निर्भया के दोषी विनय और मुकेश की क्यूरेटिव याचिका खारिज, फांसी का रास्ता साफ , 22 को होगी फांसी

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दिल्ली वेब डेस्क /

सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में दोषी विनय शर्मा और मुकेश द्वारा दायर क्यूरेटिव पिटीशन (समीक्षा याचिका) को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा है कि दोषियों की पूर्व में दायर पुनर्विचार याचिका और क्यूरेटिव याचिका में खास अंतर नहीं है और इस याचिका में कोई ऐसी नई बात नहीं है जिसका संज्ञान लिया जाए।यह कहते हुए अदालत ने मुकेश और विनय की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी। दोषियों के पास अब राष्ट्रपति के पास दया याचिका का विकल्प बचा है, जिसमें फांसी की सजा को उम्रकैद की सजा में बदलने की अपील की जा सकती है।


न्यायमूर्ति एन वी रमणा, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ विनय शर्मा और मुकेश की ओर से दायर समीक्षा याचिका पर आज पौन दो बजे सुनवाई शुरू की। इसके लिए उन्होंने पांच मिनट का समय तय किया था। जस्टिस रमना के चेंबर में यह सुनवाई पूरी हुई और पांचों जजों ने याचिका को खारिज कर दिया।

क्यूरेटिव पिटीशन में दोषी विनय शर्मा ने कहा था कि अकेले याचिकाकर्ता को दंडित नहीं किया जा रहा है, बल्कि आपराधिक कार्यवाही के कारण उसका पूरा परिवार अत्यंत पीड़ित हुआ | परिवार की कोई गलती नहीं, फिर भी उसे सामाजिक प्रताड़ना और अपमान झेलना पड़ा है | वहीं, वकील एपी सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता के माता-पिता वृद्ध और अत्यंत गरीब हैं | इस मामले में उनका भारी संसाधन बर्बाद हो गया और अब उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा है | 

इससे पहले पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया गैंगरेप केस के चारों दोषियों का डेश वारंट जारी किया था | कोर्ट ने इस मामले में चार दोषियों को 22 जनवरी की सुबह सात बजे फांसी देने का समय तय किया है | बीते दिनों तिहाड़ जेल में डमी ट्रायल भी हुआ | दोषियों को उत्तर प्रदेश का पवन जल्लाद फांसी के फंदे पर लटकाएगा | 

16 दिसंबर, 2012 को निर्भया के साथ बेहरमी से गैंगरेप किया गया था |  इलाज के दौरान निर्भया की मौत हो गई थी | इसके बाद सभी छह आरोपियों को गिरफ्तार कर दुष्कर्म और हत्या का मामला दर्ज किया गया था | आरोपियों में से एक नाबालिग था, जोकि एक किशोर (जुवेनाइल) अदालत के सामने पेश किया गया | वहीं एक अन्य आरोपी ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी | बाकी बचे चार दोषियों को सितंबर 2013 में एक ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी और मार्च 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा | इसके बाद मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सजा में कोई बदलाव नहीं किया और अदालत ने दोषियों की पुनर्विचार याचिकाओं को भी खारिज कर दिया |