
रायपुर : DSP कल्पना वर्मा और दीपक टंडन विवाद अब नई सुर्खियां बटोर रहा है। पुलिस थानों से लेकर सोशल मीडिया में दीपक टंडन डिजिटल सबूतों के आधार पर DSP कल्पना वर्मा पर पद एवं प्रभाव के दुरूपयोग से लेकर धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग और महादेव ऑनलाइन सट्टा एप्प पैनल कनेक्शन से जुडी कई चैट कई डिजिटल, दस्तावेजी सबूतों के साथ उजागर भी कर रहा है।

यही नहीं, पीड़ित परिजनों द्वारा थाना खम्हारडीह एवं थाना पंडरी रायपुर में विगत 2 माह पूर्व एक लिखित शिकायत 09/09/2025 की गई थी। इस मामले में DSP कल्पना वर्मा के परिजनों ने भी पुलिस से शिकायत कर अपनी गुहार लगाई थी। स्थानीय थानों ने प्रकरण की जाँच निर्धारित अवधि में नहीं की थी। बल्कि, अब जानकरी सामने आ रही है, कि अलबत्ता मीडिया में मामले के तूल पकड़े जाने के बाद आनन-फानन में बगैर जाँच पड़ताल किए ही पुलिस ने मामले से खुद को अलग कर लिया है।

रायपुर पुलिस द्वारा एक हवलदार के जरिये फेना काट कर दिनांक 11/12 /2025 को पीड़ित दीपक टंडन के परिजनों को व्हाट्सप्प पर सूचित किया गया। एक DSP स्तर की पुलिस अधिकारी की जाँच उससे वरिष्ठ अधिकारी से ना करा कर कनिष्ट पुलिस अधिकारी से कराने के मामले से रायपुर पुलिस सवालों के घेरे में बताई जाती है। उनकी शिकायत पर अब उन्हें न्यायालय में जाने के लिए निर्देशित कर दिया गया है। पीड़ितों के मुताबिक स्थानीय थाने से फेना काट कर सूचित किए जाने से स्थानीय पुलिस की लीपा-पोती सामने आ गई है। पीड़ितों ने यह भी साफ़ किया है, कि उन्होंने पूरे मामले से आईजी रायपुर रेंज अमरेश मिश्रा को अवगत कराया है। उनके मुताबिक, DSP स्तर के अधिकारी पर लगे गंभीर आरोपों की जाँच थाना प्रभारी या DSP से उच्च स्तर के अधिकारी से कराने के बजाए हवलदार पुलिस कर्मी से कराना हैरानी भरा कदम है।
छत्तीसगढ़ में DSP कल्पना वर्मा पर कई गैर कानूनी गतिविधियों में लिप्त होने के गंभीर आरोप लगे है। इसकी शिकायत पीड़ितों ने डिजिटल और अन्य सबूतों के साथ स्थानीय थानों को सौंपे थे। जानकारी के मुताबिक , शिकायत में कई मामले पूरी तरह से आपराधिक दायरे में बताये जाते है। यह भी स्पष्ट हुआ है, कि DSP कल्पना वर्मा प्रकरण की जाँच के दौरान रायपुर पुलिस द्वारा ना तो दोनों ही पक्षों के शिकायतकर्ताओं से कानूनी रूप से पेश आई और ना ही जाँच को लेकर गंभीरता दिखाई गई। जानकारी के मुताबिक, शिकायतकर्ता को भी जाँच के दौरान वैधानिक रूप से उपस्थित होने संबंधी कोई सूचना भी नहीं दी गई और मामला पुलिस अहस्तांतरण योग्य पाया गया। पीड़ितों के मुताबिक बरखा टंडन के मालिकाना हक़ वाली कार क्रमांक CG-04/PA -0486 वाहन की सुपुर्दगी किए बगैर प्रकरण को सिविल मैटर करार देने से इंसाफ दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। उनके मुताबिक, मामले के रफा- दफा किए जाने के आसार को देखते हुए रायपुर रेंज के आईजी से न्याय की गुहार लगाई गई है।
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पुलिस का फेना आखिर क्या होता है ?
पुलिस में “फेना ” शब्द थानों की शाब्दिक भाषा है, यह संभवतः FIR का गलत उच्चारण से भी जोड़कर देखा जाता है। इसे शिकायत के रूप में लिखित दस्तावेज प्राप्त होने पर जाँच प्रकिया के हिस्से के रूप में देखा जाता है, जिसके बाद पुलिस कानूनी तौर पर जांच शुरू करती है। जब कोई व्यक्ति अपराध का शिकार होता है, तो वह पुलिस को घटना के बारे में बताता है (मौखिक या लिखित).इसमें शिकायतकर्ता द्वारा घटना की जानकारी दी जाती है और SHO या थाना प्रभारी,ड्यूटी ऑफिसर उसे बतौर FIR दर्ज करता है, फिर सबूत जुटाए जाते हैं। सबूतों और अपराधों के मद्देनजर पुलिस प्रकरण को प्रथम सूचना रिपोर्ट (First Information Report – FIR) के रूप में लेती है,या फिर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला बता कर शिकायतकर्ता से पल्ला झाड़ लेती है। आमतौर पर इसी दस्तावेज को फेना कहा जाता है। जबकि FIR, में किसी संज्ञेय अपराध (जैसे चोरी, डकैती, मारपीट) की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा दर्ज किया जाने वाला पहला लिखित दस्तावेज़ है,और इसमें आरोपी की गिरफ्तारी हो सकती है, या जांच के बाद पुलिस चार्जशीट (Challan) दाखिल करती है।

DSP कल्पना वर्मा का जलवा-ए-जलाल –
DSP कल्पना वर्मा के कई प्रभावशील आईपीएस अधिकारियों से प्रगाढ़ संबंध बताये जाते है। इसके चलते पीड़ितों के लिए न्याय की उम्मीद टेडी खीर के रूप में नजर आ रही है। DSP कल्पना वर्मा बनाम दीपक टंडन मामला धोखाधड़ी, ब्लैकमेलिंग समेत आर्थिक अपराधों के दायरे में बताया जाता है। प्यार के भंवर जाल, कारोबार एवं पुलिस की आदर्श आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ने जैसे मामले जहाँ सार्वजनिक है, वही पुलिस का फेना, अपनी जिम्मेदारियों से ही मुंह छिपाते नजर आ रहा है। इससे पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवालियां निशान लग गया है। देखना गौरतलब होगा, कि फेना क्या रंग दिखाता है।






