रायपुर / कहा जाता है कि प्रजातंत्र में कार्य पालिका और विधायिका दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है। दोनों रेल की पटरियों की तरह साथ चलते है लेकिन एक दूसरे से दूरियां बनाये रखते है। हालाँकि अब ये कहावत प्रासंगिक नहीं रह गई है। आमतौर पर विधायिका और कार्य पालिका का चोली दामन का साथ दिखाई देता है। सत्ता बदलते ही नौकरशाहों की स्थिति में बदलाव देखकर इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। नौकरशाही में सत्ता बदलते ही बदलाव नजर आना स्वाभाविक प्रक्रिया है। हालाँकि अक्सर ऐसे मामले भी सामने आते है, जिसमे किसी नौकरशाह को सत्ताधारी दल के रंग ढंग में रंगते साफतौर पर देखा जा सकता है। इसी दौरान अफसरों की प्रशासनिक क्षमता और कार्यप्रणाली का आंकलन भी सत्ता के गलियारे में परखा जाता है।
इसमें जो पारंगत होता है, उसे सरकार सर आंखों पर बिठाती है, वर्ना उस अफसर को दूध में गिरी मख्खी की तरह शासन के गलियारे से बाहर कर दिया जाता है। छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारे में एक आईएएस दंपत्ति की कार्यप्रणाली की चर्चा को लेकर इन दिनों खूब माथा पच्ची हो रही है। करीब 7 साल के केंद्रीय प्रति नियुक्ति के बाद द्वेदी दंपत्ति छत्तीसगढ़ लौटे थे। बताया जाता है कि पूरवर्ती बीजेपी सरकार से पटरी मेल नहीं खाने के चलते 1994 बैच के आईएएस अधिकारी गौरव द्वेदी और 1995 बैच की डॉ. मनिंदर कौर द्वेदी ने दिल्ली का रुख कर लिया था। राज्य में वर्ष 2018 में कांग्रेस के सत्ता में आते ही गौरव द्वेदी लाइम लाइट में आ गए।
उनकी पतंग इतनी ऊपर उड़ी की मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन्हें अपना प्रमुख सचिव बनाकर प्रभावशील नौकरशाह के रूप में मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ किया। यही नहीं द्वेदी दंपत्ति के हाथों में कई महत्वपूर्ण विभागों की जवाबदारी सौंपी गई। मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव होने के नाते गौरव द्वेदी का दबदबा प्रशासनिक हल्कों में भी जबरदस्त दिखाई दिया। मुख्यमंत्री बघेल की पहली अमेरिका यात्रा में गौरव द्वेदी छाये रहे।
लेकिन बा मुश्किल सालभर में ही गौरव द्वेदी, अर्श से फर्श की ओर जाते नजर आने लगे है। अचानक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने डोर क्या काटी, इस वरिष्ठ नौकरशाह की स्थिति अब ‘कटी पतंग की तर्ज पर नजर आ रही है। रायपुर के राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारे में इस आईएएस दंपत्ति का लगभग दो साल के भीतर कई बार विभागों का बदलना और अब उनका लूप लाइन में पदस्थापना किया जाना चर्चा का विषय बना हुआ है।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव गौरव द्वेदी को एक के बाद एक नए ठिकानों की ओर ढकेल दिया गया। उनके हाथों से तमाम चर्चित विभाग छीन लिए गए। चर्चा है कि मुख्यमंत्री सचिवालय में पदस्थ रहते गौरव द्वेदी की कार्यप्रणाली लगातार सवालों के घेरे में रही। जानकारी के मुताबिक संदेहस्पद कार्यप्रणाली के चलते पहले उन्हें मुख्यमंत्री सचिवालय से चलता किया गया फिर पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग से।
सूत्रों द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि ‘सीएम इन वेटिंग’ के नाम से चर्चित FIR छवि के एक नेता जी को मुख्यमंत्री की कुर्सी में बैठाने के लिए ‘दो वेदी’ साहब की आहुतियां सत्ता के गलियारों में खूब सुर्खियां बटोर रही थी। उनकी कवायत से जहाँ दिल्ली दरबार में ‘FIR मंत्री जी’ के किस्से कहानियां चर्चित हो रहे थे, वहीँ छत्तीसगढ़ सरकार की कार्यप्रणाली पर भी विपरीत प्रभाव पड़ रहा था।
जानकारी के मुताबिक ‘सीएम इन वेटिंग’ को उस कुर्सी तक पहुंचाने के लिए बुनी जा रही तिकड़मों के चलते अचानक गौरव द्वेदी की कार्यप्रणाली राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई। इस दौरान कई ऐसे तथ्य सामने आये जिससे इस नौकरशाह की प्रतिष्ठा और कामकाज का तौर तरीका सरकार को रास नहीं आया। सूत्रों द्वारा बताया गया कि ग्रामीण विकास विभाग को केंद्र से प्राप्त होने वाली मद का कुछ हिस्सा एक प्रभावशील साहूकार की तिजोरी में किस तरह से गया, इसकी गोपनीयता भी भंग हुई। जानकारी के मुताबिक साहूकार जी का पहले ग्रामीण विकास विभाग से करीबी नाता रहा है। फ़िलहाल साहूकार जी ऊँची उड़ान पर है जबकि द्वेदी दंपत्ति को साइड लाइन कर दिया गया है।