अशोक नायडू
वेब डेस्क दिल्ली / रायपुर छत्तीसगढ़ समेत आधा दर्जन आदिवासी बाहुल्य इलाकों में नक्सलियों ने पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों पर हमला करने के लिए मुर्गा लड़ाई प्रतियोगिताओं को अपना हथियार बनाने की तैयारी की है | आदिवासी इलाकों में मुर्गा लड़ाई का खेल काफी लोकप्रिय है | पहाड़ी इलाकों से लेकर मैदानी इलाकों में निवासरत आदिवासी हाट बाजारों और गांव कस्बों के मुख्य मार्गों पर अक्सर मुर्गा लड़ाई के खेल में भाग्य आजमाते देखे जा सकते है | मुर्गा लड़ाई की लोकप्रियता और आकर्षण के चलते सिर्फ राहगीर ही नहीं बल्कि पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान भी इस खेल को देखने में जुट जाते है | उनकी तल्लीनता का फायदा उठाकर नक्सली उन पर घात लगाकर हमला कर देते है | छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों ने कई ऐसी घटना को अंजाम भी दिया है | लिहाजा आईबी ने अलर्ट जारी कर कहा है कि आदिवासी इलाकों के हाट बाजार में मुर्गा लड़ाई देखने के लिए न रुकें जवान ,नक्सली मौके का फायदा उठाकर हमला कर सकते है | हालांकि इन इलाकों में पशु क्रूरता अधिनियम के तहत मुर्गा लड़ाई पर पाबंदी लगी है | बावजूद इसके इस कानून का पालन करवाने में सरकारी अमला नाकामयाब रहा है |
इंटेलिजेंस ब्यूरो ने छत्तीसगढ़ ,झारखंड ,महाराष्ट्र ,बिहार समेत उन तमाम राज्यों को अलर्ट जारी किया है जहां नक्सली सक्रिय है | IB ने जवानों और अधिकारीयों से कहा है कि वह नक्सल प्रभावित क्षेत्र के साप्ताहिक हाट बाजार में होने वाली मुर्गा लड़ाई से दूरी बनाए रखें | क्योंकि नक्सली भीड़ में मौके का फायदा उठाकर उन्हें निशाना बना सकते है | सुरक्षाबलों को आगाह किया गया है कि वे ना तो समूह में और न ही अकेले इसे देखने जाएं |
दरअसल जनवरी में आसमान साफ़ होने और मौसम खुलने के बाद जंगलो में विजिबिल्टी बढ़ जाती है , तब नक्सली ज्यादा सक्रिय हो जाते है | वे सुरक्षाबलों पर हमले के लिए नित नए हथकंडे अपनाते रहते हैं | अलर्ट में कहा गया है कि नक्सल प्रभावित सभी क्षेत्रो में मुर्गा लड़ाई बेहद लोकप्रिय है | इसे देखने के लिए 50 -60 किमी दूर से ग्रामीण हाट बाजार आते हैं | हालांकि ,सरकार ने पशु अत्याचार अधिनियम 1960 के तहत मुर्गा लड़ाई पर पाबंदी लगा दी है |
सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि तमाम आदिवासी बाहुल्य राज्यों में मुर्गा लड़ाई आदिवासी संस्कृति का हिस्सा है | इसमें स्पर्धा के दौरान मुर्गे की हार -जीत पर दांव भी लगाया जाता है | दांव में नकद रकम और शराब का लेनदेन भी होता है | यह खेल तब तक चलता है जब तक कोई एक मुर्गा मारा ना जाये या फिर पस्त नहीं हो जाता | जो मुर्गा हारता है , वह जीतने वाले मुर्गे के मालिक के कब्जे में दे दिया जाता है | आमतौर पर जनवरी से मानसून आने तक साप्ताहिक बाजार में मुर्गा लड़ाई को लेकर काफी रौनक रहती है | दर्शकों में स्थानीय ग्रामीणों के अलावा सरकारी अधिकारी और सुरक्षाकर्मी बाजार में आते -जाते रहते है | वो भी इसे देखने में जुट जाते है |अलर्ट में हाट बाजार के आसपास सभी संदिग्ध चीजों की जांच सुनिशिचत करने के निर्देश दिए गए है | यह भी कहा गया है कि मुर्गी लाने वाले वाहनों की खासतौर पर जांच करें | क्योंकि छोटे हथियार और गोला -बारूद की तस्करी के लिए ऐसे वाहन इस्तेमाल किए जाते हैं | स्थानीय ख़ुफ़िया और अन्य सुरक्षा बलों को इन बाजारों में आने वाले संदिग्धों पर नजर रखने के लिए कहा गया है |
छतीसगढ़ में बस्तर के दंतेवाड़ा ,सुकमा और झारखंड के गुमला में नक्सली मुर्गा लड़ाई के दौरान मुखबिरों और जवानों को निशाना बना चुके है | वो ऐसे मौकों पर अक्सर घात लगाकर हमला करते है | साप्ताहिक हाट बाजारों में मुर्गे लड़ाई में करीब 500 से 1000 लोग घिरे रहते है | इस दौरान सुरक्षाबलों को वर्दी या सिविल ड्रेस में आसानी से पहचानकर हमला कर देते है | 2012 में नक्सलियों ने इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ के नारायणपुर के बाजार में दो जवानो की गला रेतकर हत्या कर दी थी | 2015 में नकुलनार में फायरिंग कर दो लोगो की हत्या कर दी गई थी | छत्तीसगढ़ में इस अलर्ट को पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों ने काफी गंभीरता से लिया है |