नई दिल्ली / सुप्रीम कोर्ट ने आज विशेषाधिकार हनन मामले में पत्रकार अर्नब गोस्वामी को राहत देते हुए महाराष्ट्र सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया है | अदालत ने महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव को दो हफ्ते के भीतर जवाब पेश करने के साथ ही महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई है | विधानसभा द्वारा विशेषाधिकार हनन मामले को लेकर पत्रकार अर्नब गोस्वामी को भेजे गए समन पर अदालत ने ऐतराज जताया है |अदालत ने कहा कि ये न्याय की प्रक्रिया में रुकावट है | आरोप कुछ भी लगे लेकिन तथ्य और सबूत कों नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए | अदालत ने कहा कि आप किसी को धमका नहीं सकते |विधानसभा अपने अधिकारी के बर्ताव को देखे | अदालत ने विधानसभा सचिव को कारण बताव नोटिस जारी करते हुए अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है | उधर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजे गए अर्नब गोस्वामी की जमानत पर मुंबई हाईकोर्ट में शुक्रवार को सुनवाई होगी।
वही एक महत्वपूर्ण मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि नैनीताल हाईकोर्ट की ओर से दो पत्रकारों के खिलाफ निरस्त की गई एफआईआर अंतरिम आदेश से बहाल नहीं की जा सकती हैं। हाईकोर्ट ने 27 अक्तूबर को दो पत्रकारों उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल के खिलाफ देहरादून में दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी थी। इन पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश जैसे आरोपों में उत्तराखंड सरकार ने इस साल जुलाई में ये एफआईआर दर्ज कराई थीं। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा, हम अंतरिम आदेश के माध्यम से एफआईआर बहाल नहीं कर सकते।
हालांकि, पीठ ने राज्य सरकार के इस कथन का संज्ञान लेते हुए एफआईआर रद्द करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर दोनों पत्रकारों को नोटिस जारी किया। वहीं, रोहतगी का कहना था कि हाईकोर्ट के आदेश पर पूरी तरह रोक लगनी चाहिए। राज्य सरकार को मामले की जांच की इजाजत दी जानी चाहिए। रोहतगी ने कहा, हम आश्वस्त करते हैं कि उमेश कुमार को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। पत्रकारों की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा पेश हुए। इस मामले को मुख्यमंत्री द्वारा पहले दायर की गयी याचिका के साथ कर दिया गया है। इन दोनों मामलों मे अब चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी।
दरअसल सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट को लेकर दोनों पत्रकारों पर एफआईआर दर्ज की गई थी। फेसबुक पर की गई वीडियो पोस्ट में आरोप लगाया गया था कि 2016 में एक व्यक्ति को झारखंड के गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनवाने में मदद के लिए झारखंड से अमृतेश चौहान नाम के एक व्यक्ति ने नोटबंदी के बाद हरेंद्र सिंह रावत और उनकी पत्नी सविता रावत के बैंक खाते में पैसे जमा कराए थे। हरेंद्र रावत उस समय झारखंड के भाजपा प्रभारी रहे एवं सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के कथित तौर पर रिश्तेदार बताए जाते हैं। सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र ने देहरादून में उमेश शर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें शर्मा पर उन्हें ब्लैकमेल किए जाने का आरोप लगाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश देने के खिलाफ दायर एक नई याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में 27 अक्तूबर के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई है।