लखनऊ वेब डेस्क / देश में कोरोना वायरस के संकट से निपटने के कायदे कानूनों की सख्ती मानवीय आवश्यकताओं पर भारी पड़ रही है | प्राकृतिक वजहों और आकस्मिक कार्यों के लिए जायज कारण बताने के बावजूद पुलिस और प्रशासन इतना संवेदनहीन हो गया है कि गाइडलाइन का पालन करने के बावजूद जरूरतमंदों को आवाजाही की अनुमति नहीं मिल रही है | जरूरतमंद लोग पूर्ण सतर्कता बरतते हुए अपने व्यय और साधनो से इधर से उधर होना चाहते है | लेकिन उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए कोई प्रशासनिक मदद नहीं मिल रही है | अफसर साफ़ कर रहे है कि फ़िलहाल तो 21 दिनों का लॉकडाउन लागू है | इस लॉकडाउन में घरों में रहने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने का निर्देश दिया गया है | नतीजतन लॉकडाउन के कारण कुछ लोग इतने तनाव में आ गए कि उन्होंने आत्महत्या करने तक का कदम उठा लिया है |
लॉकडाउन के दौरान जायज कारणों में भी इधर से उधर जाने की अनुमति नहीं मिलने से लोगों में तनाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है | ताजा मामला उत्तर प्रदेश का है | यहां अपनी पत्नी से लगातार दूर रहने के चलते एक पति ने आत्महत्या कर ली | वही एक अन्य रोडवेज कर्मचारी ने भी सरकारी रवैया से परेशान होकर खुदकुशी कर ली |
पहली घटना उत्तर प्रदेश के गोंडा की है, जहां कथित तौर पर एक शख्स पर उसकी पत्नी की याद इस कदर हावी हो गई कि शख्स ने फांसी लगाकर जान दे दी | घटना राधा कुंड इलाके की है | मृतक की पहचान 32 वर्षीय राकेश सोनी के रूप में हुई है |
स्थानीय थाने के इंस्पेक्टर आलोक राव के मुताबिक राकेश की पत्नी अपने माता-पिता के घर गई थी | इसके बाद लॉकडाउन हुआ और मृतक की पत्नी अपने मायके में ही रह गई | लॉकडाउन के दौरान मृतक को अपनी पत्नी की याद सताने लगी | राकेश अपनी पत्नी से मिल नहीं पा रहा था, जिसके कारण वो तनाव में आ गया और आखिर में उसने कमरे की छत में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली | फिलहाल पुलिस मामले में आगे की जांच कर रही है |
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दूसरी घटना बरेली से सामने आई है | यहां भी सरकारी रवैये से परेशान होकर एक रोडवेज कर्मचारी ने आत्महत्या कर ली | घटना बरेली के सुभाषनगर के क्लासिक गेस्ट हाउस की है | यहां रहने वाले रोडवेज कर्मचारी 28 वर्षीय अनुराग दीप गुप्ता ने फांसी लगा ली | गेस्ट हाउस मैनेजर नदीम के मुताबिक लॉकडाउन से पहले 18 मार्च को अनुराग यहां आया था | वह रोडवेज बसों की जांच किया करता था | लॉकडाउन के कारण वह बरेली में फंस गया | अनुराग ने कई बार बरेली से जाने की कोशिश की लेकिन उसकी हर कोशिश नाकाम रही |
दोनों ही मामलों में सरकारी अधिकारीयों की लकीर के फ़क़ीर वाली कार्यप्रणली सामने आई है | बताया जाता है कि लंबे अरसे से दोनों ही पीड़ित अपने घर परिवार की स्थिति को लेकर चिंता में थे | उन्होंने नियमानुसार आवाजाही के लिए खूब हाथ पैर मारा लेकिन अफसरों ने उनके आवेदनों पर कोई विचार नहीं किया | यही नहीं सामाजिक सहायता के लिए भी सरकारी अधिकारीयों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई | बताया जा रहा है कि क़ानूनी औपचारिकता पूरी करने के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काटने के बावजूद पीड़ितों को कुछ हासिल नहीं हुआ | नतीजतन निराश होकर उन्होंने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लिया |