क्या नक्सली मोर्चे पर सिर्फ लाशे गिनने का काम करेगी छत्तीसगढ़ सरकार ? सुकमा में सुरक्षा बलों पर नक्सली हमला सुनियोजित , आला अफसरों के मतभेद और ठप्प इंटेलिजेंस का भरपूर फायदा उठा रहे है नक्सली संगठन , जाने आखिर क्यों आग उगल रहा है नक्सलवाद  

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रायपुर / छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के गठन के बाद से नक्सली वारदातों में जरुर कमी आई है , लेकिन बड़े हमले कर नक्सली राज्य सरकार को जानमाल का नुकसान पंहुचा रहे है | इसके लिए नक्सली नहीं बल्कि पुलिस और सरकार के आला अफसरों की निष्क्रिय कार्यप्रणाली जिम्मेदार ठहराई जा सकती है | ताजा मामला सुकमा में हुए नक्सली हमले का है | शनिवार को इस हमले में 17 जवानों की शाहदत हो गई थी | जबकि दर्जन भर से ज्यादा जवान घायल हुए थे | रविवार को शहीद जवानों के शव बरामद कर लिए गए | सोमवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने दलबल के साथ सुकमा पहुंचे और उन्होंने नक्सलियों से दो दो हाथ करने वाले वीर जवानों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर अंतिम विदाई दी |

लेकिन इस घटना के पीछे नक्सिलयों के अलावा पुलिस और सरकार के आलाधिकारियों  की लापरवाही और निष्क्रिय कार्यप्रणाली जिम्मेदार बताई जा रही है | न्यूज टुडे छत्तीसगढ़ की टीम ने सुकमा , दंतेवाड़ा , बीजापुर और जगदलपुर में पुलिस ,सुरक्षा बलों और स्थानीय ग्रामीणों से नक्सली वारदातों को लेकर काफी चर्चा की | ग्राउंड जीरों से लेकर मैदानी इलाकों का जायजा लेने के बाद यह तथ्य सामने आया कि सम्पूर्ण बस्तर संभाग की हकीकत से मुख्यमंत्री और उनका सचिवालय कोसो दूर है | 

दरअसल मैदानी इलाकों में स्टेट पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच खाई खिंच चुकी है | तालमेल का भारी आभाव है |  मुठभेड़ के दौरान यदि केंद्रीय सुरक्षा बल नक्सलियों से लोहा ले रहे है , तो उनकी सहायता के लिए स्टेट पुलिस का मूवमेंट नहीं होता | यही हाल स्टेट पुलिस का है | जब वो नक्सलियों से दो दो हाथ करती है तब केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान उसकी मदद के लिए आगे नहीं बढ़ते | बताया जाता है कि सुकमा के मिनपा के पास जहां पुलिस नक्सली मुठभेड़ हुई थी , उससे महज एक डेढ़ किलोमीटर के दायरे में CRPF की कोबरा बटालियन का दस्ता मौजूद था | इस दस्ते में लगभग डेढ़ सौ जवान हथियारों और अन्य सुविधाओं से लैस थे | लेकिन उन्होंने डीआरजी और एसटीएफ की कोई मदद नहीं की | अलबत्ता मुठभेड़ खत्म होने के बाद जब स्टेट पुलिस का दस्ता अपनी जवानों की खोजबीन में जंगलों में उतरा , तब सेंट्रल फ़ोर्स हरकत में आई | 

दरअसल बस्तर में सीनियर अधिकारी की नियुक्ति ना होने का खामियाजा सरकार को भोगना पड़ रहा है | बस्तर रेंज प्रभारी डीआईजी के हवाले है | जबकि इस इलाके में केंद्रीय सुरक्षा बलों के भी लगभग दर्जन भर डीआईजी पदस्थ है | बस्तर रेंज में पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के लगभग एक लाख जवानों की तैनाती के बावजूद राज्य सरकार ने आईजी अथवा इससे सीनियर अधिकारी की नियुक्ति को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई | गौरतलब है कि लगातार नक्सली हमलों के चलते वर्ष 2007 में कांग्रेस ने तत्कालीन बीजेपी सरकार की विधानसभा में बखियां इसलिए उधेड़ी थी कि उसने वहाँ सीनियर अधिकारी के बजाये डीआईजी को प्रभार दे रखा है | फ़िलहाल यही 2007 की स्थिति नक्सली मोर्चे पर 2020 में बन गई है | 

सुकमा नक्सली हमले ने नक्सली इंटेलिजेंस की पोल भी खोलकर रख दी है | बताया जाता है कि नक्सली जमावड़े की कोई पुख्ता सूचना अधिकारियों के पास नहीं थी | सामान्य इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर स्टेट पुलिस फोर्स नक्सलियों के ठिकाने पर ऑपरेशन के लिए बढ़ गया था | जानकारी के मुताबिक नक्सली इंटेलिजेंस के लिए राज्य सरकार प्रतिमाह करोड़ों रूपये खर्च करती है | इसके बावजूद उसका सूचना तंत्र इतना कमजोर है कि ना तो उसे नक्सली मूवमेंट की जानकारी मिल पाती है और ना ही मैदानी  हकीकत से सरकार रूबरू हो पाती है | यह भी जानकारी प्राप्त हुई कि इंटेलिजेंस एकत्रित करने को लेकर मैदानी अमले पर किया जाने वाला व्यय कई महीनों से अप्राप्त है | नतीजतन पुलिस के संपर्क सूत्र भी अपने आंख कान बंद किये हुए है | कई अफसरों का कहना है कि नई सरकार के सत्ता में आने के बाद इंटेलिजेंस एकत्रित करने को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है | इसका सीधा फायदा नक्सलियों और अपराधियों को मिल रहा है |  

बस्तर संभाग के विभिन्न हिस्सों में एक बार फिर उन तत्वों ने अपनी जड़े जमा ली है , जो ना केवल नक्सलियों का समर्थन करते है , बल्कि उनके लिए उपयुक्त संसाधनों को भी मुहैया कराने के लिए तन मन धन से सहयोग करते है | बस्तर से लेकर रायपुर और दिल्ली तक ऐसे तत्वों का सुनियोजित नेटवर्क है | इलाके में नक्सली हिंसा का विरोध करने वाले ग्रामीणों ने उन तत्वों को खदेड़ दिया था | लेकिन पिछले 6-8 माह से ऐसे तत्वों ने फिर यहां डेरा डाला हुआ है | ये तत्व नक्सलियों के लिए उनकी खोई हुई जमीन तैयार करने का कार्य कर रहे है |    

सुकमा में इतने बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए पुलिस मुख्यालय से किसी भी सीनियर अधिकारी को मौके पर नहीं भेजा गया | जबकि ऐसे किसी भी बड़े नक्सली ऑपरेशन की सूचना पुलिस मुख्यालय को भेजी जाती है | आखिर क्यों यह चूक बरती गई , यह जानकारों की समझ से परे है | जानकारों के मुताबिक इस ऑपरेशन को लेकर केंद्रीय सुरक्षा बलों को भी विश्वास में नहीं लिया गया था | आखिर क्यों ?

जानकारी के मुताबिक नक्सलियों के जमावड़े की सूचना पुलिस को काफी पहले मिल चुकी थी | सूचना में कभी 300 तो कभी 500 नक्सलियों के एकत्रित होने की जानकारी थी | लिहाजा एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने से पहले आखिर क्यों उसे गंभीरता से नहीं लिया गया | अस्पताल में भर्ती घायल जवान बता रहे है कि उन्होंने मुठभेड़ स्थल के करीब भारी तादाद में नक्सली और उनके समर्थकों का जमावड़ा देखा था |  

सुकमा जिले के चिंतागुफा थाना के कसालपाड़ और मीनपा के बीच हुए इस खूनी संघर्ष में सरकार को जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा है | हमारे 17 जवान शहादत को प्राप्त हुए | यही नहीं नक्सलियों ने जवानों से UBGL समेत 15 एके-47  एसाल्ट रायफलों समेत कई अत्याधुनिक हथियार लूट लिए | सुकमा पहुंचकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शहादत को व्यर्थ ना जाने देने का संकल्प लिया है | उन्होंने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए नक्सली हमले की तीखी निंदा की है | लेकिन जब पुलिस की रणनीति में ही खोट है ,  तो ऐसे में कैसे नक्सलवाद का दंश समाप्त होगा |