रायपुर / छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन की उल्टी गिनती शुरू हो गई है | राज्य सरकार ने कुछ उद्योग धंधों को खोलने के लिए अपनी गतिविधियां शुरू कर दी है | लोगों को लगता है कि अब पूर्ण शराबबंदी के लिए भी राज्य सरकार को ऐसे ही कदम उठाने की जरूरत है | उसे शराब से मिलने वाले राजस्व पर जोर देने के बजाये अपने पार्टी घोषणापत्र पर जनता से किये गए पूर्ण शराबबंदी के वादों को जमीनी धरातल पर लाना होगा | लॉकडाउन ने इसके लिए उपयुक्त समय और वातावरण तैयार कर दिया है | इतने दिनों में शराब की लत को लेकर ना तो किसी की मौत हुई है , और ना ही कोई मरीज अस्पताल में दाखिल हुआ है | ये जरूर है कि हाल ही में रायपुर में स्प्रिट पीने से तीन व्यक्तियों की मौत हो गई थी | यह एक हादसा मात्र है , इसे शराब की तलब से ना जोड़ते हुए किसी केमिकल के पीने से होने वाले दुष्प्रभाव से जोड़कर देखा जाना चाहिए | लॉकडाउन ने लाखों ऐसे लोगों को शराब की लत से छुटकारा दिला दिया है , जो दिनरात पीने में मशगूल रहते थे |
छत्तीसगढ़ में पूर्ण शराबबंदी की दिशा में लॉकडाउन कारगर साबित हुआ है | तारीफ करनी होगी उन लोगो की जिन्होंने शराब दुकान बंद होने के बावजूद पीने को लेकर ना तो हाय तौबा मचाया और ना ही कानून व्यवस्था तोड़ने पर आमादा हुए | राज्य के किसी भी जिले में शराब की मांग और उसकी तलब को लेकर कोई अप्रिय घटना सामने नहीं आई है | इसे शराबबंदी को लेकर एक महत्वपूर्ण माहौल के रूप में देखा जाना चाहिए | अब यह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी कांग्रेस सरकार पर निर्भर करता है कि वे तत्काल पूर्ण शराबबंदी की ओर बढ़ते है या फिर और किसी नए वक्त और माहौल का इंतजार करते हुए अपने वादे को निभाने में टाल मटौल करते है |
छत्तीसगढ़ में कोरोना के संक्रमण ने भले ही चंद लोगों को अपना शिकार बनाया हो | लेकिन उसने ऐसे लाखों घर परिवार और महिलाओं को राहत दी है , जिनके यहां शराब के चलन ने जोर पकड़ लिया था | शराब से होने वाले सामाजिक दुष्प्रभाव और अपराधों से राज्य का शायद ही ऐसा कोई गांव हो जो अछूता नहीं रहा हो | शराब के नशे में सालाना सैकड़ों गंभीर किस्म के अपराध तमाम जिलों में दर्ज होते है | यही नहीं , शराब से शरीर में होने वाले दुष्प्रभाव से राज्य भर के अस्पतालों में मरीजों का दबाव रहता है | छत्तीसगढ़ में ग्रामीण इलाका हो या फिर शहरी , गांव की पगडंडियों से लेकर नेशनल हाइवे में शराब पीकर होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा चिंताजनक है | घरेलू हिंसा और नशे की लत के लिए अपराधों को अंजाम देने की प्रवृति पर रोक लगाने के लिए लोगों को इससे बेहतर और अनुकूल समय अब नजर नहीं आ रहा है | मौजूदा दौर में शराब मुक्त छत्तीसगढ़ की पहल से नई सामाजिक क्रांति का आगाज किया जा सकता है | .
सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि छत्तीसगढ़ सरकार और कांग्रेस पार्टी को अपना वादा निभाने के लिए इससे बेहतर समय तलाशने की संभावनाओं को टालना चाहिए | ऐसे समय उसे राजनैतिक इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पूर्ण शराबबंदी के फैसले पर अपनी मुहर लगाने पर विचार करना चाहिए | न्यूज टुडे छत्तीसगढ़ से चर्चा करते हुए सैकड़ों समाजसेवियों , स्वयं सेवी संस्थाओं और सत्ताधारी दल ही नहीं बल्कि विपक्ष के कई नेताओं ने अपना मत रखते हुए मौजूदा सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों की ओर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ध्यान दिलाया है | उनका मानना है कि राज्य में आबकारी के बजाय राजस्व के कई नए स्रोत मौजूद है | बस सरकार को ठोस इच्छाशक्ति और कड़े फैसलों के दौर से गुजर कर पूर्ण शराबबंदी के अपने वादों पर खरा उतरना चाहिए | क्योकि शराबबंदी अभी नहीं तो कभी नहीं साकार होती नजर आ रही है |
फ़िलहाल लोगों को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल , पार्टी घोषणापत्र के प्रभारी टीएस सिंहदेव , कांग्रेस प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया और कांग्रेस आलाकमान की प्रतिक्रिया का इंतजार है | उन्हें उम्मीद है कि शराबबंदी को लेकर तमाम नेता अपना मंतव्य जाहिर करेंगे |