कोरोना संक्रमण के बाद चीन में बढ़ा ‘ब्यूबोनिक प्लेग’ का खतरा, इसे ‘काली मौत’ भी कहते हैं, कोरोना संक्रमण और ब्यूबोनिक प्लेग के बीच रिश्ते तलाशने में जुटे वैज्ञानिक, यह संयोग या कोविड -19 का साइड इफेक्ट, रिसर्च जारी

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दिल्ली वेब डेस्क / चीन में अब ब्लैक डेथ का खतरा मंडराने लगा है | यह ब्यूबोनिक प्लेग है, जो खतरनाक महामारी की श्रेणी में है | कोरोना वायरस से ग्रस्त कई मरीजों को इस बीमारी ने अपनी चपेट में लिया है | हालाँकि की ये वो मरीज थे जो कोविड -19 के इलाज के बाद ठीक हो चुके थे | स्वस्थ होने के बाद वे अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे थे | लेकिन दो तीन माह बाद वे एक बार फिर बीमार पड़े |

बताया जाता है कि डॉक्टरों ने इस बार उनके शरीर में ब्यूबोनिक प्लेग के बैक्टीरिया पाए | यह भी बताया जा रहा है कि ऐसे कई मरीजों के सामने आने के बाद डॉक्टरों ने ब्यूबोनिक प्लेग और कोविड- 19 के बीच संबंध तलाश करना शुरू कर दिया है | इस दिशा में चीन की मेडिकल यूनिवर्सिटीज और दवा कंपनियों की लैब में रिसर्च की जा रही है | कोरोना वायरस से जूझ रही दुनिया के लिए यह एक और बुरी खबर के रूप में देखा जा रहा है |

जानकारी के मुताबिक चीन में इस खतरनाक और जानलेवा बीमारी फैलने के अंदेशे के चलते नए सिरे से संक्रमण रोकने की कवायत शुरू कर दी है | बताया जाता है कि इस बीमारी ने पहले भी पूरी दुनिया में लाखों लोगों की जान ली है | इसने दुनिया में तीन बार हमला किया है | इस हमले में पहली बार इसे 5 करोड़, दूसरी बार पूरे यूरो की एक तिहाई आबादी और तीसरी बार 80 हजार लोगों की जान चली गई थी |

प्रतीकात्मक तस्वीर

अब एक बार फिर इस बीमारी का चीन में पनपना दुनिया के लिए अलार्म है | जानकार इसे ब्लैक डेथ या काली मौत के नाम से भी पुकारते हैं | इससे पहले 1970 से लेकर 1980 तक इस बीमारी को चीन, भारत, रूस, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण अमेरिकी देशों में पाया गया है |

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दुनिया भर में ब्यूबोनिक प्लेग के 2010 से 2015 के बीच करीब 3248 मामले सामने आये थे | इनमे से 584 लोगों की मौत हुई थी | इन सालों में ज्यादातर मामले डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, मैडागास्कर, पेरू में रजिस्टर्ड हुए थे | ब्यूबोनिक प्लेग को ही 6ठीं और 8वीं सदी में प्लेग ऑफ जस्टिनियन नाम दिया गया था. इस बीमारी की चपेट में आने से दुनिया में करीब 2.5 से 5 करोड़ लोगों की जान गई थी |

बताया जाता है कि ब्यूबोनिक प्लेग का दूसरा हमला दुनिया पर 1347 में हुआ था | तब इसे ब्लैक डेथ का नाम दिया गया था | इस दौरान यूरोप की एक तिहाई आबादी इसके संक्रमण से खत्म हो गई थी | ब्यूबोनिक प्लेग का तीसरा हमला दुनिया पर 1894 के आसपास हुआ था | तब इससे 80 हजार लोगों की जान गई थी | भारत में 1994 में पांच राज्यों में ब्यूबोनिक प्लेग के करीब 700 केस सामने आए थे | इनमें से 52 लोगों की मौत हुई थी |

जानकारी के मुताबिक उत्तरी चीन के बयन्नुर के एक अस्पताल में ब्यूबोनिक प्लेग से ग्रसित मरीजों के आने के बाद से वहां अलर्ट जारी कर दिया गया है | यह वो इलाका है जहाँ कोविड -19 ने बड़े पैमाने पर लोगों की जान ली थी | चीन के आंतरिक मंगोलियाई स्वायत्त क्षेत्र, बयन्नुर में प्लेग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए तीसरे स्तर की चेतावनी जारी की गई है |

स्थानीय स्वास्थ्य विभाग ने यह चेतावनी 2020 के अंत तक के लिए जारी की है | इसमें लोगों को सतर्क रहने के लिए कहा गया है | अलर्ट में यह भी कहा गया है कि यह बीमारी जंगली चूहों में पाए जाने वाली बैक्टीरिया से होती है | लिहाजा चूहों से बचे |डॉक्टरों के मुताबिक चूहों में पाए जाने वाले इस बैक्टीरिया का नाम है यर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरियम है |

यह खतरनाक बैक्टीरिया शरीर के लिंफ नोड्स, खून और फेफड़ों पर हमला करता है | इससे उंगलियां काली पड़कर सड़ने लगती है | नाक के साथ भी ऐसा ही होता है | इसमें शरीर में असहनीय दर्द, तेज बुखार होता है | नाड़ी तेज चलने लगती है | दो-तीन दिन में गिल्टियां निकलने लगती हैं | 14 दिन में ये गिल्टियां पक जाती हैं | इसके बाद शरीर में असहनीय दर्द होता है | इससे मरीज की जान चली जाती है |

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जानकार बताते है कि ब्यूबोनिक ब्लेग सबसे पहले जंगली चूहों को होता है | संक्रमित चूहों के मरने के बाद इस प्लेग का बैक्टीरिया पिस्सुओं के जरिए मानव शरीर में प्रवेश कर जाता है | इसके बाद जब पिस्सू इंसानों को काटता है तो वह संक्रामक लिक्विड इंसानों के खून में छोड़ देता है | इसी के बाद इंसान संक्रमित हो जाता है | फिर उन चूहों के मरने के दो तीन सप्ताह बाद मनुष्यों में यह जानलेवा प्लेग फैल जाता है | फ़िलहाल चीन में इस खतरे से लोगों को आगाह किया जा रहा है |