भारतीय संत समाज में हलचल मच गई है जब आध्यात्मिक नेता स्वामी रामभद्राचार्य ने संत प्रेमानंद महाराज पर विवादित टिप्पणी की। उनके अनुसार, प्रेमानंद महाराज को चमत्कारी कहना गलत है और न ही वे संस्कृत विद्वान हैं। इस बयान ने संत समाज को दो हिस्सों में बांट दिया है।
रामभद्राचार्य का विवादित बयान
रामभद्राचार्य ने कहा – “प्रेमानंद जी मेरे लिए बालक समान हैं। अगर कोई चमत्कार है तो वे मेरे सामने संस्कृत का एक अक्षर बोलकर दिखाएं या श्लोक का अर्थ बताएं।” उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें प्रेमानंद से कोई द्वेष नहीं है, लेकिन उनकी लोकप्रियता क्षणभंगुर है।
संत समाज की प्रतिक्रिया
उनके इस बयान पर संत समाज ने तीखी प्रतिक्रिया दी।
- महंत राजू दास (हनुमान गढ़ी मंदिर) ने कहा कि दोनों संत महान हैं और ऐसे बयान नहीं देने चाहिए।
- दिनेश फलाहारी महाराज ने प्रेमानंद को दिव्य संत बताते हुए रामभद्राचार्य की टिप्पणी को गलत ठहराया।
- महंत केशव स्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि संस्कृत ज्ञान और चमत्कार का कोई सीधा संबंध नहीं है।
- मधुसूदन महाराज, चिदंबरानंद सरस्वती और सीताराम दास ने इसे निंदनीय और संकीर्ण मानसिकता का परिचायक बताया।
विवाद का असर
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के बयान संत समाज में विभाजन और युवाओं में भ्रम पैदा करते हैं। व्यापक रूप से यह मांग उठ रही है कि संतों के बीच आपसी सम्मान और सौहार्द बनाए रखा जाना चाहिए।
