दिल्ली वेब डेस्क / आखिर वजह क्या है कि नौजवान और जमीनी पकड़ रखने वाले नेता एक के बाद एक कांग्रेस से विदा हो रहे है | आखिर क्यों राहुल और सोनिया गाँधी ऐसे नेताओं के पार्टी में बने रहने को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाते | आखिर क्यों कांग्रेस के भीतर ऐसी स्थिति बन रही है कि उसके मजबूत धड़े सोनिया- राहुल से किनारा कर रहे है | आखिर क्यों देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी एक के बाद एक तमाम राज्यों में सिमटती जा रही है |
राज्यों में उसकी चुनी हुई सरकार वक़्त से पहले आखिर क्यों लडखडा जाती है | ऐसे कई सवाल है जो पहले मध्यप्रदेश में उस वक़्त उठे जब कमलनाथ का साथ पार्टी एक विधायकों ने छोड़ दिया | ज्योतिरादित्य सिंधियाँ के हाथ नीचे करते ही कमलनाथ सरकार औंधे मुँह गिर पड़ी | राजस्थान में चल रहे सियासी संकट के बीच एक बार फिर यही सवाल उठ खड़े हुए है | यहाँ सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से दो -दो हाथ करने में जुटे है |
इस बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता और वकील कपिल सिब्बल के उस ट्वीट की चर्चा भी जोरो पर है, जिसमे उन्होंने कहा था कि ” घोड़ों के अस्तबल से भागने के बाद क्या हम जागेंगे” | मौजूदा संकट के मद्देनज़र राजस्थान में सियासी जंग ख़त्म कर कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए उनका यह संकेत गौरतलब है | लेकिन लगता है वक़्त रहते कांग्रेस अपने सधे हुए कदम नहीं उठा पाई | नतीजतन सचिन पायलट जैसे युवा नेता ने कांग्रेस से दूरियां बनाना ही मुनासिब समझा |
पुरानी कहावत है कि सियासत में ओल्ड एंड गोल्ड का साथ हमेशा कारगर रहा है | मसलन पुराने नेता के साथ युवा नेताओं की सहभागिता से पार्टी में जोश और सामंजस्य से विरोधियों को धूल चटाना | चुनाव में इसी मूलमंत्र सहारे पार्टी को कामयाबी और मजबूती मिलती है | ये फॉर्मूला कई मौकों पर बड़ा ही कारगर साबित हुआ है | एक समय कांग्रेस में राजनीतिक सूझबूझ इसी तर्ज पर नज़र आती थी | लेकिन अब पार्टी इस फॉर्मूले से हटती नज़र आ रही है | नतीजतन कई राज्यों में वो ना केवल संकट से जूझ रही बल्कि उनकी सरकार भी सत्ता से हाथ धोने लगी है | कांग्रेस के लिए नौजवानो का अनुभव और सोच के कोई मायने नज़र नहीं आ रहे है | अब हालात ऐसे हो गए हैं कि युवा चेहरे ही पार्टी के साथ-साथ दिग्गज नेताओं की राजनीति पर विराम लगा रहे है |
ताजा मामला सचिन पायलट का है | उन्होंने राजस्थान में अच्छी खासी चल रही कांग्रेस सरकार को वेंटिलेटर पर ला दिया है | राजेश पायलट जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता के बेटे सचिन पायलट 26 साल की उम्र में कांग्रेस से सांसद बने थे | यूपीए सरकार में तो 35 साल की उम्र में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में जगह दी गई थी | अपने इस राजनैतिक सफर में उन्हें मात्र 37 साल की उम्र में वर्ष 2014 में पार्टी ने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान उनके हाथों में सौंप दी थी | हालाँकि पार्टी आलाकमान की नज़रों में खरा उतरने के लिए सचिन पायलट ने भी जी-तोड़ मेहनत की |
ये भी पढ़े : बड़ी खबर : सांस छोड़ने के 1 घंटे बाद भी हवा में हो सकता है कोरोना वायरस, एक्सपर्ट की राय, मुँह में मास्क पहनना बेहद जरुरी, रिसर्च में बताया गया कि कोरोनो वायरस न सिर्फ किसी सामान की सतह से फैल सकता है, बल्कि हवा से भी संक्रमण फैला सकता है, हो जाये सतर्क
उन्होंने पूरे राजस्थान में दौरा कर तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार की चूले हिला दी | उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूती के साथ गांव गांव में फैलाया | आखिरकार सचिन पायलट की मेहनत रंग लाई | 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस ने वसुंधरा सरकार को उखाड़ फेंका | लेकिन जीत का सेहरा उनके सिर बंधने के बजाये कांग्रेस ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया | जबकि तमाम खींचतान के बाद सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री पद दिया गया | नतीजतन आखरी वक़्त तक दोनों में तालमेल नहीं बैठ पाया | आखिरकार सचिन पायलट ने हाथ का साथ छोड़ दिया और गहलोत सरकार संकट में आ गई है |
इसी साल चार माह पूर्व मार्च महीने में मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला | यहाँ भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जी -तोड़ मेहनत कर कांग्रेस को सत्ता तक पहुँचाया | लेकिन जब बारी मुख्यमंत्री की आई तो कांग्रेस ने कमलनाथ को आगे कर दिया | आखिरकार मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का बड़ा चेहरा माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से दूरियां बना ली | उनके भी हाथ नीचे करते ही कांग्रेस को सरकार से हाथ धोना पड़ा |
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की जड़े मजबूत करने वाले अपने पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2001 में कांग्रेस का हाथ पकड़ा था | वे चुनाव-दर चुनाव गुना सीट से लोकसभा मे पहुंचते चले गए | यूपीए सरकार ने 2007 में पीएम मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में सिंधिया को मंत्री बनाकर उनका कद और बढ़ाया | लेकिन 2018 में जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत मिलने के बाद आलाकमान ने कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया तो सिंधिया को गहरा धक्का लगा | उनके अरमान उस समय और टूट गए जब उन्हें ना तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया और ना ही राज्यसभा में भेजे जाने की हामी भरी गई | इसका नतीजा ये हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी में शामिल होकर फ़ौरन मुख्यमंत्री कमलनाथ सरकार को औंधे मुँह गिरा दिया |
सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तर्ज पर कांग्रेस के युवा नेता हिमंता बिस्वा ने भी कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में जाना मुनासिब समझा | 1996 से 2015 तक हिमंता बिस्वा कांग्रेस में रहे और असम की कांग्रेस सरकार में मंत्री पद भी संभाला | हिमंता बिस्वा सरमा कभी दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान और उनके शीर्ष नेताओं के बीच मजबूत पकड़ रखते थे | लेकिन 2015 में उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया | वे कांग्रेस से इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर उस वक्त कई गंभीर आरोप भी लगाए | कांग्रेस छोड़ने के बाद 2016 में उन्होंने असम में विधानसभा चुनाव लड़ा और कैबिनेट मंत्री बने |
ये भी पढ़े : राजस्थान में वेंटिलेटर पर सीएम अशोक गहलोत सरकार, सीएम के करीबियों पर दिल्ली से राजस्थान तक आयकर विभाग की छापेमारी, अभी तक मात्र 70 विधायक ही पहुंचे बैठक में, पार्टी व्हिप की कई विधायकों ने यह कह कर उड़ाई खिल्ली कि यह विधानसभा और कुछ खास मौके के दौरान ही प्रभावशील होता है, ऐसी बैठकों में नहीं, बीजेपी की सरकार पर नज़र
उधर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने हिमंता बिस्वा सरमा को नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का संयोजक भी बना दिया | दरअसल NEDA, नॉर्थ ईस्ट भारत के कई क्षेत्रीय दलों का एक गठबंधन है | हिमंता बिस्वा सरमा ने नॉर्थ ईस्ट की राजनीति में शून्य कही जाने वाली बीजेपी को असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर जैसे राज्यों में मजबूत किया | उन्होंने यहाँ बीजेपी और उनकी समर्थित सरकार बनाकर कांग्रेस का सफाया कर दिया | इस तरह से देश की सबसे पुरानी और बड़ी राजनैतिक पार्टी में युवाओं की अनदेखी भारी पड़ रही है | ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और हिमंता बिस्वा सरमा जैसे कांग्रेस के ये तीन युवा चेहरे ही आज पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन गए है |