जरा याद करो कुर्बानी, इसी दिन 9 अगस्त 1925 को देश प्रेमियों ने किया काकोरी कांड, पढ़िए, भगत सिंह की जुबानी

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दिल्ली / काकोरी कांड क्या है, ये आज कल के बच्चे शायद ना जानते हो | इसका कारण भी है | दरअसल हमारे देश में अजीबों गरीब एक ऐसी राजनीति और राजनेता लहर मारते है, जो आने वाली पीढ़ी को देश प्रेम का सन्देश देना नहीं चाहते बल्कि किसी व्यक्ति विशेष को खुश करने और उनकी चाटुकरिता के जरिये चरण वंदना करने पर लालायित रहते है | तभी तो प्राथमिक शिक्षा के पाठयक्रमों से काकोरी का चेप्टर ही हटा दिया गया है | इसी का मुख्य कारण है कि भारत तेरे टुकड़े होंगे, इन्शाह अल्लाह-इन्शाह अल्लाह जैसे नारे शिक्षा के केंद्रों में गूंजते है | ऐसा नहीं है कि पढ़े -लिखे ये लोग यूँ ही चीखते चिल्लाते है | असल में हमारी शिक्षा व्यवस्था से देश प्रेम और आजादी के नायको के संघर्षों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है | काकोरी कांड का नाम सुनते ही हमेशा रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह समेत कुल दस क्रांतिकारियों की यादे तरो ताजा हो जाती है | इतिहास बताता है कि काकोरी कांड को अंजाम देने वालों में अधिकतर क्रांतिकारी ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ से जुड़े थे | इस घटना को अंजाम देने के बाद कुछ को फांसी भी हो गई थी | काकोरी कांड को जर्मनी निर्मित एक माउज़र से अंजाम दिया गया था | इस दौरान अंग्रेज अफसर से करीब चार हजार रुपये लूटे गए थे |

9 अगस्त 1925 को हुई इस घटना के पर शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने काफी कुछ लिखा है | उन्होंने उन दिनों पंजाबी पत्रिका ‘किरती’ में लेखों की एक श्रृंखला शुरू की थी, जिसमें वो काकोरी कांड के नायकों का परिचय करवाते है | भगत सिंह ने इस उस पूरी घटना को जनता के सामने लाया है | गाँधी जी के ‘असहयोग आंदोलन’ के बाद इतिहास में सबसे ज्यादा चर्चित काकोरी कांड रहा है | इसने अंग्रेजों की नीव हिला दी थी | इस घटना ने अंग्रेज़ों को एक संदेश पहुंचा दिया कि हिन्दुस्तानी क्रांतिकारी उनसे लोहा लेने के लिए हर तरह के तरीके अपना सकते हैं | अपने कई लेखों में भगत सिंह ने किरती में काकोरी कांड से जुड़े दस मुख्य और अन्य साथियों का जिक्र किया है | उन्होंने रण बांकुरो का पूरा परिचय भी लिखा है. इनमें शचींद्रनाथ सान्याल, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह, मन्मथनाथ गुप्त, जोगेशचंद्र चटर्जी, गोविंद चरणकार, सुरेशचंद्र भट्टाचार्य, राजकुमार, विष्णु शरण दुब्लिस, रामदुलारे, अशफाक उल्ला खां का योगदान दर्ज है |

मई, 1927 को ‘काकोरी के वीरों से परिचय’ नाम के लेख में भगत सिंह ने लिखा है, ‘’9 अगस्त, 1925 को काकोरी स्टेशन से एक ट्रेन चली. ये करीब लखनऊ से 8 मील की दूरी पर था, ट्रेन चलने के कुछ ही देर बाद उसमें बैठे 3 नौजवानों ने गाड़ी रोक दी. उनके ही अन्य साथियों ने गाड़ी में मौजूद सरकारी खजाने को लूट लिया. उन तीन नौजवानों ने बड़ी चतुराई से ट्रेन में बैठे अन्य यात्रियों को धमका दिया था और समझाया था कि उन्हें कुछ नहीं होगा बस चुप रहें. इस दौरान ट्रेन में मौजूद अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों ने गोली चला दी | दोनों ओर से जब गोलियां चल रही थीं और इसी बीच एक यात्री ट्रेन से उतर गया और उसकी गोली लगकर मौत हो गई’’ |

‘इस घटना के बाद अंग्रेजों ने इसकी जांच शुरू की | सीआईडी के अफसर हार्टन को जांच का जिम्मा दिया गया | हार्टन को मालूम था कि ये सब क्रांतिकारी जत्थे का किया धरा है | इस घटना के कुछ दिनों बाद ही क्रांतिकारियों ने मेरठ में एक बैठक रखी | लेकिन भारतीय मुखबिरों के जरिये अंग्रेज अफसर इस बैठक के बारे में पता लग गया | उसने छानबीन तेज कर दी | माह सितंबर आते-आते क्रांतिकारियों की गिरफ्तारियां होनी शुरू हो गईं | राजेंद्र लाहिड़ी को बम कांड में दस साल की सज़ा हुई, अशफाक उल्ला, शचींद्र बख्शी भी बाद में गिरफ्तार किये गए’ |

दरअसल काकोरी कांड का मकसद सिर्फ अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटना नहीं था बल्कि उन्हें एक कड़ा संदेश पहुंचाना था कि देश के क्रन्तिकारी अब उनकी लूट बर्दास्त नहीं करेंगे | हालाँकि इस घटना को अंजाम देने के मामले में अधिकतर क्रन्तिकारी पकड़े गए | करीब दस महीने तक मुकदमा अदालत में चला | आरोपियों को फांसी के फंदे तक पहुँचाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी | जनवरी, 1928 में भगत सिंह ने फिर ‘किरती’ पत्रिका में लेख लिखा कि ‘17 दिसंबर, 1927 को राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को गोंडा में, 19 दिसंबर को रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, अशफाक उल्ला खां को फैज़ाबाद, रोशन सिंह को इलाहाबाद की जेल में फांसी दे दी गई |

उनके मुताबिक सुनवाई कर रहे सेशन जज हेमिल्टन ने अपने फैसले में कहा था कि ये सभी नौजवान देशभक्त हैं, भले ही इन्होंने अपने फायदे के लिए कुछ ना किया हो लेकिन अगर ये जवान कहें कि वो अपने किए का पश्चाताप करेंगे तो सज़ा में कुछ रियायत दी जा सकती है | हालाँकि देश भक्ति का जस्बा ऐसा था कि किसी भी क्रांतिकारी ने ना तो माफ़ी मांगी और ना ही पश्चाताप किया | इसके बाद अंग्रेज़ी हुकूमत के आदेश पर फांसी दे दी गई’ |

अपने लेख के कुछ किस्से साझा करते हुए भगत सिंह ने लिखा कि जब हर क्रांतिकारी को फांसी दिए जाने का वक्त तय हुआ, उन्हें ये बताया तो इन्हीं में जब अशफाक उल्ला खां को फांसी दी जा रही थी तब उन्होंने जाते हुए कुछ शेर पढ़े थे | भगत सिंह के मुताबिक इसी किस्से को उन्होंने लेखबद्ध किया है | वे बताते है कि ‘अशफाक फांसी से एक दिन पहले अपने बाल सही कर रहे थे, तब उन्होंने साथी से कहा कि कल मेरी शादी है, उनके साथी ने हैरत जताते हुए कहा कि ये कैसी बातें कर रहे हैं | उनके मुताबिक फांसी के फंदे की ओर जाने से पहले अशफाक उल्ला खां ने शेर पढ़ा, ‘फ़नाह हैं हम सबके लिए, हम पै कुछ नहीं मौक़ूफ़… वक़ा है एक फ़कत जाने की ब्रिया के लिए’. इसके अलावा उन्होंने कहा…‘तंग आकर हम उनके ज़ुल्म से बेदाद से, चल दिए सूए अदम ज़िन्दाने फ़ैज़ाबाद से’ |

भगत सिंह बताते है कि अशफाक उल्ला खां से इतर जब रामप्रसाद बिस्मिल को 19 की शाम को फांसी दी गई, तब वो बड़े ज़ोर से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाने लगे. उसी वक्त राम प्रसाद बिस्मिल ने भी अपने शेरो -शायरियों के साथ अंतिम विदाई ली | उन्होंने कहा-
‘मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे
बाक़ी न मैं रहूं, न मेरी आरज़ू रहे
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे
तेरी ही जिक़्रेयार, तेरी जुस्तजू रहे’
उनके लफ्ज यही नहीं रुके, राम प्रसाद बिस्मिल जब फांसी के तख्ते पर पहुंचे तो उन्होंने फिर शेर पढ़ा, ‘अब न अहले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़, एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है’ |

दरअसल आजादी के वीर नायकों में से एक भगत सिंह ने अपने अधिकतर लेख पंजाबी-उर्दू में लिखे थे | उनपर लिखी गई किताब ‘भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज़’ में इन सभी का हिन्दी अनुवाद किया गया है | यह किस्सों उन्ही पुस्तकों में दर्ज घटनाओं से ली गई है |

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इतिहासकार बताते है कि भगत सिंह ने जब पढ़ना शुरू किया, तो उनकी आदत रहती थी कि जो पढ़ रहे हैं उसके बारे में लिखते भी थे. ताकि और लोगों को पता लग सके. ऐसा ही उन्होंने काकोरी कांड के लेख -लिखते वक़्त किया था | उन्होंने हर उस व्यक्ति के बारे में लिखा जो काकोरी कांड में किसी न किसी रूप में शामिल रहा | आज की पीढ़ी को भगत सिंह ही नहीं बल्कि आजादी के असली वीरों के चरित्र चित्रण से रूबरू होना पड़ेगा | ताकि आने वाली पीढ़ी आजादी के मूल्यों का आंकलन और वीर – नायकों के गौरवगाथा से परिचित हो सके |