भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा रणनीति के तहत पिछले दो दशकों में रूस की कई बड़ी तेल और गैस परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है। इस निवेश से मिलने वाला डिविडेंड सुरक्षित है, लेकिन पिछले तीन साल से भारतीय कंपनियां इस रकम को देश में वापस नहीं ला पा रही हैं। इसका मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते पेमेंट चैनल में रुकावट है।
भारतीय कंपनियों का निवेश
जानकारी के अनुसार, भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने रूस की परियोजनाओं में अब तक 6 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
- ओएनजीसी विदेश (OVL) की सबसे बड़ी हिस्सेदारी सखालिन-1 और वेंकोर परियोजनाओं में है। अकेले OVL का करीब 400 मिलियन डॉलर डिविडेंड रूस में फंसा है।
- इसके अलावा, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC), ऑयल इंडिया (OIL) और बीपीआरएल की हिस्सेदारी करीब 1 अरब डॉलर तक पहुंचती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध और भुगतान बाधाएँ
फरवरी 2022 में युद्ध शुरू होने के बाद हालात जटिल हो गए। कई रूसी बैंकों को SWIFT सिस्टम से बाहर कर दिया गया और डॉलर में निकासी पर रोक लगी। इससे डिविडेंड को भारत लाना लगभग असंभव हो गया।
भारतीय कंपनियों का यह फंसा पैसा मॉस्को स्थित कमर्शियल इंडो बैंक लिमिटेड (CIBL) में रूबल में रखा गया है। इसे सीधे भारत लाना या निवेश में इस्तेमाल करना फिलहाल मुश्किल है।
भारत में विकल्प तलाशने की कोशिश
कंपनियों और सरकार ने कोशिश की कि यह रकम रूस में ही इस्तेमाल हो, जैसे नई परियोजनाओं में निवेश करना या मौजूदा प्रोजेक्ट्स पर खर्च करना। लेकिन ज्यादातर परियोजनाएं अब अपने बड़े पूंजीगत खर्च (Capex) दौर से गुजर चुकी हैं।
- OVL का मामला अपवाद है, जिसे सखालिन-1 प्रोजेक्ट में 600 मिलियन डॉलर का भुगतान करना है, लेकिन डॉलर पेमेंट की जटिलताओं के कारण मामला अटका हुआ है।
तेल भुगतान विकल्प भी जटिल
रूस से तेल खरीद के भुगतान में इस फंसी रकम का इस्तेमाल करना भी आसान नहीं है।
- IOC और BPCL रूस से तेल खरीदते हैं, लेकिन OVL और OIL ऐसा नहीं करते।
- निवेश SPVs के माध्यम से किए गए हैं, जो सिंगापुर जैसे देशों में पंजीकृत हैं।
- इससे पैसा भारत-रूस के बीच ही नहीं, बल्कि तीसरे देशों के अधिकार क्षेत्र में भी आता है।
आगे का रास्ता
मामला लगातार भारत और रूस की सरकारों के बीच उठाया जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म नहीं होता और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों में ढील नहीं आती, यह 1.4 अरब डॉलर भारत में नहीं आ पाएगा।
भारतीय कंपनियां अब अंतरराष्ट्रीय अकाउंटिंग और कानूनी विशेषज्ञों की मदद लेकर वैकल्पिक रास्ते तलाश रही हैं। फिलहाल, यह रकम भारत के बाहर ही सुरक्षित है, लेकिन इसका इस्तेमाल सीमित है।
