बड़ी खबर : देश के महान सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस को शरण देने वाले गांव के लोगों को आज भी है मोबाइल नेटवर्क का इंतजार, टॉवर लगाने में प्राइवेट कंपनियों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई ,BSNL के पास भी नहीं है टावर लगाने के लिए बजट, इस गांव में पहुंचते ही मोबाइल में हो जाते है सिग्नल गायब

0
7

कोहिमा वेब डेस्क / आजादी के 76 साल बीत गए | लेकिन नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मौत आज भी रहस्मय बनी हुई है | उन्हें भारत रत्न की पदवी देना तो दूर नेता जी को शरण देने वाले गांव में आज तक मूलभूत सुविधाएं तक जुटाई नहीं जा सकी है | मामला नागालैंड के ‘रुजाजो’ गांव का है | इतिहास में दर्ज है कि इस गांव ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 1944 में शरण दी थी | आजादी के इतने साल गुजरने के बाद भी इस गांव में एक अदद मोबाइल टावर तक नहीं लग पाया है | यहाँ के ग्रामीण किसी से भी बातचीत करने के लिए कई किलों मीटर दूर जाकर मोबाइल का इस्तेमाल करते है | इस गांव में टेलीफ़ोन लाइन का भी बंदोबस्त नहीं है | बताया जाता है कि बनारस की सुभाष चंद्र बोस संस्था के पदाधिकारी तमल सान्याल ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इस गांव में मोबाइल टावर लगाने के लिए पत्र भेजा है |

एक जानकारी के मुताबिक तमल सान्याल ने इसके लिए दूर संचार विभाग से भी संपर्क किया था | लेकिन वहां से जवाब मिला है कि बीएसएनएल के पास टावर लगाने के लिए फंड नहीं है। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि विभाग की ओर से उन्हें सूचित किया गया है कि जब नागालैंड में 4जी तकनीक के उपकरण लगेंगे, तो इस गांव पर विचार किया जाएगा।

इतिहास के जानकार बताते है कि नेता जी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ निकटवर्ती गांव जेसामी पहुंचे थे | यहाँ वे दो तीन दिन रुके और फिर वहां से रुजाजो आए थे । यह विश्व युद्ध का वो दौर था, जब ब्रिटिश आर्मी लगातार बम गिरा रही थी। ग्रामीण बताते है कि सुभाष चंद्र बोस, जब इस गांव में पहुंचे थे तो यहाँ के लोगों ने उनकी दिल खोलकर सहायता की थी | नेता जी ने यहाँ के लोगों को भरोसा दिलाया था कि वे स्वतंत्रता के बाद इस गांव की तकदीर बदल देंगे | उन्होंने वादा किया था कि इस गांव में बच्चों के लिए अच्छा स्कूल होगा, साफ पानी मिलेगा और चावल मिल लगेगी। लोगों के मुताबिक इस गांव से रवाना होने से पहले नेताजी ने कहा था कि आप चिंता न करें। मुझे यह गांव हमेशा याद रहेगा।

तमल सान्याल के मुताबिक उन्होंने इस गांव में मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने के लिए नागालैंड प्रशासन के साथ कई बार पत्राचार किया है | वे बताते हैं कि 1944 में सुभाष चंद्र बोस और उनकी सेना ने नौ दिन तक इस गांव में पड़ाव डाला था। उनके मुताबिक पिछले साल जब वे इस गांव में पहुंचे थे तो कई बुजर्गों ने उन्हें नेता जी का वादा याद दिलाया | उन्होंने बताया कि सौ वर्ष से ज्यादा आयु के बपोसूयुवी स्वोरो ने पुरानी यादें ताजा कर नेता जी के कई किस्से सुनाये। वे बताते है कि उस वक्त सुभाष चंद्र बोस ने इस गांव को अपना मुख्यालय बना लिया था। वे गांव में ऊंचाई पर स्थित पत्थरों के बीच में बैठक करते थे।

उन्होंने बताया कि ब्रिटिश आर्मी उन दिनों लगातार नेताजी पर नजर रख रही थी। दुश्मनों का विमान उनकी टोह लेने के लिए इस गांव के ऊपर अक्सर मंडराता रहता था। कई बार उसने बमबारी भी की | लेकिन नेताजी और उनके साथ मौजूद हजारों सैनिक इस गांव में सुरक्षित रहे | ग्रामीणों ने नेताजी का भरपूर सहयोग किया। स्थानीय ग्रामीणों ने फौज के लिए चावल देकर मदद की |

सान्याल बताते है कि जब नेताजी यहां से जाने लगे तो उन्होंने इस गांव को गोद लेने की बात कही थी। हालाँकि 1945 के बाद वे दुबारा यहाँ नहीं लौट पाए | ‘रुजाजो’ गांव आज भी उनका इंतजार कर रहा है। सान्याल कहते है कि आजादी के इतने दशक बाद भी करीब साढ़े आठ सौ घरों वाला यह गांव न तो हैरिटेज स्थलों की सूची में जगह पा सका और न ही नेता जी के भरोसे की किसी ने सुध ली।

उन्होंने बताया कि इस गांव को हैरीटेज घोषित कराने के लिए कई पत्र लिखे गए, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। जिस मकान में नेताजी नौ दिन तक रुके वो जर्जर हो चूका है | गांव में मोबाइल टावर, अच्छा सरकारी स्कूल, हर घर में स्वच्छ पेयजल, राइस मिल और रोजगार, इनमें से कुछ भी आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है।

उन्होंने बताया कि लोगों को मोबाइल फोन पर बातचीत करने के लिए दूसरे गांव में जाना पड़ता है। पिछले साल दीमापुर में बीएसएनएल के अधिकारियों ने बताया था कि यहां टावर लगाने के लिए सर्वे हुआ है। जमीन मिल गई है। टेंडर भी जारी हो गया। दो टावर लगाने की बात हुई थी। इसके बाद बीएसएनएल के पास फंड की कमी बता कर पल्ला झाड़ लिया।