दिल्ली वेब डेस्क / लॉक डाउन में एक ओर जहाँ नदियों, झीलों और तालाबों का जल स्वच्छ हुआ है | वहीँ दूसरी ओर आने वाले तीज त्योहारों को देखते हुए मूर्ति बनाने काम भी जोरो पर है | इसके पूर्व देश का प्रदूषण नियंत्रण मंडल सक्रिय हो गया है | उसने अब देश में कहीं पर भी प्लास्टिक, प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) और थर्मोकोल जैसी हानि कारक चीजों से बनीं देव प्र्रतिमाओं का जल विसर्जन नहीं किया जा सकेगा। सीपीसीबी ने देश में मूर्ति विसर्जन को पर्यावरण हितैषी तरीके से पूरा करने के लिए नियमों में बदलाव कर दिया है।
नए नियमों में इन हानि कारक तत्वोंसे बनी मूर्तियों का विसर्जन पूरी तरह प्रतिबंधित घोषित किया गया है। सीपीसीबी ने मूर्ति विसर्जन के लिए साल 2010 में जारी दिशा निर्देशों को संशोधित किया है। यह कदम मिट्टी से बनीं और सिंथेटिक पेंटव रसायनों के बजाय प्राकृतिक रंगों से रंगी गई मूर्तियों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। जारी किए गए नए नियमों के तहत उन्हीं मूर्तियों के जल विसर्जन की अनुमति मिलेगी, जिनका निर्माण पर्यावरण हितैषी तत्वों से किया जाएगा और जो कोई हानि कारक प्रभाव छोड़े बिना बायो डिग्रेडेबल (प्राकृतिक रूप सेस्वत: नष्ट होने वाली) होने का गुण रखती होंगी।
इसमें सिंगल- यूज प्लास्टिक, थर्मोकोल या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनीं मूर्तियाें का उपयोग करने को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। सीपीसीबी ने सभी राज्य प्रदूषण बोर्ड को अपने नियमों में संशोधित दिशा निर्देशों के आधार पर बदलाव कर लेने का आदेश दिया है।
सीपीसीबी त्योहार से पहले और बाद में जल स्रोतों के पानी का सैंपल भी इकट्ठा करते हुए रिपोर्ट बनाए जाने का निर्देश दिया गया है। सीपीसीबी के संशोधित दिशा निर्देशों में कहा गया है कि मूर्तियों की सजावट के लिए केवल सूखे फलों के अंशों और उन्हें आकर्षकव चमक दार बनाने के लिए पेड़ों की प्राकृतिक गोंद के ही उपयोग की अनुमति रहेगी। जाहिर है अब मूर्तियों के निर्माण में प्राकृतिक रंगों के उपयोग की अनुमति होगी, केमिकल की नहीं |
दरअसल नदियों और जलाशयों में हर साल गणेश चतुर्थी वदुर्गा पूजा जैसे त्योहारों के दौरान भारी मात्रा में मूर्तियों को विसर्जित किया जाता है। विसर्जन के लिए सस्ते व जहरीले अकार्बनिक तत्वों से बनी मूर्तियों का उपयोग बड़े पैमाने पर होने के कारण जल स्रोत बुरी तरह प्रदूषित हो रहे थे। सीपीसीबी लगातार इन पर अंकुशल गाने के लिए दिशा निर्देश जारी कर रही है। लेकिन मूर्ति निर्माण में उपयोग होने वाले हानिकारक पदार्थों पर रोक नहीं होने से ये कवायद बेकार साबित हो रही थी।