
दिल्ली : – बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ की आम जनता को आज भी एक स्थाई DGP और अदद चीफ़ सेकेट्री की जरुरत बनी हुई है। उनके अभाव के चलते शासन – प्रशासन को साधारण मामलों में भी जमकर माथा – पच्ची करनी पड़ रही है। एक ओर जहाँ कई मौंको पर प्रशासनिक गतिविधियां लचर साबित हो रही है, वही पुलिस तंत्र का भी बुरा हाल बताया जा रहा है। पीड़ित पुलिस कर्मियों के सैकड़ों प्रकरण न्याय का इंतजार कर रहे है, वही ज्यादातर थानों के सीसीटीवी ठप्प पड़े है। कैमरे अपने स्थानों पर लटके हुए है, नियमों के तहत उनके फुटेज की मांग करने वालों को न – उम्मीदी हाथ लग रही है। इसके चलते अब प्रकरणों को सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया है। छत्तीसगढ़ समेत देश के तमाम राज्यों में थानों और पुलिस महकमें में लगे सीसीटीवी कैमरों की सक्रियता को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के आसार है। पीड़ितों को सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध न कराने की शिकायतों को अदालत ने गंभीरता से लिया है। पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों के काम न करने के मामले में स्वत संज्ञान जनहित याचिका पर होने वाली सुनवाई काफी महत्वपूर्ण बताई जा रही है। दरअसल, अदालत ने 2018 में मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था।

जानकारी के मुताबिक आम जनता को पुलिस तंत्र की आम शिकायत ”सीसीटीवी बंद, नो फुटेज” से अब निज़ात मिलने के आसार बढ़ गए है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ में इस मामले की सुनवाई को लेकर गहमा – गहमी देखी जा रही है। देश के कई राज्यों में पुलिस आधुनिकीकरण में सालाना अरबो की रकम खर्च किये जाने के बावजूद आम जनता को पुलिस थानों से सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं कराये जा रहे है। ऐसे राज्यों में छत्तीसगढ़ का नाम अव्वल नंबर पर बताया जाता है। लिहाजा स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा कड़ी कार्यवाही के आसार जाहिर किये जा रहे है। शीर्ष अदालत ने मानवाधिकारों हनन पर रोक लगाने के लिए वर्ष 2018 में पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया था। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामले में संवेदनशीलता दिखाई है।

यह भी बताया जा रहा है कि कोर्ट ने 4 सितंबर को विभिन्न मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, हम ‘पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की कमी’ शीर्षक से स्वत: संज्ञान जनहित याचिका दर्ज करने का निर्देश दे रहे हैं, क्योंकि ऐसी खबरें आई हैं कि साल 2025 के शुरुआती सात-आठ महीनों में पुलिस हिरासत में करीब 11 मौतें हुई हैं। यह भी जानकारी सामने आई है कि कई राज्यों के DGP को अदालत तलब भी कर सकती है। वर्ष 2020 में शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को सीबीआई, ईडी और एनआईए सहित अन्य जांच एजेंसियों के कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरे और रिकॉर्डिंग उपकरण लगाने का निर्देश दिया था। लेकिन इस पर इतने वर्षो बाद भी अमल सुनिश्चित नहीं हो पाया। छत्तीसगढ़ में तो ऐसे प्रकरणों को लेकर पुलिस तंत्र का हाल – बेहाल बताया जाता है। प्रदेश का कोई भी जिला ऐसा नहीं है जहाँ स्थापित किये गए सीसीटीवी कैमरे शत – प्रतिशत सक्रीय है।

छत्तीसगढ़ में पुलिस आधुनिकीकरण योजना पर सिर्फ इसलिए पलीता लग रहा है क्योंकि बीजेपी शासित इस राज्य को लम्बे समय बाद भी न तो स्थाई DGP मिल पाया और न ही अदद चीफ सेकेट्री। इन दोनों ही महत्वपूर्ण पदों पर योग्य अफसर की तैनाती को लेकर नौकरशाही और पुलिस महकमे का जिम्मेदार धड़ा राज्य सरकार के रुख से लगातार दो – चार हो रहा है। छत्तीसगढ़ कैडर के कई अहर्ता प्राप्त IAS, IPS और IFS अफसर बीजेपी सरकार के पौने दो वर्ष के कार्यकाल से सदमे में बताये जाते है। ऐसे पीड़ित अफसरों का बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया है। प्रशासनिक मामलों के जानकारों के मुताबिक पूर्वर्ती कांग्रेस कार्यकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री भू – पे बघेल ने अपने विश्वासपात्र जिन अफसरों को महत्वपूर्ण महकमों के शीर्ष पदों की कुर्सी सौंपी थी, वे बीजेपी शासनकाल के लगभग पौने दो वर्षो के कार्यकाल में भी अपनी कुर्सी पर सुरक्षित काबिज़ बताये जाते है। ऐसे अफसरों के खिलाफ गंभीर शिकायतों के लंबित होने के बाद भी उन्हें आज पर्यन्त भी जस का तस काबिज़ रखा गया है। इस कड़ी में 1989 बैच के मौजूदा चीफ सेकेट्री को रिटायर होने के महीनो बाद भी ”एक्सटेंशन” के जरिये मलाईदार पद पर काबिज रखा गया है।

जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ में एक अदद चीफ सेकेट्री का इंतजार कई महीनो से किया जा रहा है। राज्य सरकार निवर्तमान रिटायर चीफ सेकेट्री की कार्यप्रणाली से इतनी गदगद है कि उसने कई वरिष्ठ और योग्य अफसरों को दरकिनार कर दिया है। प्रशासनिक मामलो के जानकार तस्दीक कर रहे है कि बीजेपी सरकार में चलनशील राजनेताओं का एक धड़ा अब की बार फिर भू -पे सरकार का नारा बुलंद कर रहा है। इसके लिए लगभग आधा दर्जन बेहतर ट्रैक रिकॉर्ड वाले आईएएस अफसरों को नजरअंदाज कर किसी जूनियर अधिकारी को चीफ सेकेट्री की कुर्सी सौंपने पर नए समीकरणों को बिठाया जा रहा है। जबकि पुलिस मुख्यालय में स्थाई DGP की नियुक्ति भी लगभग पौने दो साल से लटकी हुई है। बताया जाता है कि, इस महकमे में भी कांग्रेस कार्यकाल में नियुक्त DGP को यथावत बनाये रखने के लिए दो – दो बार एक्सटेंशन दिया गया था। बड़ी मुश्किल हालात से जूझते हुए बीजेपी सरकार ने मौजूदा कार्यकारी DGP की नियुक्ति आदेश जारी किये थे। लेकिन स्थाई DGP का आदेश साल भर से अब तक लटका बताया जाता है।

यह भी बताया जाता है कि कांग्रेस कार्यकाल में नियुक्त पूर्वर्ती रिटायर DGP को बीजेपी सरकार ने लम्बे समय तक यथावत बनाये रखा था, विपरीत परिस्तिथियों में मौजूदा कार्यकारी DGP के आदेश जारी किये गए थे। लेकिन उनकी स्थाई नियुक्ति का प्रकरण लम्बे समय से शासन के दरबार में लंबित बताया जाता है। वरिष्ठ DG गुरजिंदर पाल सिंह की नियुक्ति के बावजूद यथोचित कार्यभार न सौंपे जाने का मामला भी छत्तीसगढ़ शासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह बन गया है। 1994 बैच के वरिष्ठ आईपीएस GP सिंह का नाम प्रदेश के अनुशासनप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियो में गिना जाता है। भ्रष्टाचार में लिप्त पूर्वर्ती भू – पे सरकार की रवानगी और घोटालों की फेहरिस्त की जाँच को लेकर उनका नाम सुर्खियों में रहा है। जीपी सिंह के नाम से भू -पे और उनकी टोली की नींद हराम बताई जाती है। उन्हें भी प्रदेश के तेज तर्रार और सेवाभावी अधिकारी के रूप में लोकप्रिय बताया जाता है। लेकिन साल भर से इस अधिकारी को भी कोई कार्यभार नहीं सौंपा गया है।

जानकारी के मुताबिक बतौर मुख्यमंत्री भू -पे के गैरकानूनी फरमानों को अमलीजामा पहनाने के बजाय क़ायदे – कानूनों का हवाला देने के मामले में जीपी सिंह की कार्यप्रणाली उच्चत्तम सेवा स्तर की आंकी जाती है। कांग्रेस के कार्यकाल में सत्ता का स्वाद चख रहे लुटेरों के राजनैतिक गिरोह को आईना दिखाने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इस वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ कई गैरकानूनी हथकंडे अपनाए थे। कांग्रेस राज में प्रताड़ना झेलने वाले वरिष्ठ नौकरशाहों की सूची में जीपी सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। हैरानी करने वाली बात यह भी सामने आई है कि हिटलरशाही के शिकार जीपी सिंह को बीजेपी के सत्ता संभालने के बाद भी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। भ्रष्ट पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के हिमायती नेताओं और नौकरशाहों के इशारों पर जीपी सिंह अभी भी गुमनामी के दौर में सेवारत है। सुप्रीम कोर्ट से बहाली और राहत सुनिश्चित होने के बावजूद बीजेपी सरकार ने उनकी ओर अब तक रुख नहीं किया है। पुलिस और प्रशासन की तर्ज पर प्रदेश की एक बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाले वन एवं जलवायु विभाग का भी हाल -बेहाल बताया जा रहा है। इस महकमे के शीर्ष पद की कुर्सी भी कांग्रेस कार्यकाल में नियुक्त किये गए दागी और जूनियर आईएफएस अफसर के हाथो में यथावत बताई जाती है। उन्हें भी कनिष्ठ होने के बावजूद तत्कालीन भू -पे सरकार ने लगभग नौ वरिष्ठ अधिकारियों को नजरअंदाज कर मलाईदार पद पर आसीन किया था। नतीजतन, दागी अफसरों का मोहजाल, निष्पक्ष प्रशासनिक गतिविधियों पर भारी पड़ रहा है।

प्रशासनिक महकमों में राजनैतिक नियुक्तियों से छत्तीसगढ़ शासन की छवि निखरने के बजाय कानून व्यवस्था के सवाल पर केंद्रित हो गई है। केंद्र और राज्य सरकार के कई दिशा निर्देश ताक पर रख दिए गए है। उच्च प्रशासनिक पदों पर काबिज नौकरशाही द्वारा उद्द्योगपतियों और निवेश कर्ताओं के हितों के तहत संविधान और कायदे – कानून विरुद्ध कार्य करने के मामले भी लगातार सामने आ रहे है। फ़िलहाल, छत्तीसगढ़ की राजनैतिक – प्रशासनिक गतिविधियों को लेकर दिल्ली के राजनैतिक गलियारों में हलचल भी तेज देखी जा रही है। बीजेपी के गलियारों में राज्य सरकार के 2 वर्ष के कार्यकाल को लेकर विचारमंथन का दौर भी शुरू हो गया है।