कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के “सरकारी खर्च में हो कटौती” वाले सुझाव को खुद कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने डाला रद्दी की टोकरी में , कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए पीएम मोदी को चार दिन पहले सोनिया की लिखित चिट्ठी में दी गई सलाह ख़ारिज ? जब सोनिया गाँधी की सलाह को कांग्रेस ने ही नकारा तो बीजेपी का सवाल ही नहीं ?   

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दिल्ली वेब डेस्क / देश में कांग्रेस शासित तीन बड़े राज्यों छत्तीसगढ़ , राजस्थान और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने अपनी ही पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गाँधी की उस सलाह पर कोई एतबार नहीं किया है , जो उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार को दी थी | इसमें अनावश्यक खर्चो में कटौती किये जाने का महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया था |  कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पत्र लिखकर आग्रह किया था कि कोरोना संकट के मद्देनजर सरकार के खर्च में 30 फीसदी की कटौती और ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना को स्थगित करने सहित कई कदम उठाए जाएं। इसमें मुख्य रूप से मीडिया पर होने वाले खर्च में कटौती की सलाह दी गई थी |

इसमें कहा गया था कि सरकार एवं सरकारी उपक्रमों द्वारा मीडिया विज्ञापनों- टेलीविज़न, प्रिंट एवं ऑनलाइन विज्ञापनों- पर दो साल के लिए रोक लगाने के लिए कहा था | उन्होंने कहा था कि यह पैसा कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट से जूझने में लगाया जाए. केंद्र को सुझाव देते हुए उन्होंने यह भी बताया था कि केंद्र सरकार मीडिया विज्ञापनों पर हर साल लगभग 1,250 करोड़ रु. खर्च करती है. इसके अलावा, सरकारी उपक्रमों एवं सरकारी कंपनियों द्वारा विज्ञापनों पर खर्च की जाने वाली सालाना राशि इससे भी अधिक है

सोनिया गाँधी का यह पत्र उन लाखों लोगों की भावनाओं के अनुरूप था जो कोरोना संक्रमण की दिशा में उनकी सलाह को कारगर मान रहे थे | सोनिया गांधी का यह पत्र भले ही कांग्रेस विरोधी दलों के लिए राजनैतिक तिकड़मबाजी हो | लेकिन खुद कांग्रेस पार्टी के तीन चर्चित मुख्यमंत्रियों ने भी उनकी इस सलाह से किनारा कर लिया है | लंबा समय बीत जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल , राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष की इस नेक सलाह पर ना तो कोई टिप्पणी की और ना ही उसे जायज ठहराया | 

लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि सोनिया गाँधी की इस सलाह का कुछ हिस्सा खासतौर पर मीडिया पर होने वाला अनावश्यक व्यय पर पाबंदी क्या खुद कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री लगाएंगे ? दरअसल केंद्र सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लेकर आर्थिक कटौती जारी रखी है | केंद्र सरकार सोनिया गांधी की सलाह पर कितना अमल करती है , या इत्तेफाक रखती है , यह उसका आंतरिक मामला है | लेकिन बड़ा सवाल यह है कि अपनी पार्टी अध्यक्ष की सलाह पर कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री कितना भरोसा करते है | फ़िलहाल तो सोनिया गांधी की नेक सलाह को अमल में लाने के लिए तीनों राज्यों में से कोई भी मुख्यमंत्री सामने नहीं आया है |    

माना जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सलाह को मानते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सांसदों के वेतन भत्तों में 30 फीसदी से ज्यादा की कटौती कर दी है | लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष के पत्र पर मौन साध लेने के चलते यह चर्चा आम हो चली है कि सोनिया गांधी की सलाह खुद तीन बड़े राज्यों के मुख्यमंत्रियों के गले नहीं उतर रही है | 

हालांकि कोरोना संक्रमण कटौती प्रकरणों में सांसदों को अब निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और कार्यालय भत्ता के मद में मिलने वाली 27 हजार रूपये प्रति माह की राशि नहीं मिलेगी । सरकारी आदेश में यह बात सामने आई है । सांसदों के वेतन में पहले ही 30 प्रतिशत की कटौती की गई है जिससे उन्हें मिलने वाला वेतन एक लाख रूपये से घटकर अब 70 हजार रूपये हो गया है । नया आदेश सांसदों के वेतन में कटौती के अतिरिक्त लागू होगा । आदेश में कहा गया है कि संसद की संयुक्त समिति ने सरकार के साथ विचार विमर्श करके प्रत्येक सांसद को मिलने वाले निर्वाचन क्षेत्र भत्ते मे 30 प्रतिशत कटौती करने की सिफारिश की है ।

उधर सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में यह सुझाव भी दिया था कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रियों और नौकरशाहों के विदेश दौरों को स्थगित करने और सरकारी विज्ञापनों पर भी रोक लगाने की जरुरत है। सोनिया ने सांसदों के वेतन में 30 फीसदी की कटौती का समर्थन करते हुए कहा कि ‘पीएम केयर्स’ कोष की राशि को भी प्रधानमंत्री आपदा राहत कोष में हस्तातंरित किया जाए। फ़िलहाल देखना होगा कि कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी पार्टी अध्यक्ष की सलाह को कितना अमल में लाते है ?