रायपुर/बस्तर – छत्तीसगढ़ के कुख्यात एडीजी और कई अपराधिक गतिविधियों के मास्टर माइंड मुकेश गुप्ता से झीरम घाटी हत्याकांड को लेकर पूछताछ हो सकती है | दरअसल बस्तर के तत्कालीन कंजर्वेटर ऑफ फारेस्ट ने तत्कालीन पुलिस अधिकारियों समेत मुकेश गुप्ता को झीरम घाटी में बड़े पैमाने में मौजूद नक्सलियों के जमावड़े की सूचना दी थी | यह सूचना लिखित और मौखिक में भी भेजी गई थी | इसके बावजूद तत्कालीन पुलिस अफसरों ने झीरम घाटी में झांकना तक मुनासिब नहीं समझा | यही नहीं तत्कालीन एडीजी इंटेलिजेंस मुकेश गुप्ता को उस वक्त नक्सलियों की तमाम गतिविधियों की जानकारी थी | इसके बावजूद छत्तीसगढ़ पुलिस ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को ना तो सुरक्षा मुहैया कराई और ना ही बड़े कांग्रेस नेताओं की आवाजाही को लेकर कोई SOP को अमल में लाया | यही नहीं तत्कालीन एडीजी मुकेश गुप्ता की कार्यप्रणाली उस समय संदिग्ध नजर आई जब कांग्रेस नेताओं का जत्था सुकमा में आम सभा समाप्त कर रायपुर के लिए लौट रहा था | चंद घंटों में ही झीरम घाटी में इस नर संहार को नक्सलियों ने अंजाम दे दिया | राज्य के इंटेलिजेंस चीफ होने के बावजूद मुकेश गुप्ता ने आखिर क्यों घटना के पहले और घटना के बाद अपने कर्तव्यों का निर्वहन क्यों नहीं किया ? यह आज भी चर्चा का विषय बना हुआ है |
यही नहीं अंबिकापुर सेंट्रल जेल में उस दौरान बंद किये गए एक विचाराधीन कैदी से मुकेश गुप्ता की नजदीकियां भी तत्कालीन दौर में चर्चा का विषय बनी रही | यहाँ तक कि इस विचाराधीन कैदी से कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा मुखिया ने भी सेंट्रल जेल पहुंचकर मुलाकात की थी | ताकि असलियत पर से पर्दा हट पाए | गंभीर बात यह है कि झीरम घाटी हत्याकांड के दौरान बस्तर-सुकमा के तत्कालीन एसपी IG बस्तर रेंज ,एडीजी इंटेलिजेंस से कोई ठोस पूछताछ NIA ने नहीं की आखिर क्यों ? जांच की गहराई में जाने के बजाये इसे एक सामान्य नक्सली हमला आखिर क्यों मान लिया गया ? हैरत करने वाला तथ्य यह भी है कि छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय ने जगदलपुर के तत्कालीन एसपी और आईजी बस्तर रेंज को इतने बड़े हत्याकांड के बावजूद पुरस्कृत किया था | सबक सिखाने या अनुशासत्मक कार्रवाई करने के बजाय उन्हें वापस महत्वपूर्ण पोस्टिंग दी गई थी |
झीरम घाटी में कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की हत्या कर दी गई थी | जबकि सुरक्षा के लिहाज से नेता प्रतिपक्ष रहे महेंद्र कर्मा को जेड प्लस सुरक्षा थी | देश की इतनी विश्वसनीय सुरक्षा मुहैया होने के बावजूद आखिर कैसे उस कारकेट में पर्याप्त वाहन और जवान नहीं थे , क्यों ढिलाई बरती गई ? तत्कालीन इंटेलिजेंस चीफ मुकेश गुप्ता ने इस बारे में तत्कालीन सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को कोई तथ्य स्पष्ट नहीं किये ? यह भी बताया जाता है कि राजनांदगांव के मदनवाड़ा में तत्कालीन एसपी विनोद चौबे समेत 29 पुलिस कर्मियों की नक्सली हमले में भी उनकी कार्यप्रणाली संदिग्ध है | हालांकि इस मामले की जांच जारी है |
इधर झीरम घाटी कांड को लेकर एनआईए जांच पर पूर्व शहीद विधायक उदय मुदलियार के पुत्र जितेन्द्र मुदलियार ने असंतोष जाहिर किया है | उन्होंने दरभा थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है | जितेन्द्र मुदलियार ने अपनी शिकायत में कुछ गंभीर बिंदुओं पर भी जांच की मांग की है | उन्होंने घटना से जुड़े कई साक्ष्य होने का भी दावा किया है | उनकी शिकायत पर दरभा थाना में धारा 302, 120 B के तहत अपराध दर्ज किया गया है |
जितेन्द्र मुदलियार ने एफआईआर में जांच के जो बिंदु उठाये है , उसमें सुरक्षा में अपराधिक चूक का मामला प्रमुख है | उन्होंने कहा है कि नक्सली आमतौर पर नेताओं और अधिकारियों को बंधक बनाकर उनकी हत्या करने के बजाये सरकार से कुछ ना कुछ मांग करते है | राज्य में नक्सली ट्रेंड ऐसा ही रहा है | लेकिन झीरम घाटी में नेताओं पर अंधाधुंध फायरिंग कर उन्हें मौत के घाट उतारा गया | इसकी जांच होनी चाहिए | उन्होंने आरटीआई से मिले बहुत सारे दस्तावेज पेश किये | इसमें नक्सल मूवमेंट की जानकारी इंटेलिजेंस इनपुट शामिल है | उन्होंने एक ऐसा दस्तावेज भी पेश किया जो 19-20 मई 2013 को जारी किया गया था | इस लेटर में झीरम घाटी में नक्सलियों के इकट्ठा होने का इनपुट था | इसके बावजूद भी परिवर्तन यात्रा को सुरक्षा नहीं प्रदान की गई थी | जितेंद्र मुदलियार ने इसे षड़यंत्र बताया है | उन्होंने सरकार से न्याय की मांग की है |
जितेन्द्र मुदलियार ने एनआईए की जांच पर कई गंभीर सवाल उठाए हैं | उन्होंने इसे झूठ का पुलिंदा करार दिया है | उन्होंने कहा कि एनआईए जांच का इंतजार पिछले सात साल से हो रहा है | लेकिन वो न तो क्लोजर रिपोर्ट दे रही है और ना ही घटना का कोई ब्यौरा |उन्होंने दोहराया कि झीरम घाटी हमला साजिश है , यह राजनीतिक हत्याकांड है |