बिलासपुर / छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित एक हजार करोड़ से ज्यादा के NGO घोटाले में राज्य शासन की ओर से दलील पूरी हो चुकी है | महाधिवक्ता अनुसार, शासन ने माननीय अदालत को स्पष्ट किया कि, राज्य शासन किसी कथित भ्रष्टाचारी को बचाने के पक्ष में बिलकुल नहीं है। राज्य शासन केवल इतनी प्रार्थना करना चाहता है कि, प्रदेश की निष्पक्ष व सक्षम जांच एजेंसी (पुलिस/EOW/ACB) से जांच करवाई जाए, जिसकी मानिटरिंग स्वयं माननीय अदालत करे।
महाधिवक्ता, की ओर से ये भी स्पष्ट किया गया कि, उन्हें राज्य शासन से स्पष्ट निर्देश थे कि, माननीय न्यायालय द्वारा पारित आदेश को स:सम्मान ध्यान में रखते हुए, इस बाबत् शासन का पक्ष रखा जाए। महाधिवक्ता ने दोहराया कि, राज्य शासन की प्राथना थी कि, जब राज्य में निष्पक्ष व सक्षम जांच एजेंसियां मोजूद हैं तो, प्रकरण की जांच माननीय न्यायालय की सतत् नीगरानी में उक्त एजेंसियों को सौंपी जा सकती है।
महाधिवक्ता ने आगे बताया कि, राज्य शासन, जो माननीय न्यायालय के आदेश का पूर्ण सम्मान करती है, को भी अपना आग्रह/पक्ष प्रस्तुत करने का पूरा अधिकार है। महाधिवक्ता ने ये भी बताया कि, राज्य शासन का स्पष्ट रूख है कि, इस सरकार में, सिद्ध भ्रष्टाचारियों/कदाचारियों को संरक्षित करने का खेल नहीं खेला जाएगा, तथा महाधिवक्ता कार्यालय इसी नीति पर अडिग हो कार्यरत है। यह पूछने पर कि, शासन आरोपित व्यक्तियों पर क्या कार्यवाही करेगा, तो महाधिवक्ता ने बताया कि, फिलहाल न तो माननीय न्यायालय ने किसी को नामजद कर आरोपित किया है और न ही CBI ने दर्ज अपराध में किसी को फिलहाल आरोपी बनाया है। उनका कहना था कि, जब तक कोई आरोपी जांच तथा न्यायालीन कार्यवाही में दोषी नहीं पाया जाता है, तब तक देश की न्याय व्यवस्था उसे अपराधी ठहराने का अधिकार किसी को नहीं देती है। महाधिवक्ता का कहना था कि, माननीय न्यायालय यदि राज्य शासन के आग्रह को अस्वीकार भी करती है तो, सदा की ही तरह शासन, माननीय न्यायालय के आदेश का पूरा सम्मान करते हुए स:अक्षर पालन करेगा।