मोदी सरकार का आखिरी बजट आ गया. चुनावी साल है, इसलिए अंतरिम बजट आया | भारत का बजट हर साल फरवरी महीने में एक नियत समय और तारीख पर पेश किया जाता है । भारत का बजट काफी सालों से दिन के 11 बजे पेश किया जा रहा है, लेकिन क्या आप जानते हैं साल 1999 तक बजट शाम को पांच बजे पेश किया जाता था । हालांकि केंद्रीय बजट के शाम के पेश होने के पीछे भी एक खास वजह थी ।
यह थी वजह
दरअसल साल बजट पेश करने की परंपरा 1947 से पहले की है | याने कि जब हम अंग्रेज़ों के गुलाम थे, तब भी बजट पेश होता था | लेकिन तब वो गुलाम भारत का बजट होता था जिसकी सर्वेसर्वा लंदन में बैठी अंग्रेज़ सरकार होती थी | 1927 से अंग्रेज अधिकारियों ने भी भारतीय संसद में बैठना शुरु कर दिया था । जब पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से किसी ने पूछा कि आखिर देश का बजट शाम को पांच बजे क्यों आता है , जबकि संसद तो 10 बजे से चलने लगती है । इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि ब्रिटिश संसद आराम से सुन सके | जब भारत में शाम के पांच बजते, तब ब्रिटेन में सुबह के 11.30 बजते | इस वक्त तक ब्रिटिश संसद में हाउस ऑफ कॉमन्स (वहां की लोकसभा) की कार्रवाई शुरू हो जाती और उसके पास ऑप्शन होता कि वो भारत में पेश हो रहे बजट को रेडियो पर सुन पाए | अंग्रेज़ों के जाने के बाद भी यही रवायत जारी रही ।
NDA सरकार ने बदला नियम
बजट शाम पांच बजे पेश किए जाने की परिपाटी NDA सरकार ने बदली । देश में संविधान लागू होने के 50 साल बाद NDA सरकार ने इस परंपरा को तोड़ा । साल 2001 से देश के वित्त मंत्री केंद्रीय बजट को दिन के 11 बजे पेश करने लगे । यशवंत सिन्हा देश के पहले वित्त मंत्री थे जिन्होंने दिन के 11 बजे केंद्रीय बजट पेश किया | उन्होंने 1999 की जनवरी से ही वित्त मंत्रालय के अफसरों को बजट का समय बदने पर विचार करने को कह दिया | तब के वित्त सचिव विजय केलकर का भी यही मानना था कि बजट सुबह पेश हो तो बेहतर है | प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी ये आइडिया पसंद आया | जिसके बाद यशवंत सिन्हा ने इस बाबत एक पत्र लोकसभा और राज्यसभा स्पीकर को लिखा | पत्र में ये गुज़ारिश की गई थी कि बजट के दिन सुबह 11 बजे होने वाले प्रश्नकाल को रद्द कर दिया जाए | ये मांग मान ली गई और इस तरह जब 27 फरवरी, 1999 को सुबह 11 बजे साल 1999-2000 का बजट पेश करने के लिए यशवंत सिन्हा खड़े हुए, एक नई रवायत की शुरूआत हुई |
बजट से पहले हलवा सेरेमनी
बस एक रवायत है जो दशकों से बनी हुई है और उसमें कोई बदलाव नहीं चाहा गया है | वो है बजट से पहले होने वाली हलवा सेरेमनी | बजट सदन में पेश होने से पहले सरकार का एक गोपनीय दस्तावेज़ होता है | इसलिए इसे वित्त मंत्रालय अपनी प्रेस में खुद छापता है | बजट के छपने के दौरान उससे जुड़ा कोई भी कर्मचारी-अधिकारी वित्त मंत्रालय के परिसर से बाहर नहीं जा सकता | खाना-पीना सब अंदर ही होता है | तो इस मेहनत के काम की शुरूआत सभी को हलवा खिलाकर होती है | यही हलवा सेरेमनी है | इसमें वित्त मंत्री समेत वित्त मंत्रालय के सभी वरिष्ठ अधिकारी पहुंचते हैं |