लॉकडाउन खुलते ही भारतीय अर्थव्यवस्था के संकट में आने के आसार , UN रिपोर्ट में खुलासा – कोरोना से 10 साल पीछे जाएगा भारत, करोड़ों लोग होंगे गरीब , संकट से निकलने का प्लान बनाने में जुए पीएम मोदी , अर्थशास्त्रियों और बाजार विषेशज्ञों की मदद से तैयार हो रही है रणनीति

0
8

दिल्ली वेब डेस्क / कोरोना संक्रमण के मोर्चे पर जूझते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नए संकट से निकलने की रणनीति पर भी काम कर रहे है | जहां देश को संक्रमण मुक्त करने की जवाबदारी उनके कन्धों पर है वही अर्थवयवस्था को पटरी पर लाने के लिए भी वो एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है | UN की एक ताजा रिपोर्ट से बाजार चिंता में है | दरअसल इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जंग लड़ रही है और अधिकांश देशों में लॉकडाउन जारी है | लॉकडाउन की वजह से विश्व के साथ ही भारत पर भी भयंकर आर्थिक मंदी के बादल मंडरा रहे हैं | ऐसे में UN की जो रिपोर्ट सामने आई है उससे देश की परेशानी और बढ़ सकती है |

लॉकडाउन से जूझते हुए देश को आर्थिक मंदी से बचाए रखने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार हर संभव कोशिश में जुटी है | हालांकि इस कोशिश के बाद भी देश की अर्थव्यवस्था पर कोरोना का बुरा प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा है | यह पीएम मोदी की सूझबूझ पर निर्भर कर रहा है कि वो नुकसान कितना रोक पाते है | दरअसल यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की वजह से करीब 10 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाएंगे | इसका सबसे बड़ा कारण पूरे देश में आर्थिक गतिविधियों का पूरी तरह रुक जाना बताया गया है |

यूएन के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस को लेकर जो लॉकडाउन हुआ है, उस पर हाल ही में एक विश्लेषण किया है | इसी आधार पर आशंका जताई गई है कि भारत में 104 मिलियन अर्थात 10 करोड़ से ज्यादा लोग विश्व बैंक द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा से नीचे चल जाएंगे | जिसका सीधा अर्थ हुआ कि वो बेहद गरीबी में जीने को मजबूर होंगे | यूएन के मुताबिक अभी जो लोग रोज 245 रुपये से कम कमाते हैं उन्हें गरीबी रेखा से नीचे रखा जाता है |

रिसर्च में पाया गया कि भारत में करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 81 करोड़ 12 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं | अगर ऐसा होता है तो भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या 90 करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगी | शोध में इसका कारण कोरोना वायरस की वजह से पैदा हुए हालात को बताया गया है | अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि जो 60 फीसदी भारतीय अभी गरीबी रेखा के नीचे रह रहे हैं यह बढ़कर 68 फीसदी तक पहुंच सकते है | एक दशक पहले भारत की यही स्थिति थी लेकिन सरकार के प्रयासों के बाद गरीबी रेखा से बाहर आने वाले लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है | रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि गरीबी कम करने के लिए सरकार के वर्षों के प्रयासों को महज इन कुछ महीनों के लॉकडाउन ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है |

विश्व बैंक देशों को चार व्यापक आय श्रेणियों में वर्गीकृत करता है, जिसके आधार पर उन्हें तीन गरीबी रेखा के बीच बांटा जाता है | भारत निम्न मध्य आय वर्ग श्रेणी वाले देश में आता है | ऐसा देश जहां प्रति व्यक्ति वार्षिक सकल राष्ट्रीय आय 78,438 रुपये से लेकर 3 लाख रुपये के बीच है | उन देशों में प्रति दिन 245 रुपये से कम कमाने वालों को गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है | अब देखना होगा कि भारतीय अर्थवयस्था को सिर्फ मंदी ही नहीं बल्कि कोरोना से हुए नुकसान की भरपाई के लिए किस तरह की आर्थिक नीतियों का समायोजन किया जाता है |