सूरजपुर / हाल ही में केरल में एक गर्भवती हथिनी की मौत का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि छत्तीसगढ़ के सूरजपुर में एक गर्भवती हथिनी की मौत हो गई | वन विभाग का दावा है कि 20 माह की गर्भवती हथिनी की लिवर की बीमारी से मौत हो गई है। जबकि इस हथिनी का पोस्टमार्टम गैर पेशेवर तरीके से किया गया | पोस्टमार्टम के दौरान उपयुक्त प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने से इस गर्भवती हथिनी की मौत का असल कारण सामने नहीं आ सका है |
हथिनी की मौत की परिस्थितियों को लेकर वन्यजीव प्रेमी इसे जहर देकर हत्या करार दे रहे है | उन्हें अंदेशा है कि जिस वाटर बॉडी के पास हथिनी की मौत हुई , उस वाटर बॉडी में यूरिया के इस्तेमाल से इंकार नहीं किया जा सकता है | उनके मुताबिक इस इलाके में इसके पूर्व भी यूरिया देकर कई जानवरों को मारा गया है | लिहाजा हथिनी की मौत की घटना से छत्तीसगढ़ वन्य जीव संरक्षण और हाथियों पर निगरानी रखने वाले भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों और अफसरों की लापरवाही भी सामने आ रही है |
बताया जा रहा है कि पोस्टमार्टम के दौरान सरकारी डॉक्टर ने मृत हथिनी के लिवर ,किडनी और पेट का कोई भी सैंपल नहीं लिया | और ना ही उसे संरक्षित कर जांच के लिए भेजा | यही नहीं पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने मृत हथिनी का शिष्ट अपने हाथों में रखकर फोटो भी खिंचवाई | आमतौर पर पेशेवर डॉक्टर इस तरह की हरकत नहीं करते | डॉक्टर के हाथों में हेंड ग्लब्स और मुंह में मास्क तक नहीं था | गैर पेशेवर तरीके से हुए पोस्टमार्टम की तस्वीरें सोशल मीडिया में भी वायरल हो रही है | बताया जाता है कि पशु चिकित्सा संस्थान अंजोरा के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम मौके पर पहुंची थी | लेकिन वन विभाग ने ना तो उन्हें पोस्टमार्टम में शामिल किया और ना ही मृत हथिनी के सैंपल लेने की इजाजत दी | यह भी कहा जा रहा है कि मामले को रफा-दफा करने के लिए वन विभाग ने आनन-फानन में हथिनी का पोस्टमार्टम कराकर उसे दफना दिया |
जानकारी के मुताबिक समय रहते यदि बीमारी का पता चल जाता तो हथिनी का इलाज संभव था। डॉ. महेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि पोस्टमार्टम में हथिनी के पेट में 20 माह का बच्चा मिला है। वह भी मादा था, जिसकी गर्भ में ही मौत हो गई थी। उनके मुताबिक कई महीने पहले हथिनी के लिवर में इंफेक्शन शुरू हुआ होगा। वहीं लीवर में पानी भर गया था। इसके चलते मौत की वजह लीवर इंफेक्शन ही था। डॉक्टरों ने बताया कि पीएम के दौरान हथिनी के लिवर में 150 सिस्ट देखे गए थे। जो कि इतनी संख्या में उन्होंने किसी जानवर में नहीं देखे।
उधर इस हथिनी की मौत से छत्तीसगढ़ के जंगलों में तालाबों और वाटर बॉडी के पानी को लेकर भी सवाल खड़ा हो रहा है | वन्य जीव प्रेमियों का मानना है कि दूषित पानी पीने के चलते कई और जानवरों की मौत हो सकती है | ऐसे में वन विभाग को ठोस कदम उठाने होंगे | उनका आरोप है कि हथिनी की मौत के लिए विभागीय अफसर जिम्मेदार है | हैरान करने वाला यह तथ्य भी है कि हाथियों की निगरानी करने में लगे वैज्ञानिक और अफसर इस हाथिनी के बीमार होने के बारे में पता नहीं लगा सके। जबकि इसके लिए सरकार सालाना 2 करोड़ से अधिक खर्च करती है। इससे साफ़ है कि निगरानी दल की लापरवाही से एक गर्भवती हथिनी की जान चली गई।
छत्तीसगढ़ में हाथियों के संरक्षण पर सालाना 2 करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च होती है | हाथियों को संरक्षित करने के लिए केंद्र सरकार के सहयोग से एलिफेंट कॉरिडोर का भी निर्माण किया गया है | जानकारी के मुताबिक हथिनी का गर्भकाल 24 माह का होता है | सम्बंधित रेंज को पता होता है कि उसके इलाके में विचरण करने वाली कितनी हथिनियाँ गर्भवती है | जानकारी के मुताबिक अकेले सूरजपुर जिले में पांच साल में 22 हाथियों की मौत हो चुकी है | उम्मीद की जा रही है कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए वन विभाग मामले की उच्चस्तरीय जांच के निर्देश देगा |