वादे पर यदि कोई टीका टिपण्णी करता है , तो सरकार पूरे दल-बल के साथ उस पर बिफर पड़ती है | हालांकि कई विपक्षी नेताओं को सरकार की गांधीगिरी नागवार गुजर रही है | उनका मानना है कि सरकार का प्रेम महात्मा गांधी से नहीं बल्कि नोटों में छपी उनकी तस्वीरों से है | लिहाजा कुर्सी पर बैठते ही “गाँधी प्रेम” रिकार्डतोड़ तरीके से छलक आया | उनकी दलील है कि कोयले पर 25 रूपये टन गब्बर टैक्स , रेत घाट और खनिजों को लेकर जजिया कर , आबकारी विभाग में सरकारी और गैर सरकारी चुंगी कर समेत गांधीगिरी के तमाम साधनों से साफ है कि सरकार और गांधी जी का चोली दामन का साथ है | उनके मुताबकि सम्भवतः सरकार के दौरे का मकसद गांधी जी के प्रति कृतज्ञयता जाहिर करने का नहीं बल्कि उन्हें धन्यवाद देने का था |
आईजी साहब की नियुक्ति में एसपी साहब का गांधीगिरी से ओत प्रोत हाथ :
देश के इस राज्य में भले ही लाठी तंत्र की पौ बारह है , लेकिन पुलिस महकमे में गजब का लोकतंत्र नजर आ रहा है | असल में नगरीय निकाय चुनाव की तर्ज पर रेंज आईजी की नियुक्ति का फार्मूला इन दिनों चर्चा में है | यह फार्मूला भी दिलचस्प ही नहीं बल्कि गांधीगिरी का बेजोड़ नमूना भी बताया जा रहा है | इस राज्य में इस बार नगरीय निकाय चुनाव में अध्यक्ष का निर्वाचन सीधे ना होकर अप्रत्यक्ष तरीके से हुआ | मसलन निर्वाचित होकर आए पार्षदों ने अध्यक्ष का चुनाव किया | इसी तर्ज पर राज्य के पुलिस महकमे में भी नियुक्ति का दौर शुरू हो गया है | इसके तहत जिले के पुलिस कप्तान अपने रेंज आईजी की नियुक्ति करते है | इस राज्य के बिलासपुर संभाग में इसी फार्मूले के तहत एक डीआईजी स्तर के अफसर को आईजी के पद पर एक नहीं बल्कि दो रेंज का प्रभार सौंप दिया गया है | बताया जाता है कि गांधीगिरी के आधारभूत सिद्धांतों पर ही इस नियुक्ति की आधारशिला रखी गई है | एक जिले के पुलिस कप्तान ने अपनी गांधीगिरी की काबिलियत का परिचय देते हुए इस लक्ष्य को हासिल किया है | चर्चा तो एसपी साहब के उस हुनर की भी हो रही है , जो गाँधी जी की तस्वीरों के अगाध प्रेम में लीन रहकर इस विद्या को हासिल करने में कामयाब रहे है | उनकी कामयाबी की चर्चा कर रहे लोग बताते है कि एक अन्य रेंज में भी आईजी साहब की नियुक्ति एसपी साहब के मार्गदर्शन में हुई है | बहरहाल दोहरे प्रभार वाले आभारी-प्रभारी आईजी साहब भी बखूबी अपना कर्तव्य निभा रहे है |
परिवहन विभाग में भी गांधी जी के चलते मचा धमाल :
इस राज्य के परिवहन विभाग की तारीफ करते मुखिया जी नहीं थकते थे | कई बार उन्होंने राज्य की ट्रांसपोर्ट ग्रोथ और उससे सरकार को होने वाली आमदनी की तारीफ की | उन्होंने देश को यह भी बताया कि कोरोना काल में उनके राज्य में वाहनों की रिकार्ड तोड़ बिक्री हुई | लेकिन माह भर से इस राज्य में नए वाहनों की खरीदी ही ठप्प हो गई | जनता को उनके वाहन सौंपने से डीलरों ने इंकार कर दिया | उन्होंने बताया कि मामला गांधीगिरी के चलते उलझ गया है | परिवहन विभाग के अफसरों ने इसकी बिक्री पर अचानक पाबंदी लगा दी है | राज्य में प्रतिमाह विभिन्न किस्म के 60 हजार से ज्यादा दो पहिया और चौपहिया वाहन बिकते है | लिहाजा बवाल मचना लाजमी था | उधर नए वाहनों की बिक्री पर रोक का हवाला देते हुए परिवहन विभाग ने बताया कि ARAI पुणे के एप्रूवल के तहत नियमों का पालन वाहन बनाने वाले निर्माता और राज्यों के डीलर ने नहीं किया है | उन्होंने इसके लिए 2012 के एक सर्कुलर को भी पेश कर गांधीगिरी दिखाई | लेकिन ये अफसर इस तथ्य से अनजान बने रहे है कि 2014 में इस आदेश को केंद्र सरकार ख़ारिज कर चुकी है | अब ARAI पुणे के एप्रूवल की अनिवार्यता जरुरी नहीं है | बताया जाता है कि आदेश जारी करने वाले परिवहन विभाग के इस अफसर के दिलों-दिमाग पर गांधी जी की तस्वीरों वाली मुद्रा जोर मार रही थी | लिहाजा उसने एक ही झटके में अपनी ही सरकार के राजस्व पर हथौड़ा मार दिया | बवाल मचने के बाद अब लोगों को उनके नए वाहन मिलना शुरू हो गए है | बताया गया कि पुराने साहब ने जो हथौड़ा मारा था , उससे आई चोट पर नए साहब मरहम लगाने का काम कर रहे है |
जेब कतरी में दक्ष जेलर डीआईजी अब बनेगे अपनी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर :
आपको हैरत होगी कि राज्य के किसी होनहार अफसर ने जेब कतरी में पीएचडी हासिल की है | भले ही आपको उनका यह हुनर आशर्यचकित लगे , लेकिन यह वाकई हकीकत है | लेकिन आपको इस तथ्य को भी जानकर हैरानी होगी कि साहब की मासिक आमदनी 40-50 लाख के लगभग है | हालांकि जेब कतरी से नहीं बल्कि कैदियों के पेट पर लात मारने और उनके मानवधिकारों के उल्लंघन से | ये साहब अब अपने रिटायरमेंट के करीब है | लिहाजा उनके दिलों-दिमाग में भी गांधी जी छाए हुए है | वे भी उनकी तस्वीरों वाली मुद्रा पाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर ऐसे लगाते है कि जेल मैनुवल हो या कायदे कानून , दोनों की धज्जियाँ उड़ना लाजमी है | इन दिनों साहब अपनी यूनिवर्सिटी की तैयारियों में जोरशोर से जुटे है | बताया जाता है कि काली कमाई से साहब ने मध्यप्रदेश के सागर में करीब 50 करोड़ की लागत से यूनिवर्सिटी का खाका खिंचा है | इसके लिए अपने परिजनों और नाते-रिश्तेदारों के नाम से लगभग ढाई सौ एकड़ जमीन खरीदी है | इन साहब ने भी गांधीगिरी में महारत हासिल कर एक साथ दो पदों का स्वाद चखा है | वे जेल सुपरिटेंडेंट होने के साथ साथ डीआईजी जेल भी है | यह भी दिलचस्प है कि कानून की उड़ती धज्जीयों की खुद के खिलाफ होने वाली शिकायत पर वे खुद ही फैसला लेते है | हर मामलों में साहब का रेट फिक्स है | मसलन जेल से कैदी को अस्पताल शिफ्ट करना हो , या फिर उसे जेल के भीतर सर्व सुविधा उपलब्ध करानी हो | यही नहीं प्रदेश की किसी भी जेल में जेल प्रहरियों से लेकर जेलरों की नियुक्ति में साहब की चलती है | किसी की योग्यता और क़ानूनी प्रावधानों की नहीं | उन्होंने जेल मंत्री के एक मुलाजिम को ऐसा सेट किया है कि राज्य की तमाम जेलों की बागडोर उनके हाथों में आ गई है | गांधीगिरी में दक्ष जेलर साहब मंत्री जी के नाक के बाल बताये जाते है | फ़िलहाल तो उनके हुनर के चर्चे ईडी,आयकर और सेंट्रल विजिलेंस के दफ्तर में भी सुनाई पड़ने लगे है |
ये तेरा नड्डा , ये मेरा नड्डा – ये नड्डा बहुत हसीन है :
इन दिनों देश के एक राज्य में राजनेता एक दूसरे का नड्डा पकड़ने में काफी जोर दे रहे है | दरअसल इस प्रदेश के सत्ताधारी दल के एक बड़े नेता ने दिल्ली में यह कहकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की खिल्लियां उड़ाई कि वे नहीं जानते कि कौन है नड्डा ? उनके यह कहते ही राजनीति तेज हो गई | बीजेपी के नेताओं ने सत्ताधारी दल पर हमला बोल दिया | इस दौरान जुबानी जंग तेज होती नजर आई | एक दूसरे पर वार-पलटवार का दौर भी शुरू हो गया | बीजेपी के एक धुरंदर नेता ने विपक्षी दल के नेता को पप्पू कह कर करारा तंज कसा | फिर क्या था , सत्ताधारी दल में भी भी नड्डा पकड़ने की होड़ मच गई | इस दल के मुखिया ने भी सार्वजनिक तौर पर बीजेपी अध्यक्ष पर अपने ही अंदाज में करारा हमला किया | एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वे उस नड्डे को बचपन से जानते है , जो उनके दौर में पांच पैसे के दो आते थे | उनके यह कहते ही जोरदार ठहाकों से हॉल गूंजने लगा | फ़िलहाल तो पक्ष-विपक्ष के नेताओं को हैरानी तो तब हुई , जब अचानक राज्य एक पूर्व मुखिया नड्डा जी से मिलने दिल्ली दरबार में हाजिर हो गए | कहा जा रहा है कि नड्डे को लेकर तेज हुई राजनीति दूर तलक जाएगी |