भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना के कचरे से बढ़ा खतरा, तेजी से प्रदूषित कर रहा पर्यावरण, 129 अरब मास्क और 65 अरब दस्ताने हर महीने डिस्पोज, वातावरण में कोरोना वायरस के फैलने का अंदेशा, चेहरे पर हमेशा मास्क का उपयोग जरुरी

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दिल्ली / भारत के कई राज्यों में कोरोना संक्रमण के दौरान उपयोग में आये मेडिकल वेस्ट को बगैर सावधानी बरते आम इलाकों में फेंक दिए जाने की घटनाये सामने आई है | हाल ही में नदी -तालाबों के किनारे तो कही कचरे के डंप में कोरोना से निपटने में उपयोग की गई पीपीई किट और दूसरे वेस्ट लावारिश पाए गए थे | उन इलाकों में ऐसी घटनाये सामने आने के बाद स्थानीय प्रशासन ने उसे नष्ट करने की प्रक्रिया पूर्ण की थी | कुछ ऐसे ही हालात भारत के अलावा दुनिया के कई देशों में सामने आ रहे है | इस तरह के मामले पर्यावरण के लिए चुनौती बन गए है | दरअसल पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस से जूझ रही है | वैज्ञानिको ने इसके वायरस के हवा में फैलने की थ्योरी भी बताई है | यह भी बताया गया कि हवा में मौजूद कोरोना वायरस से बचने के लिए चेहरे पर मास्क पहना जाये | इस वायरस से बचने के लिए मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन जरुरी बताया गया है |

एन्वायर्मेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल के एक अनुमान के मुताबिक भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में हर महीने 129 अरब मास्क 65 अरब दस्ताने जो सिंगल यूज प्लास्टिक से बने हैं, उन्हें डिस्पोज किया जा रहा है। कोरोना वायरस की वजह से देश में एक दि में 550 टन से ज्यादा मेडिकल वेस्ट निकल रहा है। इस वेस्ट में मास्क, दस्ताने, पीपीई किट, फेस शील्ड, गाउन या गॉगल्स शामिल हैं और ये सभी सामान सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल कर बने हैं। अस्पतालों और कोरोना वार्ड से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट की चिंता ज्यादा नहीं रहती। अस्पतालों और कोरोना वार्ड से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट अच्छी तरीके से इकट्ठा किया जाता है और डिस्पोज भी किया जाता है लेकिन आम लोग इस सिंगल यूज प्लास्टिक को कैसे डिस्पोज करते हैं और कैसे फेंकते हैं, ये ज्यादा बड़ी चिंता की बात है। डॉक्टरों का कहना है कि पीपीई किट, दस्ताने या मास्क को भले ही इस्तेमाल कर कचरे के डब्बे में फेंक दिया जाए लेकिन इससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। एक शोध के मुताबिक अगर कोई डॉक्टर पीपीई किट पहनकर कोरोना मरीज के संपर्क में आया है तो उसकी पीपीई किट पर भी चार दिन तक संक्रमण का असर रहता है। हालांकि लांसेट के शोध के मुताबिक कपड़े से बने मास्क पर 48 घंटे या उससे ज्यादा समय तक कोरोना वायरस जिंदा रहता है।

भारत समेत कई देशों से ऐसी शिकायतें या खबर सामने आईं कि लोग खुले मेें ही मास्क को डिस्पोज कर दे रहे हैं, यहां तक कि सामान्य डस्टबिन में ही लोग मास्क फेंक दे रहे हैं। इसके अलावा कई देशों में देखा गया कि लोग शॉपिंग मॉल या सार्वजनिक जगहों पर खुले में मास्क डिस्पोज कर रहे हैं, ऐसा करना दूसरों के लिए खतरनाक हो सकता है। लोगों की इसी लापरवाही को देखते हुए हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया की विक्टोरियन सरकार ने हाल ही में फेस मास्क पहनने को लेकर सख्त नियम लागू किए हैं। वहां की सरकार ने आदेश दिया है कि सार्वजनिक जगहों पर मास्क, दस्ताने, पीपीई किट या कोई दूसरा मेडिकल सामान ना डालें।

ये आंकड़ा पूरी दुनिया का है, और इनको इस्तेमाल करने के बाद डिस्पोज किया जा रहा है। एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यानि एसोचैम का एक शोध कहता है कि साल 2022 तक देश में 775 टन से ज्यादा मेडिकल वेस्ट निकलेगा। नेशनल जियोग्राफिक की एक रिपोर्ट की माने तो अगर प्लास्टिक की एक बोतल समुद्र में चली जाए तो उसे गलने में 450 साल लग सकते हैं। इसके अलावा वर्ल्ड वाइड फोरम फॉर नेचर की लॉकडाउन के दौरान एक रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी। इस रिपोर्ट चौंकाने वाली बात का खुलासा हुआ था कि अगर दुनिया में एक फीसदी मास्क भी गलत तरीके से डिस्पोज किए जा रहे हो तो भी समुद्र में एक करोड़ से ज्यादा मास्क हर दिन तैरत नजर आएंगे। समुद्री जीवों की रिसर्चर और ग्रीस के आर्किपेलागोज इंस्टिट्यूट ऑफ मरीन कंजर्वेशन की रिसर्च निदेशक अनेस्तेसिया मिलिऊ कहती हैं कि बारिश के पानी के साथ कचरा, मास्क या दस्ताने समुद्र में ही जाएंगे। विश्व में समुद्री कचरे के निपटारे की व्यवस्था पहले से ही अच्छी नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि सभी स्वस्थ लोगों को कपड़े का बना मास्क पहनना चाहिए, हालांकि ये मास्क तीन परतों वाला होना चाहिए।उसका कहना है कि कोरोना में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल वेस्ट को अच्छी तरह से डिस्पोज करना बेहज जरूरी है, नहीं तो और लोगों को भी संक्रमित कर सकता है।