नई दिल्ली / भारत के समुद्री इलाकों में एक नया खतरा मंडराने लगा है | अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि जिस तरह से भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी पानी में डूब गई थी, इसी तरह पर कही भारत के कई बड़े शहरों की समुद्र में जल समाधि ना हो जाये | दरअसल यूरोपीय स्पेस एजेंसी की तरफ से मिले सैटेलाइट डाटा के हिसाब से समुद्री जल का स्तर लगातार ऊंचा हो रहा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने कहा कि इससे तटीय इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों की जिंदगी को खतरा पैदा हो सकता है।
मंत्रालय के सचिव माधवन राजीवन ने ईएसए अर्थ ऑब्जर्वेशन के एक ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा कि समुद्र का जल स्तर बढ़ने के पीछे ग्लोबल वार्मिंग सबसे प्रमुख कारण है। ईएसए अर्थ ऑब्जर्वेशन के ट्वीट में एक ग्राफ जोड़ा गया था, जो समुद्री सतह की ऊंचाई में आ रहे बदलाव को दर्शाता है।
राजीवन ने ट्वीट में लिखा, ईएसए की तरफ से उपलब्ध कराया गया डाटा दिखाता है कि औसतन 1993 से वैश्विक माध्यमिक समुद्री जल स्तर हर साल 3 मिलीमीटर की गति से बढ़ रहा है। समुद्री जल स्तर में औसतन बढ़ोतरी दिखाती है कि हर साल सतह की ऊंचाई 3 मिलीमीटर बढ़ जाती है।
सैटेलाइट डाटा इस बढ़ोतरी को आंकने में बेहद उपयोगी साबित हो सकता है, जिसका अधिकतर हिस्सा ग्लोबल वार्मिंग की ही देन है। इससे तटीय इलाकों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए खतरा पैदा हो गया है। बताया जाता है कि प्रदूषण और पर्यावरण के प्रति लोगों के असंवेदनशील रवैये और मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी के जलवायु तंत्र की गर्मी लगातार बढ़ रही है | इसे ग्लोबल वार्मिंग भी कहा जाता है।
मानवीय गतिविधियां पृथ्वी के वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ा रही हैं जिनमें फंसकर गर्मी ऊपरी वायुमंडल में नहीं जा रही है। इसके नकारात्मक प्रभाव के परिणाम लगातार देखने को मिल रहे हैं। इनमें अनिश्चित मौसमी पैटर्न और ग्लेशियरों, ध्रुवों में बर्फीली सतह का पिघलना शामिल है, जिनके कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है।
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पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट काफी हद तक भयावह प्रतीत होती है | इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद लोगों को सचेत रहने से ज्यादा जरुरत पर्यावरण को संरक्षित करने की है | ताकि कई अनचाहे खतरों को टाला जा सके |