चंडीगढ़ : – हरियाणा और पंजाब में सोशल मीडिया का दखल तेजी से बढ़ रहा है, इससे कई सरकारी अधिकारियों के माथे पर बल पड़ गया है। दरअसल, कभी सरकारी योजनाओं में गड़बड़ी तो कभी अधिकारियो के आचरण को लेकर सजग एक पत्रकार के ईमेल से कई शीर्ष अधिकारी तनाव में आ गए है। पत्रकार महोदय को क्या जवाब दे ?इसे लेकर कई मौकों पर वे कभी हाथ मलते तो कभी सिर धुनते नजर आने लगे थे। ईमेल से इतना रायता फैला की मामला देश की शीर्ष अदालत तक जा पहुँचा। बावजूद इसके पत्रकार महोदय लोकतंत्र में सरकारी अधिकारियों की वैधानिक जिम्मेदारियों को लेकर अपना राग अलापते रहे। अब उनके ईमेल की दास्तान अदालत के गलियारों में भी सुनाई देने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने कल पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से पत्रकार प्रदीप शर्मा से जुड़े स्वतः संज्ञान मामले में नरमी बरतने को कहा है।

मामला 2023 में दिए गए आश्वासन के बाद भी शर्मा द्वारा 2023-25 के बीच 200 से अधिक ईमेल लिखने से जुड़ा है, जिनमें अधिकारियों और न्यायाधीशों पर आरोप लगाए गए थे। सिनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने बताया कि आदेश के बाद से शर्मा ने कोई सार्वजनिक पोस्ट नहीं की, केवल ईमेल भेजे। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ईमेल गोपनीय नहीं रह सकते और सुझाव दिया कि आगे से यदि शिकायत हो तो सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी जाए। कामत ने आश्वासन दिया कि शर्मा आगे ऐसा करेंगे और बिना शर्त माफी मांगने को तैयार हैं।

खंडपीठ ने दर्ज किया कि ईमेल सार्वजनिक डोमेन में नहीं डाले गए, फिर भी शर्मा undertakings देंगे कि भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे। इस शर्त पर हाईकोर्ट से कहा गया कि नरमी से देखते हुए कार्यवाही समाप्त करने का प्रयास करे। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को (रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से) पक्षकार बनाया। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि शर्मा को गुमराह किया गया है और कहा कि कभी उन्होंने न्यायिक अधिकारियों की अनियमितताओं पर अच्छे मुद्दे उठाए हैं, पर केवल बदनाम करने के लिए सिस्टम को निशाना नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने उनके बर्खास्त डीएसपी बलविंदर सेखों के साथ मंच साझा करने पर भी आपत्ति जताई। कामत ने माना कि यह गलत था और बताया कि ईमेल विवाद को लेकर शर्मा पहले जेल निरुद्ध भी रह चुके हैं। हालांकि इसके बाद उन्होंने कोई पोस्ट नहीं किया है।
