रायपुर : – छत्तीसगढ़ में GST की दरों पर भारी गिरावट के दावों के साथ एलान किया जा रहा है कि अब आम जनता को घर बनाना आसान हो जाएगा, भवन निर्माण सामग्री सस्ती हो गई है, लेकिन सरकार के इस दावे की पोल उसके ही महकमे खोल रहे है। ऐसे ठिकानो में GST दरों में आई गिरावट का कोई असर नहीं देखा जा रहा है। यहाँ न तो भवन निर्माण की लागत कम हुई है, और न ही राज्य सरकार की ओर से बजट आवंटन भी कम किया गया है, पर्याप्त राशि स्वीकृत किये जाने के बावजूद 4 मेडिकल कॉलेजों के निर्माण का बजट मात्र 3 कॉलेजों तक ही सिमटा दिया गया है। दावा किया जा रहा है कि दंतेवाड़ा के लिए स्वीकृत बजट कमीशनखोरी की भेंट चढ़ गया है। ठेकेदार और अफसरों की टुकड़ी अतिरिक्त धन के लिए NMDC की ओर निहार रही है।

छत्तीसगढ़ में सरकारी मेडिकल कॉलेजों की मंजूरी और बजट आवंटन के बावजूद 4 के बजाय 3 मेडिकल कॉलेज के निर्माण का मामला नए घोटाले की ओर कदम बढ़ा रहा है। राज्य सरकार ने कवर्धा, जांजगीर – चांपा, मनेद्रगढ़ और दंतेवाड़ा में मेडिकल कॉलेज के निर्माण के लिए 1,077 करोड़ का बजट आवंटन किया था। लेकिन चलनशील अफसरों ने ऐसा प्लान तैयार किया कि यह रकम 3 मेडिकल कॉलेजों के निर्माण तक ही सीमित कर दी गई है, नतीजतन दंतेवाड़ा में मंजूरी के बावजूद नया मेडिकल कॉलेज अस्तित्व में नहीं आ पायेगा। दरअसल, GST दरों के कम होने के बावजूद सरकार के निर्माण कार्यो में लागत का ग्राफ कम होने या नीचे आने के बजाय ऊपर की ओर जा रहा है।

केंद्र सरकार दावा कर रही है कि GST दरें कम होने से अब घर बनाना आसान हो जायेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ में सरकारी सेक्टर में निर्माणाधीन भवन की लागत में कमी ना आने का कारण जनता को हैरानी हो रही है। इस बीच खबर आ रही है कि दंतेवाड़ा में नए मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के लिए ठेकेदारों ने सत्ता के कर्णधारो को सेट तो कर लिया है, लेकिन 300 करोड़ की लागत समायोजित करने के लिए NMDC की ओर गुगली उछाल दी है। यह भी बताया जा रहा है कि केंद्र की ओर से प्राप्त सहायता राशि की बंदरबाट को थामे रखते हुए दंतेवाड़ा में प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज की लागत NMDC से वसूलने के लिए राजनैतिक तिकड़में भी भिड़ाई जा रही है। जबकि निर्माण एजेंसी CGMSC के पास 4 मेडिकल कॉलेजों के निर्माण के लिए 1,077 करोड़ का पर्याप्त बजट उपलब्ध है।

छत्तीसगढ़ में GST की दरों में भारी कमी के केंद्र सरकार के दावों की पोल राज्य सरकार का ख़ास संस्थान CGMSC का महकमा ही खोल रहा है। इस महकमें के चलनशील अधिकारियों ने एक ठेकेदार विशेष को फ़ायदा पहुचाने के लिए सुनियोजित और अपारदर्शी टेंडर – निविदा जारी की थी। इसमें सामान्य लागत से 25 फ़ीसदी अधिक दरों पर मेडिकल कॉलेज निर्माण के DPR स्वीकृत कर लिए गए थे। यह भी बताया जा रहा है कि अधिकतम दरों पर निर्माण ठेके बीजेपी के एक नेता को उस वक्त सौंपे गए थे, जब GST दरें परिवर्तित नहीं की गई थी। इस दौरान ही विभिन्न सरकारी महकमों में निर्माण एजेंसियों के ठेकों में मूल लागत के 25 फीसदी गिरावट दर्ज की गई थी। इससे सरकार की बचत सुनिश्चित हो रही थी। जबकि प्रदेश का एकमात्र सरकारी संस्थान CGMSC इसी दौर में 25 फीसदी अधिक दरों पर मेडिकल कॉलेज निर्माण के ठेकों को हरी झंडी प्रदान कर रहा था।

सूत्र तस्दीक करते है कि विभागीय कमीशन की दरों पर कटौती करने के बजाय CGMSC के चलनशील अफसरों और ठेकेदारों ने दंतेवाड़ा में मेडिकल कॉलेज निर्माण के लिए NMDC की ओर झोली फैला दी है। हालांकि NMDC इसके लिए राजी होता है या नहीं ? यह भी बड़ा मुद्दा है, जानकारों के मुताबिक दंतेवाड़ा में प्रस्तावित निर्माण के लिए केंद्रीय सहायता की लगभग 175 करोड़ की रकम राज्य की तिजोरी में समा चुकी है।

फ़िलहाल, दंतेवाड़ा के जागरूक प्रतिनिधि प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज निर्माण के लिए विभिन्न फोरम में दस्तक दे रहे है। उनकी शिकायत है कि सिर्फ कमीशनखोरी पर लगाम लग जाने से प्रदेश में एक साथ 4 मेडिकल कॉलेज तय समय पर अस्तित्व में आ जायेंगे और इसके लिए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और वित्त मंत्री ओपी चौधरी बजट में पर्याप्त 1,077 करोड़ की राशि आवंटित कर चुके है। उनके मुताबिक GST दरों में भारी गिरावट के बावजूद अधिकतम दरों में निविदा – टेंडर स्वीकृत करने का मामला एक बड़े घोटाले की ओर बढ़ रहा है। फ़िलहाल, नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा अपने अधिकारों की मांग को लेकर माथापच्ची के दौर में है। उसे उम्मीद है कि राज्य सरकार नए सिरे से पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया जारी कर सरकारी तिजोरी से होने वाले अपव्यय पर लगाम लगाएगी।
