
रायपुर | आमतौर पर पुलिस न्यायालय में विचाराधीन मामलो पर तब तक हस्ताक्षेप नहीं करती जब तक की अदालत उसे निर्देशित ना करे | यही नहीं असगेंय अपराधों और सिविल मामलो को लेकर अक्सर पुलिस थाने से पीड़ितों को जांच अधिकारी एक पत्र पकड़ा देते है ,इसमें पुलिस हस्ताक्षेप अयोग्य अपराध की इबारत दर्ज होती है | लेकिन पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में एडीजी स्तर के विवादित अधिकारी मुकेश गुप्ता के निर्देश पर रायपुर जिले की पंडरी थाना पुलिस ने दबाव में आकर पीड़ितों को राहत देने के बजाए उनके खिलाफ ही चार सौ बीसी का प्रकरण ही दर्ज कर दिया | सूर्यकांत तिवारी के खिलाफ चेक बाउंस के दो अलग -अलग मामले रायपुर की जिला अदालत में लगभग डेढ़ साल से विचाराधीन थे | इन मामलो और उनके तथ्यों को दरकिनार कर पंडरी थाने के तत्कालीन प्रभारी ने दोनो ही पीड़ितों एन के अग्रवाल और गुरमुख सिंह आत्मज गुरुचरण सिंह के खिलाफ 20/09/2017 को अपराध क्रमांक 278/17 धारा 420,34 के तहत दो अलग-अलग मामले दर्ज किए | इस दिनांक से एन के अग्रवाल का प्रकरण जिला अदालत में लगभग डेढ़ साल से और गुरमुख सिंह आत्मज गुरुचरण सिंह का मामला लगभग छह माह से अदालत में विचाराधीन था | दोनों ही प्रकरणों के अदालत में विचाराधीन होने के बावजूद आखिर किसके निर्देश पर पीड़ितों के खिलाफ FIR दर्ज की गई ? यह जाँच का विषय है |
गौरतलब है कि चेक बाउंस होने के बाद दोनों ही पीड़ितों ने सूर्यकांत तिवारी के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करने के लिए तत्कालीन पुलिस अधिकारियों के समक्ष गुहार लगाई थी | लेकिन इस दौरान सूर्यकांत तिवारी के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए पुलिस ने पीड़ितों को अदालत का दरवाजा खटखटाने का फरमान जारी कर दिया | पीड़ित एन के अग्रवाल ने बताया कि गंगा कंस्ट्रशन की ओर से उन्हें कुल पंद्रह लाख का चेक प्राप्त हुआ था | उनके मुताबिक सूर्यकांत तिवारी को भेजे गए माल का पूरा विवरण उनकी आयकर विवरणी में भी दर्ज है | उन्होंने बताया कि भुगतान से बचने के लिए सूर्यकांत तिवारी ने पहले उनके निलंबित टिन नंबर पर आपत्ति की फिर रोज नए -नए बहाने गढ़ने लगे | एक अन्य पीड़ित गुरमुख सिंह आत्मज गुरुचरण सिंह के मुताबिक उन्होंने भी बाकायदा नियमो के मुताबिक गंगा कंस्ट्रशन को सामानो की आपूर्ति की थी | इसके उपरांत ही उन्हें चेक जारी किया गया था | दोनों ही पीड़ितों की दलील है कि भुगतान से बचने के लिए सूर्यकांत तिवारी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और पुलिस अधिकारियों से सांठ गांठ कर उनके खिलाफ गलत तरीके से FIR दर्ज करवाई | पीड़ितों ने यह भी बताया कि उनके खिलाफ FIR दर्ज करने से पूर्व ना तो पुलिस ने उनसे कोई संपर्क किया और ना ही इस संबध में कोई दस्तावेजों की मांग की | गौरतलब है कि अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए दोनों ही पीड़ितों ने स्थानीय पुलिस थाने में कई दस्तावेजी प्रमाण सौपे है |
दोनों ही पक्षों की शिकायतों की गहन जांच के उपरांत तत्कालीन जांच अधिकारियों ने दोनों ही पीड़ितों एन के अग्रवाल और गुरमुख सिंह आत्मज गुरुचरण सिंह के द्वारा पेश तथ्यों और दस्तावेजी प्रमाणों में ना तो दोष और ना ही धोखाधड़ी पाई | इस जांच से क्या साबित होता है ,यह विवेचना में शामिल है | इस प्रकरण की विवेचना को स्थानीय पंडरी थाने द्वारा अदालत को सौप दिया गया है | दोनों ही पीड़ित पुलिस को गुमराह करने ,झूठी FIR दर्ज करवाने और उनके साथ धोखाधड़ी करने के तथ्यों के आधार पर सूर्यकांत तिवारी के खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग कर रहे है |
उधर इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए सूर्यकांत तिवारी की दलील है कि उनकी शिकायत के आधार पर दोनों ही आरोपियों के खिलाफ चार सौ बीसी का प्रकरण दर्ज किया गया था | उन्होंने न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ को FIR की प्रतिलिपि और इस बाबत पुलिस में प्रेषित शिकायतों की प्रतिलिपि भेजी है | उनका दावा है कि आरोपियों के खिलाफ उनकी शिकायते सही है | बहरहाल इस मामले में दाल में कुछ काला है या पूरी दाल ही काली है ,आलाधिकारियों के लिए इसे परखना गौरतलब होगा | उन्हें लोक लुभावनी तस्वीरों के मनोविज्ञान को भी समझाना होगा |
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