नोट : जनसंपर्क विभाग ध्यान दे , यह फेंक न्यूज़ नहीं है , अपनी मुहर लगाने से पूर्व रायपुर पुलिस की डायरी , SIT रिपोर्ट दस्तावेज , शिकायतों की नस्ती , रायपुर जिला न्यायालय और हाईकोर्ट बिलासपुर में दर्ज केस की फाइल में शामिल दस्तावेजों का अध्ययन जरूर करे |
रायपुर / छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े न्यू स्वागत विहार हाऊसिंग घोटाले की नींव रखने वाले अफसरों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने को लेकर आरटीआई कार्यकर्ता मुकेश कुमार ने कड़ी आपत्ति जाहिर की है | उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ध्यान इस ओर दिलाते हुए बताया है कि तत्कालीन कांग्रेस के विधायकों ने वर्ष 2013-14 और 15 में लगातार इस मामले को विधान सभा में उठाया था और घोटालेबाज अफसरों के खिलाफ करवाई की मांग की थी | तत्कालीन सरकार ने मामले की जांच कराने और अफसरों की जिम्मेदारी भी तय की थी | इस दौरान इस हाऊसिंग प्रोजेक्ट की मंजूरी देने वाले कलेक्टर कार्यालय रायपुर में पदस्थ जिम्मेदार अफसरों को चिन्हित भी किया गया था | लेकिन उन अफसरों के खिलाफ़ कोई कार्रवाई आज की तिथि तक नहीं की गई |
मुकेश कुमार ने बताया कि इसमें से एक इस घोटाले की नींव रखने वाले जिम्मेदार अफसर को निलंबित एडीजी मुकेश गुप्ता और उसके आका की मेहरबानी से आईएएस अवार्ड तक दे दिया गया | मुकेश कुमार ने बताया कि तत्कालीन अफसरों ने DOPT को कई गलत और आधी अधूरी जानकारियां भेजकर इस अफसर का नाम आईएएस अवार्ड पाने वाले अफसरों की सूची में शामिल कराया गया |
उन्होंने बताया कि इस मामले को अदालत के संज्ञान में लाकर ऐसे अफसरों की आवार्ड वापसी की मांग वे करने जा रहे है | इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार , DOPT और छत्तीसगढ़ सरकार को प्राथमिक सूचना भेजकर क़ानूनी प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया है | मुकेश कुमार के मुताबिक पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में घोटाले को अंजाम देने वाले कई अफसर इन दिनों कांग्रेस के विश्वासपात्र होने का दावा कर रहे है | उन्होंने आरोप लगाया कि महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती के बाद ये अफसर कांग्रेस सरकार को विवादित बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे है | उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से न्यू स्वागत विहार घोटाले की जांच को अंजाम तक पहुंचाने की मांग की है |
न्यू स्वागत विहार घोटाले पर एक नजर :
बताया जाता है कि साल 2013 में न्यू स्वागत विहार में करीब 3200 लोगों ने तत्कालीन बिल्डर संजय बाजपेयी से प्लाट खरीदे थे। इस दौरान प्रोजेक्ट में 500 से अधिक लोगों को सरकारी और नाले के जमीन का प्लाट दिखाकर रजिस्ट्री करा दी गई थी। मामले का जब खुलासा हुआ तो पीड़ितों की जमीन कानूनी पचड़े में फंस गई थी। तत्कालीन जांच अधिकारियों ने पाया था कि सरकारी जमीन दबाई गई, उसमें नाले की जमीन भी है। यह भी तथ्य सामने आया था कि तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्तर के एक अफसर ने आधा दर्जन से ज्यादा प्लॉट इस प्रोजेक्ट में हथियाये थे | यही नहीं कुछ प्रभावशील और महत्वपूर्ण पद में तैनात अफसरों को भी मुफ्त में प्लॉट बांटे गए थे | इसके बदले में उन अफसरों ने बगैर कानूनी प्रक्रिया अपनाये बिल्डर को उस प्रोजेक्ट की मंजूरी दी थी |
हालांकि जांच के बाद तत्कालीन सरकार ने न्यू स्वागत विहार का लेआउट निरस्त कर दिया था। लेकिन उन अफसरों के खिलाफ आज तक कार्रवाई नहीं की | जबकि घोटाले में शामिल सरकारी अधिकारियों ने मुफ्त प्लॉट लेने के बाद उसे वैधानिक बनाने के लिए चाटर्ड एकाउंटेंट और निवेशकों के साथ मिलकर एक नए आर्थिक घोटाले को अंजाम दिया था | उन्होंने ये प्लॉट अपने नाते रिश्तेदारों और करीबियों के नाम कर दिए | ताकि जांच और कार्रवाई से बचा जा सके |
उधर ले आउट निरस्त होने के बाद प्लाट खरीदने वाले लोगों ने कोर्ट में बिल्डर के खिलाफ याचिका दायर की थी। सुनवाई के कुछ माह बाद बिल्डर संजय वाजपेयी का हार्ट अटैक से निधन हो गया था | हालांकि मामला जब कोर्ट में पहुंचा तो बिल्डर्स की ओर से नया नक्शा पेश किया गया था। इस नए नक्शे में 15 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस और गार्डन के लिए जगह नहीं छोड़ा गया था। नियमानुसार किसी भी इस तरह के प्रोजेक्ट में 15 प्रतिशत भूमि छोड़नी पड़ती है। न्यू स्वागत विहार प्रोजेक्ट 227 एकड़ में फैला है। 211 एकड़ भूमि बिल्डर्स के स्वामित्व में रिकार्ड के अनुसार और 208 एकड़ वास्तविक जमीन है। यह तथ्य भी सामने आया कि निवेशकों ने
जिन जमीनों की रजिस्ट्री कराई गई उसके नाम पर बैंक से 15 से 20 लाख रुपए तक का लोन उन्हें प्राप्त हुआ था | जांच अधिकारी इस बात से आश्चर्य में थे कि फर्जी जमीनों का वेरीफिकेशन भी बैंकों द्वारा ओके कर दिया गया |
रायपुर सिटी कोतवाली में हुई थी शिकायत दर्ज , SIT का भी हुआ था गठन :
उधर न्यू स्वागत विहार कॉलोनी में जमीन खरीदी के नाम पर लाखों रुपए की ठगी का शिकार हुए निवेशकों ने बिल्डर और तत्कालीन एसडीएम समेत अन्य अफसरों के खिलाफ कोतवाली थाना में लिखित शिकायत दर्ज कराई थी । निवेशकों ने अफसरों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज देखकर ठगी का शिकार होने की शिकायत की थी | सरकारी जमीन की गड़बड़ी को लेकर पुलिस की एसआईटी जांच में बड़ा घोटाला सामने आया था | प्रत्येक निवेशक ने 15 लाख रुपए तक की प्लॉट खरीदी में धोखाधड़ी का शिकार होना बताया था |
निवेशकों ने दस्तावेजों के साथ लिखित में दिए आवेदन में कहा था कि तत्कालीन एसडीएम और बिल्डर ने मिल जुलकर मौके पर घास जमीन को कॉलोनी का हिस्सा बताकर बेच दिया। कई खसरा नंबर वाले प्लॉट की रजिस्ट्री करा दी। लाखों रुपए चुकाने के बाद अब मौके पर जमीन ढूंढना मुश्किल हो रहा। सरकारी जमीन में अवैध कॉलोनी बसाने के मामले में जांच के लिए पुलिस ने दो बार SIT का गठन किया था | बताया जाता है कि पहली SIT जांच में तत्कालीन एसडीएम और बिल्डर के बीच सांठगांठ और सरकारी जमीन की बंदरबांट साबित होने के बाद उसे बचाने की कवायद शुरू हुई | इसके बाद कुख्यात एडीजी मुकेश गुप्ता के हस्ताक्षेप से दूसरी बार एक नई SIT का गठन किया गया | ताकि इस अफसर को बचाया जा सके |
पुलिस ने घोटाले की जांच के लिए दूसरी बार एसआईटी का गठन कर हाऊसिंग प्रोजेक्ट मामले में दोषी अफसरों पर कार्रवाई करने के संकेत दिए थे | लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका। अलबत्ता SIT ने अघोषित तौर से फाइल बंद कर दी। एसआईटी के अफसर वापस अपने मूल विभागों में लौट गए। मामला यही नहीं थमा , जिस अफसर को इस घोटाले के लिए जेल भेजना था उसे आईएएस अवार्ड दे दिया गया | फ़िलहाल धोखाधड़ी का शिकार हुए निवेशक अपनी जमीन की मांग को लेकर आज भी अदालत का चक्कर काट रहे है | उधर घोटाले में शामिल अफसर तत्कालीन बीजेपी सरकार के बाद अब कांग्रेस सरकार की गोद में नजर आ रहे है |