नई दिल्ली / सीबीआई को केंद्र सरकार का तोता की संज्ञा दी जाती है | इस जुमले ने कई राजनैतिक हमलों से सीबीआई को गहरी चोट पहुंचाई है | लेकिन सीबीआई की कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां इस जाँच एजेंसी की गौरवगाथा कहती है | देश में ज्यादातर कांग्रेस शासित राज्यों ने सीबीआई की एंट्री बैन कर दी है | इसके चलते इन राज्यों में भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना मुश्किल होता नजर आ रहा है | छत्तीसगढ़ के बाद उसके पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र ने भी सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगा दी है। यानी इस राज्य ने सीबीआई के मामले में केंद्र को दी अपनी वह सहमति वापस ले ली है, जिसके तहत यह जांच एजेंसी किसी मामले की तफ्तीश करने के लिए राज्य में पहुंचती थी। अब इस एजेंसी को जांच से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी।
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आखिर ऐसा क्या है, जिसके चलते सीबीआई जैसी शक्तिशाली जांच एजेंसी पर एक के बाद एक राज्य नो एंट्री की ओर बढ़ रहे है | कोई भी राज्य इसके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा देता है। ताजा मामला महाराष्ट्र का है | जहाँ इसके अफसरों पर गिरफ्तारी की तलवार लटकती दिखाई दे रही थी | ऐसी कौन सी चूक थी, जिसके चलते केंद्रीय जाँच एजेंसी को ‘ तोता पक्षी’ तक कहा गया। जब इस एजेंसी के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ा तो सुप्रीम कोर्ट को इसे ‘तोता’ बोलना पड़ा था। इसके बाद से सीबीआई का दूसरा नाम केंद्र का तोता पड़ गया | असल वजह यह है कि जिस एक्ट के तहत सीबीआई का गठन हुआ है, वहां इसका नाम ही नहीं लिखा गया था।
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सीबीआई भी ‘दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट-1946’ के तहत यह एजेंसी काम करती है, लेकिन उसमें कहीं भी सीबीआई नाम नहीं लिखा है। इससे जांच एजेंसी की स्वायत्तता पर सवाल उठने लगे। यहां तक कि एक हाईकोर्ट ने तो इस जांच एजेंसी को असंवैधानिक संस्था बता दिया था। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता और नेता प्रो. गौरव वल्लभ का कहना है कि मौजूदा सरकार, सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है। विपक्ष के लोग अगर सच बात कहते हैं तो उनके पीछे सीबीआई लगा दी जाती है। रोजाना ही किसी न किसी विपक्षी नेता के यहां सीबीआई के छापे का समाचार छपता है।
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महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख द्वारा जारी बयान के मुताबिक, सीबीआई के राजनीतिक उपयोग को लेकर संदेह की स्थिति बन चुकी है। दिल्ली पुलिस विशेष प्रतिष्ठान अधिनियम की धारा-6 राज्य में जांच के लिए राज्यों को सहमति अनिवार्य करने का अधिकार देती है। पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और सिक्किम तो पहले ही सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगा चुके हैं। यानी इन राज्यों में जांच से पहले वहां की सरकार की अनुमति लेनी होगी।
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अब महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी कहा है कि सीबीआई को राज्य में किसी भी जांच के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। शिवसेना प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने कहा, देखिये हमारा इस जांच एजेंसी से कोई निजी द्वेष तो है नहीं। इसका दुरुपयोग हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है। ये केंद्रीय एजेंसी है, अहम केसों की जांच इसे सौंपी जानी चाहिए। ऐसा न हो कि अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इसे किसी के भी पीछे लगा दिया जाए। इससे तो जांच एजेंसी की गरिमा को चोट पहुंचेगी ही।
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कानून के जानकारों का कहना है कि सीबीआई का गठन ‘दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेबलिशमेंट एक्ट-1946’ के तहत हुआ है। हैरानी की बात यह है कि वहां ‘सीबीआई’ नाम का कोई शब्द ही नहीं है। इसी आधार पर यह माना गया कि ये जांच एजेंसी एक संवैधानिक संस्था नहीं है और पूर्ण स्वायत्तता का संकट खड़ा हो गया है। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 2013 के दौरान अपने एक फैसले में कहा था कि सीबीआई एक असंवैधानिक संस्था है। केंद्र सरकार को उस फैसले के बाद समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। हालाँकि इस मामले को लेकर बाद में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया था।
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सीबीआई के गठन और स्वायत्तता के मामले की पैरवी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. एलएस चौधरी के मुताबिक इस एक्ट में बदलाव होते रहे हैं। इसके बाद भी ‘सीबीआई’ शब्द कहीं नहीं जोड़ा गया। जब संविधान के किसी भाग में सीबीआई जैसी केंद्रीय संस्था के गठन का प्रावधान नहीं है तो इसे पूर्ण स्वायत्तता कैसे मिलती। चौधरी के मुताबिक, यही वजह है कि ‘केंद्रीय जांच एजेंसी’ को अभी तक संवैधानिक दर्जा हासिल नहीं है। उनके मुताबिक सीबीआई का गठन 01 अप्रैल 1963 को एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत हुआ था। ऐसे में सीबीआई को लेकर केंद्र को वैधानिक कदम उठाना चाहिए |